“धर्म के उत्थान में दूसरे की हानि उचित नहीं: मोहन भागवत”

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नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि हमारे धर्म की हानि करके आपके धर्म का उत्थान नहीं हो सकता। भारत में अलग पंथ-संप्रदाय होने के बावजूद झगड़ा नहीं होता है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय  में आयोजित अणुव्रत न्यास निधि व्याख्यान में भागवत ने पढ़ाए जाने वाले इतिहास पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि हमारे यहां पश्चिम का इतिहास पढ़ाया जाता है लेकिन पश्चिम में भारत का इतिहास नहीं पढ़ाया जाता। हालांकि अब सुन रहा हूं कि भारत में भी इतिहास बदला जा रहा है। 
उन्होंने कहा कि आज अमीरी और गरीबी की खाई बढ़ गई है। दुनिया में भय बढ़ गया है। सारी दुनिया अलग-अलग है। इसे जोड़ने वाला कुछ नहीं है। इससे लगता है कि सारी दुनिया एक सौदा है। जिसका जब तक उपयोग है, तब तक उसे लोग रखते हैं। जिसकी लाठी, उसकी भैंस। जो बलशाली होगा, उसका राज होगा। लोग यही सोचते हैं कि जब तक मरते नहीं, तब तक उपभोग करो, यही जीवन का लक्ष्य है। इसी कारण दुनिया में दुख पैदा होता है। 
उन्होंने कहा कि भारत का होना है तो भारत के स्वभाव के मुताबिक होना पड़ेगा। भौतिकता के आगे जाना पड़ेगा। भागवत ने कहा कि लोगों को सोचना होगा कि एक धर्म की हानि करके दूसरा धर्म नहीं चल सकता। ये बात हमारे पूर्वजों ने कही थी कि जो हम करेंगे, उसके परिणाम सब पर पड़ेंगे। मेरे धर्म की हानि होने पर आपका धर्म नहीं चल सकता। जहां ऐसी समस्या आती है, वहां खुद का त्याग करके हमने दूसरों के धर्म को चलाया है।
भारतीयता में स्वयं का त्याग करके दूसरों की रक्षा करने की भावना किस तरह निहित है, यह दर्शाने के लए उन्होंने एक उदाहरण देते कहा कि एक बार एक कबूतर ने बाज से बचने के लिए राजा के पास शरण ली। तब राजा ने कबूतर के बराबर अपना मांस बाज को दिया था। यही भारतीयता है।
मोहन भागवत ने अपने व्याख्यान में कहा कि दुनिया में सब शोषण के शिकार हैं। यही वजह कि सभी भारत की तरफ देखते हैं। हमारा मानना है कि किसी को मत जीतो, केवल अपने आपको जीतो। ये पूरी दुनिया में कहीं नहीं होता है, ये केवल भारत में होता है। संघ प्रमुख ने कहा कि भारत दुनिया का सिरमौर था क्योंकि भारत की अपनी दृष्टि है। दुनिया देखती है कि नया रास्ता कौन देगा, वो भारत देगा। परिवार मनुष्य के आचरण से बनता है। अपनी छोटी-छोटी बातें ठीक करनी चाहिए।