जिसका अंदेशा था, वही हुआ। सरकार की महीने-डेढ़ महीने की कवायद के बाद भी प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव नहीं हो पाए, टल गए। पंचायत चुनाव में फंसा ओबीसी आरक्षण का पेंच सरकार की गले की फांस बन गया है। ओबीसी आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। ऐसे में यह कह पाना मुश्किल है कि पंचायत चुनाव कब तक होंगे और
सरकार की पंचायत चुनाव की मंशा पर खड़े हो गए सवाल
दरअसल, भाजपा सरकार ने 21 नवंबर की देर रात मप्र पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज (संशोधन) अध्यादेश-2021 लागू कर दिया। इस संशोधन अध्यादेश में पूर्ववर्ती कमलनाथ सरकार द्वारा कराए गए परिसीमन को निरस्त कर वर्ष 2014 में लागू आरक्षण के आधार पर पंचायत चुनाव कराने का प्रावधान किया गया था। इस अध्यादेश के लागू होने के साथ ही सरकार की पंचायत चुनाव कराने की मंशा पर सवाल खड़े हो गए थे, क्योंकि कानून कहता है कि पंचायत चुनाव से पहले पंचायतों का परिसीमन और सीटों का रोटेशन कराना जरूरी है। परिसीमन इसलिए कि ग्राम पंचायत की बढ़ी हुई आबादी के आधार पर नए वार्ड, नई पंचायतें बनाई जाएं और रोटेशन इसलिए कि चुनाव में बारी-बारी से सभी वर्गों को मौका मिल सके, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। सरकार जानती थी कि कांग्रेस इसके विरोध में कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी और यदि कोर्ट ने चुनाव पर रोक लगाई, तो हम इसका ठीकरा कांग्रेस के सिर पर फोड़ देंगे। हुआ भी ऐसा ही, परिसीमन निरस्त करने और रोटेशन नहीं कराने के विरोध में कांग्रेस से जुड़े लोगों ने मप्र हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर कर दीं। इस बीच राज्य निर्वाचन आयोग ने 4 दिसंबर को आनन-फानन में पंचायत चुनाव का ऐलान कर दिया। हाईकोर्ट ने चुनाव रोकने से इनकार कर दिया। कांग्रेस से जुड़े लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और फिर जो हुआ, उसके बारे में न भाजपा सरकार ने सपने में भी नहीं सोचा था। सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश के पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर रोक लगाते हुए ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को सामान्य सीट मानते हुए चुनाव कराने का आदेश दे दिया। इस आदेश से सरकार पूरी तरह से बैकफुट पर आ गई। इस आदेश के पालन में राज्य निर्वाचन आयोग ने ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों पर चुनाव प्रक्रिया स्थगित कर दी। तब तक पहले और दूसरे चरण के पंचायत चुनाव के लिए प्रत्याशी नामांकन दाखिल कर चुके थे और उन्हें चुनाव चिन्ह आवंटित कर दिए गए थे। उन्होंने प्रचार भी शुरू कर दिया था। कांगे्रस को भाजपा सरकार को घेरने का मौका मिल गया। संयोग से इस बीच 20 दिसंबर से विधानसभा का शीतकालीन सत्र शुरू हो गया। कांग्रेस ने पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर विधानसभा में जमकर हंगामा किया। सदन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ओबीसी आरक्षण के साथ ही पंचायत चुनाव कराने की बात कही। 23 दिसंबर को ओबीसी आरक्षण के साथ पंचायत चुनाव कराए जाने को लेकर विधानसभा में सर्वसम्मति से अशासकीय संकल्प पारित किया गया और सरकार ने ओबीसी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करने के लिए 3 जनवरी की तारीख दी। इसके बाद सरकार ने 21 नवंबर को जिस पंचायत राज संशोधन अध्यादेश को मंजूरी दी थी, उसे 26 दिसंबर को वापस ले लिया। यानी कमलनाथ सरकार के समय का परिसीमन और रोटेशन लागू हो गया। इसके बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनाव निरस्त कर दिए। सरकार ने फिर पंचायत राज संशोधन अध्यादेश को मंजूरी दी, जिसमें कमलनाथ सरकार के समय किए गए पंचायतों के परिसीमन को निरस्त कर दिया।
प्रत्याशी आज खुद को ठगा सा महसूस कर रहे
सरकार प्रदेश में ओबीसी वोटरों की गिनती करा रही है, ताकि डाटा सुप्रीम कोर्ट में पेश किया जा सके। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 17 दिसंबर को सुनवाई होना है। इस बीच पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने पूर्व सरपंचों, पूर्व जनपद अध्यक्षों और पूर्व जिला पंचायत अध्यक्षों से लिए गए वित्तीय अधिकार उन्हें वापस दे दिए। दो दिन बाद फिर विभाग ने उनसे वित्तीय अधिकार वापस ले लिए। जो भी है, पंचायत चुनाव में मैदान में उतरे प्रत्याशी आज खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। उनका समय बर्बाद हुआ, पैसा बर्बाद हुआ और इज्जत भी गई। यही वजह है कि उनमें सरकार के प्रति खासी नाराजगी है। साथ ही दावेदारों को पंचायत चुनाव का बेसब्री से इंतजार है।