Saturday, March 15, 2025
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जाप माला में 108 मोती ही क्यों होते हैं? जानें क्या है इसका रहस्य

हिन्दू धर्म में हम मंत्र जाप के लिए जिस जाप माला का उपयोग करते हैं, उस माला में दानों की संख्या 108 होती है। शास्त्रों में 108 संख्या को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि माला का उपयोग करने से आपका जाप वास्तव में पूर्ण होता है। लेकिन संख्याहीन किए गए जापों का पूर्ण फल नहीं मिलता। इसलिए जाप के लिए एक संख्या तय की गई है। इसके पीछे कई धार्मिक, ज्योतिषीय और वैज्ञानिक मान्यताएं हैं। आइए हम जानते हैं कि आखिर क्यों करना चाहिए मन्त्र जाप के लिए माला का प्रयोग।

एक मान्यता के अनुसार जाप माला में 108 दाने और सूर्य की कलाओं का गहरा संबंध है। माला का एक-एक दाना सूर्य की एक-एक कला का प्रतीक होता है। एक वर्ष में सूर्य 216000 कलाएं बदलता है और वर्ष में दो बार अपनी स्थिति भी बदलता है। छह माह उत्तरायण रहता है और छह माह दक्षिणायन। अत: सूर्य छह माह की एक स्थिति में 108000 बार कलाएं बदलता है। इसी के आधार पर इस संख्या के पीछे के 3 शून्य हटाकर दानों की संख्या 108 निर्धारित की गई है।

108 के लिए ज्योतिष की मान्यता

ज्योतिष के अनुसार ब्रह्मांड को 12 भागों में विभाजित किया गया है। इन 12 भागों के नाम मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। इन 12 राशियों में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु विचरण करते हैं। अत: ग्रहों की संख्या 9 का गुणा किया जाए राशियों की संख्या 12 में तो संख्या 108 प्राप्त हो जाती है।

किस प्रकार है इसका सांसों से संबंध

मनुष्य की सांसों से माला के दानों की संख्या 108 का बेहद खास संबंध है। सामान्यतः 24 घंटे में एक व्यक्ति करीब 21600 बार सांस लेता है। दिन के 24 घंटों में से 12 घंटे दैनिक कार्यों में व्यतीत हो जाते हैं और शेष 12 घंटों में व्यक्ति 10800 बार सांस लेता है। शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति को हर सांस पर यानी पूजन के लिए निर्धारित समय 12 घंटे में 10800 बार ईश्वर का ध्यान करना चाहिए, लेकिन यह संभव नहीं हो पाता है। इसलिए 10800 बार सांस लेने की संख्या से अंतिम दो शून्य हटाकर जप के लिए 108 संख्या निर्धारित की गई है। इसी संख्या के आधार पर जप की माला में 108 दाने होते हैं।

क्या है जाप का सही तरीका

मंत्र जप की माला में सबसे ऊपर एक बड़ा दाना होता है जो कि सुमेरु कहलाता है। सुमेरू से ही जप की संख्या शुरू होती है और यहीं पर खत्म भी होती है। जप का एक चक्र पूर्ण होकर सुमेरू दाने तक पहुंच जाता है तब माला को पलटा लिया जाता है। सुमेरू को कभी भी लांघना नहीं चाहिए। जब भी मंत्र जप पूर्ण करें तो सुमेरू को माथे पर लगाकर नमन करना चाहिए। इससे जप का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

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