Friday, April 19, 2024
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अफसरों के दिशा-को नहीं मानती पुलिस

भोपाल । मध्य प्रदेश पुलिस कितनी ताकतवर है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आइजी और पुलिस कमिश्नर से बार-बार कहने के बाद भी चार साल में मानदेय घोटाले के आरोपितों के खिलाफ न्यायालय में चालान प्रस्तुत नहीं किया जा रहा है। इस मामले में शाहजहांनाबाद, ऐशबाग और लटेरी (विदिशा) पुलिस ने अपर मुख्य सचिव (एसीएस) महिला एवं बाल विकास विभाग अशोक शाह के पत्र तक को भी कचरे की पेटी में डाल दिया है। मामले को देख रहे विभाग के अधिकारी ने वरिष्ठ अधिकारियों को बताया कि दोनों स्थानों की पुलिस आरोपितों पर कार्रवाई करने की बजाय घोटाले की जांच करने वाले अधिकारियों से नए-नए दस्तावेज मांग रही है। इस पर विभाग के संचालक ने पुलिस आयुक्त और एसीएस ने गृह विभाग के एसीएस डा. राजेश राजौरा को पत्र लिखा है। 22 जिलों में सामने आ चुके 26 करोड़ रुपये से अधिक के इस घोटाले में 19 में से सिर्फ नौ प्रकरण अब तक न्यायालय पहुंचे हैं। जबकि राजधानी का ही चूना भट्टी, बैरसिया एवं रायसेन जिले का उदयपुरा थाना चालान न्यायालय में प्रस्तुत कर चुका है।
वर्ष 2017 में भोपाल के आठ बाल विकास परियोजनाओं में छह करोड़ रुपये का मानदेय घोटाला सामने आया था। जांच आगे बढ़ी, तो 14 जिलों में गड़बड़ी पाई गई और घोटाले की राशि 26 करोड़ तक पहुंच गई। मामले में सभी अधिकारी और कर्मचारी निलंबित किए गए। भोपाल के पांच लिपिक बर्खास्त कर दिए गए और आठ में से तीन बाल विकास परियोजना अधिकारियों को बर्खास्त करने की अनुमति मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग दे चुका है पर उच्च न्यायालय से स्थगन होने के कारण शासन सेवाएं समाप्त नहीं कर पा रहा है। स्थगन के दौरान ही एक अधिकारी सेवानिवृत्त भी हो गया है। राजधानी की बात करें तो घोटाले की सबसे बड़ी राशि शाहजहांनाबाद थाना क्षेत्र में स्थित बाल विकास परियोजना कार्यालयों से ही निकाली गई है पर पुलिस कार्रवाई नहीं कर रही है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश के आठ अन्य जिलों में भी गड़बड़ी हुई है। विधानसभा की लोकलेखा समिति के निर्देश पर विभाग ने जांच शुरू की है।
महिला एवं बाल विकास संचालनालय, जिले के अधिकारी मिलकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का माह में दो बार मानदेय निकालते थे। एक बार की राशि उनके बैंक खाते में जमा कराते थे और दूसरी बार की राशि कंप्यूटर आपरेटर एवं अपने परिचितों के बैंक खातों में जमा करा देते थे, जिसे बाद में आपस में बांट लेते थे। वर्ष 2014 से यह गड़बड़ी चल रही थी। शिकायत पर चार जांच भी कराई गईं पर गड़बड़ी नहीं पकड़ाई। पांचवीं जांच कोषालय और विभाग की वित्त शाखा के अधिकारियों ने की, तब घोटाला सामने आया।

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