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Sex Education पर Supreme Court की बड़ी टिप्पणी, कहा… यौन शिक्षा को पश्चिमी अवधारणा मानना गलत, ‘सेक्स एजुकेशन’ स्कूलों में पढ़ाया जाए..

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Supreme Court's big comment on Sex Education, said... It is wrong to consider sex education as a western concept, 'Sex Education' should be taught in schools..
Supreme Court's big comment on sex education

Supreme Court: का बड़ा बयान: Sex Education को पश्चिमी अवधारणा न मानें, भारत की शीर्ष न्यायालय सुप्रीम कोर्ट ने छात्रों को ‘सेक्स एजुकेशन’ देने के मामले को सही ठहाराया है। शीर्ष न्यायालय ने यौन शिक्षा पर बड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि, सेक्स एजुकेशन’
को स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाया जा सकता है। सेक्स एजुकेशन को वेस्टर्न कॉन्सेप्ट मानना गलत है। इससे युवाओं में अनैतिकता नहीं बढ़ती। इसलिए भारत में इसकी शिक्षा बेहद जरूरी है।

वहीं इस मामले पर सुनवाई में CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच नेने कहा कि, लोगों का मानना है कि, सेक्स एजुकेशन भारतीय मूल्यों के खिलाफ है।
इसी वजह से कई राज्यों में यौन शिक्षा को बैन कर दिया गया है। इसी विरोध की वजह से युवाओं को सटीक जानकारी नहीं मिलती। फिर वे इंटरनेट का सहारा लेते हैं, जहां अक्सर भ्रामक जानकारी मिलती है।

खंडपीठ ने कहा कि, “इस प्रकार का विरोध व्यापक और प्रभावी यौन स्वास्थ्य कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में बाधा डालता है।
जिससे कई किशोरों को सटीक जानकारी के बिना छोड़ दिया जाता है।
यह वही है जो किशोरों और युवा वयस्कों को इंटरनेट की ओर रुख करने का कारण बनता है।
जहां उनके पास अनियंत्रित और अनफ़िल्टर्ड जानकारी तक पहुंच होती है, जो अक्सर भ्रामक होती है और अस्वास्थ्यकर यौन व्यवहारों के लिए बीज लगा सकती है।

आज, सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि, “बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री” (बाल पोर्नोग्राफी) को हटाने या रिपोर्ट किए बिना केवल भंडारण करने से इसे प्रसारित करने के इरादे का संकेत मिलेगा, और केवल डाउनलोड किए बिना इसे देखना यौन अपराधों से POCSO Act, 2012 के तहत “कब्जा” होगा।

इस फैसले में संसद को पॉक्सो अधिनियम में संशोधन करने का सुझाव दिया गया है ताकि ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ शब्द को ‘बाल यौन शोषणकारी और दुर्व्यवहार सामग्री’ (CSEAM) से बदला जा सके। कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस तरह के संशोधन को प्रभावी बनाने के लिए इस बीच एक अध्यादेश जारी करने के लिए भी कहा।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

एक रिसर्च से पता चला है कि, सही सेक्स एजुकेशन देना जरूरी है। महाराष्ट्र में 900 से ज्यादा किशोरों पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि, जिन छात्रों को प्रजनन और यौन स्वास्थ्य की सही जानकारी नहीं थी। उनमें जल्दी यौन संबंध बनाने की संभावना ज्यादा थी। यह बहुत जरूरी है कि, हम सेक्स एजुकेशन के बारे में गलत धारणाओं को दूर करना शुरू करें।
इसके फायदों के बारे में सभी को सही जानकारी दें, ताकि हम सेक्स हेल्थ के नतीजों को बेहतर बना सकें।
बच्चों के खिलाफ अपराध सिर्फ यौन शोषण तक ही सीमित नहीं रहते हैं। उनके वीडियो, फोटोग्राफ और रिकॉर्डिंग के जरिए ये शोषण आगे भी चलता है।
ये कंटेंट साइबर स्पेस में मौजूद रहते हैं, आसानी से किसी को भी मिल जाते हैं।
ऐसे मटेरियल अनिश्चितकाल तक नुकसान पहुंचाते हैं। ये यौन शोषण पर ही खत्म नहीं होता है, जब-जब ये कंटेंट शेयर किया जाता है और देखा जाता है, तब-तब बच्चे की मर्यादा और अधिकारों का उल्लंघन होता है। हमें एक समाज के तौर पर गंभीरता से इस विषय पर विचार करना होगा।

हम संसद को सुझाव देते हैं कि, POCSO एक्ट में बदलाव करें और इसके बाद चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द की जगह चाइल्ड सेक्शुअली एब्यूसिव एंड एक्सप्लॉइटेटिव मटेरियल (CSEAM) का इस्तेमाल किया जाए।
इसके लिए अध्यादेश भी लाया जा सकता है। CSEAM शब्द सही तरीके से बताएगा कि, यह महज अश्लील कंटेंट नहीं, बच्चे के साथ हुई घटना का एक रिकॉर्ड है। वो घटना जिसमें बच्चे का यौन शोषण हुआ या फिर ऐसे शोषण को विजुअली दिखाया गया हो।

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