Friday, December 13, 2024
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31 माह बाद भी पुलिस आयुक्त प्रणाली बेअसर

न पुलिस की कार्यप्रणाली बदली…न गंभीर अपराधों में कमी आई

भोपाल । करीब 31 माह पहले बड़ी उम्मीद और लक्ष्य के साथ भोपाल और इंदौर में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू की गई थी। लेकिन दोनों शहरों में पुलिस आयुक्त प्रणाली का कोई बड़ा असर होता दिखाई नहीं दिया है। यानी न तो पुलिस की कार्यप्रणाली में कोई बदलाव हुआ है और न ही गंभीर अपराधों में कमी आई है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि फिर जबलपुर और ग्वालियर में किस आधार पर पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने की मांग की जा रही है। भोपाल और इंदौर में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू होने के बाद गंभीर अपराधों की संख्या बढ़ी है, हालांकि, कुछ तरह के अपराध कम भी हुए हैं।
भोपाल और इंदौर में शासन ने पुलिस की वर्षों पुरानी मांग पूरी करते हुए इस विश्वास के साथ पुलिस कमिश्नरी लागू की थी कि यहां कानून-व्यवस्था की स्थिति बेहतर होगी। गौरतलब है कि भोपाल और इंदौर में नौ दिसंबर 2021 में पुलिस आयुक्त व्यवस्था लागू होने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि पुलिस की कार्यप्रणाली बदलेगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। कई मामलों की जांच में पुलिस की गंभीर लापरवाही सामने आई है। यही नहीं आशा की जा रही थी की गंभीर अपराध घटेंगे, लेकिन उल्टा हो रहा है। आंकड़ों में सामने आया है कि महिला अपराधों में वृद्धि हुई है।  प्रतिबंधात्मक कार्रवाई के साथ ही जिलाबदर और एनएसए जैसे मामलों में भी तुरंत संज्ञान लिया जाएगा। स्थिति इससे उलट ही है। प्रतिबंधात्मक धाराओं के तहत दर्ज मामलों में थाना प्रभारी कोर्ट में इस्तगासा पेश नहीं कर रहे हैं। पुलिस आयुक्त प्रणाली के पश्चात 107(16)के तहत धड़ल्ले से प्रतिबंधित कार्रवाई तो हुई, लेकिन नतीजा बेअसर रहा। थाना प्रभारी झगडऩे वाले दोनों पक्षों के दस्तावेज एसीपी कोर्ट के समक्ष पेश ही नहीं कर पाए। सैकड़ों इस्तगासा की मियाद समाप्त होने से उन्हें रद्दी में डालना पड़ा।

 

भोपाल में दुष्कर्म की घटनाएं बढ़ी

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भोपाल की बात करें तो वर्ष 2021 में दुष्कर्म की 330, 2022 में 380 और 2023 में 358 घटनाएं हुईं। छेड़छाड़ और महिलाओं का पीछा करने की घटनाएं भी बढ़ी हैं। इंदौर में 2022 में दोनों तरह के अपराधों के 295 प्रकरण कायम किए गए थे, जो 2023 में बेढकऱ 427 और 31 मई 2024 तक 157 घटनाएं हुईं। भोपाल में क्रमश: 489, 483 और 154 प्रकरण छेड़छाड़ के कायम किए गए। इसके अतिरिक्त दोनों शहरों में अपराधियों के बीच पुलिस का डर भी काम होता जा रहा है। हाल ही में ऐसी कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं जिनमें अपराधियों ने पुलिस पर ही हमला कर दिया। चार मई को भोपाल में यातायात की जांच के दौरान एक कार चालक पुलिसकर्मी को आधा किमी तक अपनी कार की बोनट में टांग कर ले गया था। पुलिस पर लेनदेन के आरोप भी लगते रहे हैं। सरकार ग्वालियर और जबलपुर में भी पुलिस आयुक्त व्यवस्था लागू करने की तैयारी कर रही है, पर इसके पहलें पुलिस मुख्यालय भोपाल और इंदौर में पहले से लागू व्यवस्था में हुए अपराधों की समीक्षा कर रहा है, जिससे ग्वालियर और जबलपुर में उसके अनुरूप बदलाव किया जा सके।

 

अपराधियों को पकडऩे में विफल

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गंभीर अपराधों में सभी आरोपितों को दबोचने में भी दोनों शहरों की पुलिस नाकाम हो रही है। इंदौर में वर्ष 2021 से 31 मई 2024 के बीच हुई दुष्कर्म की 1131 घटनाओं में 50 आरोपितों की गिरफ्तारी 31 मई 2024 तक नहीं हो पाई थी। इसी तरह से भोपाल में 1221 प्रकरणों में 26 की गिरफ्तारी नहीं हो पाई थी। लोकसभा चुनाव की आचार संहिता के दौरान नौ मई को अशोका गार्डन पुलिस ने क्षेत्र के मकान पर छापा मारा। यहां पुलिस को 32 लाख रुपये नकद मिले। राशि रखने वाले ने बताया कि वह कटे-फटे नोट बदलने काम करता है, जिसकी राशि है। हवाला की राशि होने की आशंका में पुलिस ने उस कमरे को सील कर दिया। बाद में उसी कक्ष का वीडियो बहुप्रसारित हुआ, जिसमे एक पुलिसकर्मी कुछ राशि ले जाते हुए दिख रहा है और व्यापारी भी एक बैग में राशि ले जाते दिखा। वीडियो सामने आने पर टीआइ सहित चार पुलिसकर्मियों को निलंबित किया गया। इंदौर के जिला न्यायालय ने जोन-दो के पुलिस उपयायुक्त, लसूडिय़ा थाने के थाना प्रभारी और अन्य पुलिसकर्मियों के विरुद्ध एफआइआर कायम कर जांच के लिए कहा था। शराब पीकर वाहन चलाने के मामले में पुलिस ने मूल आरोपित की जंगह किसी और व्यक्ति के विरुद्ध कार्रवाई की थी। न्यायालय ने गड़बड़ी पकडऩे के बाद कार्रवाई के निर्देश दिए थे। सेवानिवृत डीजीपी अरुण गुर्टू का कहना है कि पुलिस ही नहीं सभी विभागों में निगरानी तंत्र कमजोर हो गया है। जब • निगरानी नहीं होगी तो कोई भी व्यवस्था बिगड़ जाएगी। दूसरा यह कि पुलिस आयुक्त व्यवस्था भले ही लागू हो गई, पर पुलिस की मानसिकता नहीं बदली। ऐसे में ऊपर से बदलाव लाने का कोई फर्क नहीं पड़ता। तीसरा यह सरकार की कमजोरी है कि जब भी कोई नई व्यवस्था लागू होती है तो खींचतान मचती है। एजेंसी को पूरे अधिकार नहीं दिया जाते। राजनीतिक दबाव भी आड़े आता है।

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