Blood Falls: दुनिया में कई अजीबो गरीब जगहें मौजूद हैं। इनमें कुछ जगहें बेहद रहस्यमयी और अनोखी हैं, जिनके बारे में जानकर लोगों को यकीन नहीं होता है। आज हम आपको एक ऐसे ग्लेशियर के बारे में बताने वाले हैं, जहां पर खून का झरना बहता है यहां झरना दशकों से बह रहा है. वैज्ञानिक इस खून का झरना बहने की वजह का पता अब जाकर लगा पाए हैं.
दरअसल, अंटार्कटिका में ग्लेशियर से खून का झरना बह रहा है। पूर्वी अंटार्कटिका के विक्टोरिया लैंड पर टेलर ग्लेशियर मौजूद है, जहां पर खोजकर्ता और वैज्ञानिक खून का झरना बहता देख हैरान थे। बताया जाता है कि टेलर ग्लेशियर से खून का झरना दशकों से ऐसे ही बह रहा है। इस खून के झरने को देखकर विशेषज्ञ परेशान थे। हालांकि अब वैज्ञानिकों ने ग्लेशियर से खून का झरना बहने की वजह का पता लगा लिया है।
क्या कहते हैं वैज्ञानिक
जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक केन लिवी का कहना है कि वह माइक्रोस्कोप की तस्वीरों को देखकर हैरान रह गए। उन्होंने देखा कि यह छोटे नैनोस्फेयर थे और उसमें आयरन भरा हुआ था। प्राचीन रोगाणुओं से छोटे कण आते हैं और इंसान की लाल रक्त कोशिकाओं के आकार के सौवें भाग के बराबर होते हैं। लोहे के साथ-साथ, नैनोस्फेयर में सिलिकॉन, कैल्शियम, एल्युमीनियम और सोडियम भी होता है। नमकीन पानी का हिस्सा यह अनोखी संरचना है और ग्लेशियर से फिसलकर ऑक्सीजन, सूरज की रोशनी और गर्मी से मिलते ही चमकदार, सबग्लेशियल पानी को लाल कर देती है। हालांकि वैज्ञानिक पानी में नैनोस्फेयर का पता नहीं लगा पाए हैं। उनका मानना है कि कुछ खनिज खूनी पानी की वजह हैं, लेकिन नैनोस्फेयर को खनिज नहीं माना जाता है।
ग्लेशियर से बहने वाले खूनी झरने के पानी का स्वाद नमकीन है, जो एक बेहद प्राचीन इकोसिस्टम का हिस्सा है। टेलर ग्लेशियर के नीचे बेहद प्राचीन जगह है। खून के झरने को नजदीक से जाकर देखने वाले वैज्ञानिक बताते हैं कि इसका स्वाद नमकीन है, जिस तरह खून होता है। यह स्थान खतरों से भरा है और यहां जाना जान को जोखिश में डालने जैसा है।
ब्रिटिश खोजकर्ता थॉमस ग्रिफिथ टेलरने सबसे पहले खून के झरने की खोज साल 1911 में की थी। यूरोपियन वैज्ञानिक अंटार्कटिका के इस क्षेत्र में सबसे पहले पहुंचे थे। ब्रिटिश खोजकर्ता थॉमस और उनके साथियों ने इस लाल रंग को एल्गी समझा था। लेकिन ऐसा कुछ नहीं था जिसके बाद इस मान्यता को रद्द कर दिया गया।
वैज्ञानिकों को साल 1960 में पता चला कि ग्लेशियर के नीचे लौह नमक मौजूद है। लौह नमक का मतलब फेरिक हाइड्रोक्साइड (Ferric Hydroxide)। इसके बाद साल 2009 में एक स्टडी से हैरान करने वाला खुलासा हुआ। इस ग्लेशियर के नीचे सूक्ष्मजीव होने की जानकारी मिली। इसके कारण ग्लेशियर से खून का झरना निकल रहा है।
प्रयोगशाला में खून के झरने के पानी की जांच की गई, तो इसमें दुर्लभ सबग्लेशियल इकोसिस्टम के बैक्टीरिया पाए गए। इनके बारे में किसी को भी कोई जानकारी नहीं है। जहां पर ऑक्सीजन नहीं है वहां पर यह जिंदा हैं। बिना फोटोसिंथेसिस इस जगह पर बैक्टीरिया जीवित हैं और नए बैक्टीरिया पैदा हो रहे हैं। इस जगह पर तापमान दिन में माइनस सात डिग्री सेल्सियस रहता है और खून का झरना बेहद ठंडा है। यह नमक की वजह से जमता नहीं है और बहता रहता है। नमक नहीं होता, तो जम जाता।
वैज्ञानिकों के लिए अभी यह रहस्य है कि आखिर खून के झरने पर अंदर से कौन दबाव डाल रहा है। इस प्रेशर की वजह से ग्लेशियर से खून का झरना बाहर निकल रहा है। थी।