सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने सरकारी नौकरियों की चयन प्रक्रिया के नियमों को लेकर बड़ा फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के लिए भर्ती नियमों को बीच में नहीं बदला जा सकता है. ऐसा तब तक तो बिल्कुल नहीं कर सकते हैं, जब तक ऐसा निर्धारित न हो.
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का फ़ैसला
दरअसल, कोर्ट इस सवाल पर फैसला सुना रही थी कि क्या राज्य और उसके संस्थान प्रक्रिया शुरू होने के बाद नौकरियों के लिए चयन प्रक्रिया के नियमों में बदलाव कर सकते हैं. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि भर्ती प्रक्रिया शुरू होने से पहले एक बार तय किए गए नियमों को बीच में नहीं बदला जा सकता. कोर्ट में जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल थे.
कोर्ट ने कहा कि चयन नियम मनमाने नहीं होने चाहिए. यह संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार होने चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से कहा कि पारदर्शिता और गैर-भेदभाव सार्वजनिक भर्ती प्रक्रिया की पहचान होनी चाहिए. बीच में नियमों में बदलाव कर के उम्मीदवारों को आश्चर्यचकित होने का मौका नहीं देना चाहिए.
यह है पूरा मामला
मामला राजस्थान हाईकोर्ट में 13 अनुवादक पदों की भर्ती प्रक्रिया से संबंधित है. उम्मीदवारों को एक लिखित परीक्षा में हिस्सा लेना था. उसके बाद एक लिखित परीक्षा में सफल अभ्यर्थियों को इंटरव्यू देना था. एग्जाम में 21 अभ्यर्थी उपस्थित हुए थे. उनमें से केवल तीन को ही हाईकोर्ट (प्रशासनिक पक्ष) ने सफल घोषित किया. बाद में यह बात सामने आई कि हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने आदेश दिया था कि इन पदों के लिए कम से कम 75 प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों का ही चयन किया जाना चाहिए.
बाद में बदला गया था नौकरी का नियम
इस भर्ती प्रक्रिया में 75 क्वालीफाइंग नियम का उल्लेख तब नहीं किया गया था, जब भर्ती प्रक्रिया पहली बार हाई कोर्ट द्वारा अधिसूचित की गई थी… इसके अलावा इस संशोधित मानदंड को लागू करने पर ही तीन उम्मीदवारों का चयन किया गया और शेष उम्मीदवार बाहर हो गए. तीन असफल उम्मीदवारों ने हाईकोर्ट के समक्ष एक रिट याचिका दायर करके इस परिणाम को चुनौती दी जिसे मार्च 2010 में खारिज कर दिया गया.
सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी याचिका
हाईकोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद अभ्यर्थियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि न्यूनतम 75 प्रतिशत अंक मानदंड लागू करने का हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस का निर्णय खेल खेले जाने के बाद खेल के नियमों को बदलने जैसा है जो अस्वीकार्य था. सुप्रीम कोर्ट की सीजेआई के नेतृत्व वाली संविधान पीठ इस पर अपना फैसला सुनाया.