😊अगिया बेताल😊
क़मर सिद्दीक़ी
उनकी यात्रा को समाप्त हुए हफ्ता भी नहीं बीता कि, अब मध्य प्रदेश में भाजपा वालों की शुरू हो गई। अब ये यात्रा कोई धार्मिक या सामाजिक थोड़ी है, जिसमें धार्मिक या समाज से संबंधित नारे गूंजते,ये तो पार्टी के लबादे में ढंकी हर नेता की अपनी व्यक्तिगत शक्ति प्रदर्शन के लिए है। सो रास्ते भर पुष्प वर्षा, तिलक की रस्म, पुष्प माला कार्यक्रम, नारेबाजी फलाने तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं। नारे लगाने वाले भी दिहाड़ी हैं,सारे खर्चे नेता जी के जेब से ही निकलना है।
बस्ती के किसी घर से गाने की आवाज़ आ रही थी,”किसी राह में, किसी मोड़ पर, कहीं चल न देना तू छोड़ कर मेरे हम सफर”। नेता जी ने खास सिपहसालार की तरफ टेढ़ी नज़र से देख बोला ये क्या बकवास गाना बज रहा है। सियासी लोग कभी-कभी एक गाने से भी डर जाते हैं,इसे कहते हैं,चोर की दाढ़ी में तिनका। इन लोगों में हर काम देखा देखी चलता है। विपक्षी ने किया है,तो ज़रूर कुछ सोच कर ही किया होगा। अब प्रश्न ये है कि,इन यात्रा करने वालों को तो अपनी मंज़िल मिल जाती है,पर जिनके नाम पर ये लाओ-लश्कर निकलते हैं,उनको अंत में मंज़िल की तस्वीर ही हाथ लगती है। वैसे पता तो सब को है कि,इस प्रकार की विकास यात्राओं से किसका विकास होना है। और कितना विकास चाहते हो यार? 18 वर्ष तो हो गए,मंज़िल का मज़ा लूटते हुए। बीच में 18 महीनों के लिए मंज़िल थोड़ा दूर हुई थी,तो उसमें भी तुमको तकलीफ हो गई थी,खोल दिया था तिजोरी का मुंह,दिखा दिया था किसी को श्यामला हिल्स वाले बंगले का ख्वाब। बेचारे विपक्षी हर चुनाव के पहले कलफ़ दार शुतुरमुर्ग बन चहचहाते हुए जश्न की तैयारी में लग जाते हैं, पर नतीजा आते ही पहले मायूसी और फिर आपस में एक दूसरे पर हार का ठीकरा फोड़ने की रस्म अदायगी का नंबर आ जाता है।
ये बात कुछ हज़म नहीं हुई
मुखिया ने अपनी राय रखते हुए कहा कि, पुलिस को जनता के किये, फूल और अपराधियों के लिए बज्र के माफ़िक़ होना चाहिए। जुमले में कोई कमी नहीं,पर इसका क्रम उल्टा है। जनता से कौन सा फायदा होता है इनका। लाखों की “श्रद्धा निधि” दे कर तो ये वर्दी मिली है,अब वसूलने का समय आया तो नैतिक ज्ञान की बातें! भर्ती के समय भी कुछ ज्ञान अधिकारियों को दे देते। ये हेलमेट, कागज़, रांग साइड, सीट बेल्ट पर दो ढाई सौ की चिन्धी चोरी का क्या मतलब, वो भी परमानेंट नहीं। अरे चेन स्नेचर, जुआ-सटा, चोरी-डकैती, दारू-गांजा वाले हमारे लिए वरदान हैं। इन पर ध्यान देना तो बनता है। कुछ जगहों से महीने की बंदी, तो कुछ जगहों से इकट्ठा। तुम जो मिल गए हो तो ऐसा लगता है के जहां मिल गया। हमें मत बताओ कि किसके लिए ब्रज बनना है और किसके लिए फूल।
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण ‘प्रदेश लाइव’ के नहीं हैं और ‘प्रदेश लाइव’ इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेता है।)