भारत के पूर्वोत्तर में स्थित मिजोरम की राजधानी आइजोल को आजादी के 75 साल बाद ट्रेन मिली है। यह रेलवे नेटवर्क से जुड़ने तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि आने वाले सालों में इसका दायरा और भी विस्तारित होने जा रहा है। आइजोल तक रेलवे लाइन पहुंचने के बाद अब योजना बनाई जा रही है कि इस ट्रैक को म्यांमार बॉर्डर तक ले जाया जाए, जो लगभग 232 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रेलवे सूत्रों के अनुसार, यह कदम न केवल पूर्वोत्तर को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और रसद नेटवर्क को मजबूत करने के लिहाज से भी बेहद अहम है।
सीमावर्ती राज्य, कनेक्टिविटी की रीढ़
मिजोरम की भौगोलिक स्थिति इसे सामरिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती है। यह राज्य बांग्लादेश और म्यांमार से अंतरराष्ट्रीय सीमाएं साझा करती है, जबकि भारत के भीतर इसकी सीमाएं असम, मणिपुर और त्रिपुरा से लगती हैं। ऐसे में इस इलाके में रेलवे कनेक्टिविटी का विस्तार मिलिट्री लॉजिस्टिक्स, राहत आपूर्ति और क्विक ट्रांजिट को सुनिश्चित करेगा।
ऊंची पहाड़ियों पर बसा मिजोरम, समुद्र तल से लगभग 1,132 मीटर (3,715 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है, जिससे यहां सड़क मार्ग से सामान और लोगों की आवाजाही चुनौतीपूर्ण रही है। ऐसे में रेलवे एक स्थायी और ऑल वेदर विकल्प के रूप में उभर कर सामने आएगा।
गुवाहाटी से आइजोल तक ट्रेन से सफर
वर्तमान में असम के बदरपुर से कथकल होते हुए भैरवी तक रेल ट्रैक का संचालन हो रहा है। मिजोरम में 51.38 किलोमीटर लंबा ट्रैक तैयार किया गया है, जो भैरवी, कुर्तिकी, मुलखांग और सायरांग स्टेशनों को जोड़ता है। जल्द ही इस मार्ग पर विस्टाडोम ट्रेनों का परिचालन भी शुरू होने वाला है, जिससे पर्यटकों को पहाड़ी दृश्यों का शानदार अनुभव मिलेगा।
सुरक्षा और व्यापार दोनों का विकास
इस प्रस्तावित ट्रैक के जरिए न सिर्फ स्थानीय लोगों को सुविधाएं मिलेंगी, बल्कि बॉर्डर मैनेजमेंट और राष्ट्रीय सुरक्षा में भी यह बड़ी भूमिका निभाएगा। सीमाई क्षेत्रों तक पहुंच आसान होने से सैन्य तैनाती, आपातकालीन सामग्री और निगरानी में भी तेजी लाई जा सकेगी। इसके अलावा, भारत-म्यांमार और बांग्लादेश के साथ संभावित व्यापारिक गलियारों को ध्यान में रखते हुए भी यह ट्रैक भविष्य की रणनीतिक जरूरतों को पूरा करेगा।
टूरिज्म और लोकल इकोनॉमी को बढ़ावा
मिजोरम अपनी प्राकृतिक खूबसूरती और शांत माहौल के लिए मशहूर है। रेलवे रूट की शुरुआत बाद यहां पर्यटकों की संख्या में बढ़ोतरी होने की संभावनाएं हैं। इससे स्थानीय व्यवसाय, होमस्टे, हस्तशिल्प और कुटीर उद्योगों को नया जीवन मिलेगा। रेलवे अधिकारियों का मानना है कि बढ़ती कनेक्टिविटी से न सिर्फ राज्य की आर्थिक तस्वीर बदलेगी, बल्कि यहां के युवाओं के लिए रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।
एक नजर मिजोरम पर
मिजोरम राज्य को पहले असम के लुशाई हिल्स के नाम से जाना जाता था। इसके बाद साल 1954 में यहां का नाम बदलकर मिजो हिल्स रख दिया गया और फिर साल 1972 में यह एक केंद्र शासित राज्य घोषित किया गया है। अंत में 20 फरवरी 1987 को इसे भारत के पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया। मिजोरम भारत के तीन ईसाई बहुल राज्यों में से एक है, जहां 87% से अधिक आबादी ईसाई धर्म का पालन करती है। इसके अलावा यहां बौद्ध धर्म (8.51%), हिंदू (2.75%) और इस्लाम (1.35%) भी मौजूद हैं।
स्थानीय संस्कृति और खानपान
यहां की मिजो संस्कृति को सरलता और प्रकृति के प्रति प्रेम की मिसाल माना जाता है। मिजोरम का मुख्य खाद्द पदार्थ चावल है, जिसे मांस, मछली और सब्जियों के साथ खाया जाता है। बांस के अंकुर, जंगली मशरूम और स्थानीय जड़ी-बूटियां यहां के व्यंजनों की खास पहचान हैं।
आइजोल तक रेलवे लाइन का विस्तार और आने वाले समय में म्यांमार सीमा तक उसका विस्तार, मिजोरम को एक नई रणनीतिक ऊंचाई देगा। यह विकास का ट्रैक केवल यात्रियों और व्यापारियों के लिए ही नहीं, बल्कि भारत की सीमाओं की सुरक्षा को भी और मजबूत करेगा।