भगवान शिव की सवारी, वृषभराज नंदी को कौन नहीं जानता. भक्तों की नजर में तो भगवान भोलेनाथ तक बात पहुंचाने वाले ‘डाकिया’ की असली भूमिका में तो भगवान नंदी हैं. आखिर हों भी क्यों न. दिन-रात, भगवान शिव की शिवलिंग की ओर मुंह करके बैठे नंदी बाबा, हमेशा तो उनसे ही बात करते हैं. भक्त, उनके कान में धीरे से अपनी कामना फुसफुसा देते हैं और वे जाकर शिव से भक्त की मुराद बता देते हैं. इसलिए ही तो भक्तों को नंदी बाबा से इतना प्यार है. कभी सोचा है कि जन्म-जन्मांतर भगवान शिव के साथ रहने वाले नंदी बाबा, आखिर शिव से मिले कैसे थे. अगर नहीं तो आइए जानते हैं.
पंडित मायेश द्विवेदी बताते हैं कि ऋषि शिलाद, संतानहीन थे. उम्र अधिक हो गई थी और उन्हें संतान नहीं प्राप्त हुई थी. उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी और तब जाकर नंदी मिले. नंदी भी, उनके जैविक पुत्र नहीं थे. शिलाद मुनि, भूमि में हल चला रहे थे, तभी एक छोटे से बच्चे को उन्हें पड़ा हुआ देखा. उन्होंने उसे गोल में उठा लिया और नंदी नाम दे दिया. नंदी को शिलाद ऋषि ने अल्प आयु में ही ऋगवेद, सामवेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद पढ़ा दिया था.
अल्पायु थे नंदी, ऋषियों ने की भविष्यवाणी
पंडित मायेश द्विवेदी बताते हैं कि शिलाद ऋषि के आश्रम में दो कुलीन ऋषि आए. मित्र और वरुण. उन्होंने शिलाद की तपस्या से प्रसन्न होकर, उन्हें दीर्घ आयु का वरदान दिया लेकिन नंदी को नहीं. वजह ये थी कि नंदी अल्पायु थे और यह बात, दोनों ऋषि जानते थे. ऋषियों ने शिलाद से कह दिया कि तुम्हारा पुत्र अल्पायु है.
पिता पर टूटा दुखों का पहाड़
जब शिलाद को यह पता लगा कि उनका पुत्र नंदी अल्पायु है तो वे दुख में पड़ गए. पिता को चिंतित देखकर नंदी ने कारण जाना, जब कारण पता चला तो नंदी ने कहा कि वे तो भगवान शिव के प्रसाद हैं, उन्हीं पर समर्पित हैं. वे ही उन्हें बचाएंगे.
ऐसे भगवान शिव के गण बन गए भगवान नंदी
नंदी, भगवान शिव की कठोर साधना करने भुवन नदी के किनारे बैठ गए. भगवान शिव, कठोर तपस्या से प्रसन्न हुए और वर मांगने को कहा. भगवान नंदी ने कहा कि भगवान, अपनी शरण में रख लीजिए. भगवान शिव ने उन्हें वृषभरूप दिया और हमेशा अपना अनन्य साथी बना लिया. भगवान शिव के वैसे तो कई गण हैं लेकिन 12 गण बेहद खास हैं. भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय, विजय और नंदी. इन गणों में नंदी सबसे बुद्धिमान माने जाते हैं.