उत्तर भारत में इस साल फरवरी में गर्मी का अहसास जल्दी शुरू हो गया है। ये पिछले 15 सालों के सबसे गर्म फरवरी महीनों में से एक होने वाला है। इससे उत्तर भारत में सर्दी के जल्दी खत्म होने का संकेत मिलता है। इस बीच लोगों के मन में ये सवाल आना लाजमी है कि क्या इस साल हमें लंबी और कड़ी गर्मी का सामना करना पड़ेगा? इसका जवाब है 'जरूरी नहीं'। दरअसल पिछले सालों के आंकड़ों से पता चलता है कि फरवरी में गर्मी का मतलब ये नहीं है कि उत्तर भारत में भीषण गर्मी पड़ेगी।
10 साल के सबसे गर्म महीनों का किया एनालिसिस
1971 से उत्तर भारत के मासिक औसत अधिकतम तापमान का एनालिसिस किया। इसमें फरवरी के 10 सबसे गर्म महीनों को चुना गया। इनमें से पांच सालों में, अप्रैल का महीना सामान्य से ज्यादा गर्म रहा। लेकिन बाकी के पांच सालों में, अप्रैल का तापमान या तो सामान्य के करीब रहा (चार साल) या सामान्य से कम रहा (एक साल)।10 साल के सबसे गर्म महीनों का किया एनालिसिस
मार्च होता है मौसमी बदलाव का महीना
फरवरी और अप्रैल के महीनों को इस विश्लेषण के लिए इसलिए चुना गया क्योंकि उत्तर भारत में फरवरी सर्दियों का आखिरी महीना होता है। अप्रैल में पूरी तरह से गर्मी शुरू हो जाती है। मार्च को आमतौर पर मौसमी बदलाव का महीना माना जाता है। फरवरी और अप्रैल के तापमान में कोई सीधा संबंध नहीं है। इन दो महीनों का तापमान कई कारकों पर निर्भर करता है। इनमें अल नीनो (या ला नीना) जैसी बड़ी घटनाएं और पश्चिमी विक्षोभ जैसी मौसम संबंधी घटनाएं शामिल हैं।
फरवरी और अप्रैल के तापमान में कोई संबंध नहीं
हाल के सालों के रुझान इस बात को साबित करते हैं कि फरवरी और अप्रैल के तापमान में कोई संबंध नहीं है। 2023 में उत्तर भारत में फरवरी में रिकॉर्ड गर्मी पड़ी, लेकिन अप्रैल सामान्य से ठंडा था। 2023 का फरवरी 1901 के बाद से सबसे गर्म था, जिसका औसत अधिकतम तापमान 1971-2024 के औसत से 3.5 डिग्री ज़्यादा था। हालांकि, उस साल अप्रैल आठ सालों में सबसे ठंडा रहा, जिसका औसत अधिकतम तापमान 1971-2024 के औसत से लगभग 1 डिग्री कम था। इसके उलट 2022 में हुआ। उस साल उत्तर भारत में अप्रैल रिकॉर्ड स्तर पर सबसे गर्म था, जबकि फरवरी में तापमान सामान्य के करीब था।