कांग्रेस की मजबूरी, चुनाव में कमलनाथ हैं जरूरी

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दीपक बिड़ला

भोपाल। मध्य प्रदेश में कांग्रेस नेताओं के बीच चल रहे मनमुटाव का आखिरकार पटाक्षेप हो गया है। प्रदेश के दिग्गज कांग्रेस नेताओं ने एक सुर में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ पर भरोसा जताते हुए उन्हीं के नेतृत्व में वर्ष 2023 का विधानसभा चुनाव लडऩे की बात कही है। इसके साथ ही इन खबरों को भी विराम लग गया कि कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष में से एक पद छोड़ेंगे।

प्रदेश कांग्रेस में अंतर्कलह, अंतर्विरोध और गुटबाजी

करीब छह महीने पहले खंडवा लोकसभा सीट पर होने जा रहे उपचुनाव में प्रत्याशी का नाम फायनल होने से ठीक पहले पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव ने चुनाव लडऩे से इनकार कर दिया था। यहीं से कांग्रेस में बिखराव की शुरुआत हुई। अरुण यादव ने पार्टी की गतिविधियों में रुचि लेना कम कर दिया। इसके बाद जनवरी में सीएम हाउस के नजदीक धरने sampadkiy 1के दौरान कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बीच हुए तल्ख संवाद का वीडियो जमकर वायरल हुआ, जिससे तय हो गया कि दोनों नेताओं के बीच सब कुछ ठीक नहीं है। फिर मार्च में विधानसभा सत्र के पहले दिन राज्यपाल के अभिभाषण के बहिष्कार के मुद्दे पर नेता प्रतिपक्ष के तौर पर कमलनाथ ने भाजपा का साथ देते हुए जिस तरह कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी को कठघरे में खड़ा कर दिया, उससे भाजपा को पटवारी को घेरने का मौका मिल गया। इसका नजीता यह हुआ कि पटवारी समेत कई युवा विधायकों ने विधानसभा की कार्यवाही में रुचि नहीं ली। सत्र के दौरान पूरा विपक्ष बिखरा-बिखरा नजर आया। मीडिया में रोजाना सामने आ रही प्रदेश कांग्रेस में अंतर्कलह, अंतर्विरोध और गुटबाजी की खबरों से परेशान कमलनाथ ने तीन दिन पहले सभी दिग्गज नेताओं और पूर्व मंत्रियों को डिनर पर बुलाया। इस दौरान सभी नेताओं ने एकजुटता दिखाते हुए कमलनाथ के नेतृत्व में चुनाव लडऩे और उनका हर निर्णय मान्य होने की बात कही।

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लंबे अरसे से केंद्र और प्रदेश की सत्ता से बाहर कांग्रेस में फंड की कमी

बड़ा सवाल यह है कि आखिर क्या कारण है कि पार्टी हाईकमान 76 साल के कमलनाथ पर इतना भरोसा जता रहा है। दरअसल, लंबे अरसे से केंद्र और प्रदेश की सत्ता से बाहर होने के कारण कांग्रेस फंड की कमी से जूझ रही है। विधानसभा चुनाव लडऩे के लिए पार्टी को करोड़ों रुपए चाहिए। कमलनाथ के अलावा प्रदेश में ऐसा कोई नेता नहीं है, जो चुनाव में करोड़ों रुपए फंूक सके। यह बात प्रदेश के सभी नेता अच्छे से जानते हैं। दूसरी बात यह है कि कमलनाथ पार्टी के वरिष्ठतम अनुभवी नेताओं में से एक हैं। उनकी छवि बेदाग है। वे प्रदेश में कांग्रेस के एकमात्र सर्वमान्य नेता है। सभी उनके फैसलों को मानते हैं। भाजपा भी यह अच्छे से जानती है कि कमलनाथ हैं, तो कांग्रेस एक है। यदि पार्टी किसी दूसरे नेता को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपती है, तो चुनाव के ऐन मौके पर कांग्रेस बिखर जाएगी, जिसका फायदा भाजपा को चुनाव में मिलेगा। कांग्रेस हाईकमान को भी कमलनाथ की नेतृत्व क्षमता पर भरोसा है, यही वजह है कि किसी युवा चेहरे की बजाय वह कमलनाथ पर पूरा भरोसा जता रहा है। या यूं कहें की आज के हालात में कमलनाथ पर भरोसा जताना पार्टी हाईकमान की मजबूरी है। पार्टी यह भी जानती है कि चुनाव से 18 महीने पहले नेतृत्व में बदलाव करना ठीक नहीं है। पार्टी पंजाब में विधानसभा चुनाव से चार महीने पहले मुख्यमंत्री बदलने का हश्र देख चुकी है।

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प्रदेश में सक्रियता बढ़ाएगी कांग्रेस

विधानसभा चुनाव में 18 महीने बचे हैं, ऐसे में कांग्रेस ने प्रदेश में सक्रियता बढ़ाने का निर्णय लिया है। कमलनाथ खुद को प्रदेश का दौरा करेंगे ही, वरिष्ठ नेता भी अलग-अलग क्षेत्रों का दौरा करेंगे। इसके अलावा पूर्व मंत्रियों को भी अपने-अपने जिलो में जनता से जुड़े मुद्दों पर आंदोलन करने के निर्देश पीसीसी चीफ ने दिए हैं।  कांग्रेस के फ्रंटल ऑर्गेनाइजेशन, मोर्चा, प्रकोष्ठों को भी सरकार की जन विरोधी नीतियों को लेकर सड़क पर उतरने को कहा गया है। इसी कड़ी में युवा कांग्रेस 11 अप्रैल को राजधानी में प्रदेश व्यापी आंदोलन करेगी।