Thursday, November 21, 2024
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रिश्वत देने के लिए सरकार देगी पैसे, ट्रैप मनी के लिए बनेगा 50 लाख का रिवॉल्विंग फंड

भोपाल । भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए मप्र सरकार ने एक अनोखी पहल शुरू की है। इसमें अगर कोई भी सरकारी कर्मचारी रिश्वत मांगता है। वहीं अगर पीडि़त के पास रिश्वत देने के लिए पैसे नहीं हैं तो उसे सरकार पैसे देगी। सरकार रिश्वत की मांग करने वाले सरकारी अधिकारियों को पकड़वाने के लिए ट्रैप मनी के रूप में 45 से 50 लाख रुपए का रिवॉल्विंग फंड बनाएगी। बता दें कि अभी मप्र में किसी भ्रष्ट अधिकारी को पकड़वाने के लिए पीडि़त को ही पैसे का इंतजाम करना पड़ता है। वहीं कई बार पीडि़त पैसों का जुगाड़ नहीं कर पाता है तो विजिलेंस को अधिकारियों को ट्रैप करने में परेशानी होती है। वहीं अगर ट्रैप मनी फंड बनने के बाद रिश्वत के पैसे के लिए पीडि़त को परेशानी नहीं उठानी पड़ेगी। गौरतलब है कि अभी जब लोकायुक्त किसी की शिकायत पर रिश्वतखोर अधिकारी-कर्मचारी को ट्रैप करती है तो घूस की जो रकम दी जाती है, वह केस खत्म होने पर ही आपको वापस मिलेगी। इसमें 5 से 7 साल भी लग जाते हैं। प्रदेश में इस साल लोकायुक्त के हत्थे चढ़े 130 भ्रष्टाचारियों के फेर में पीडि़तों के 75 लाख रुपए फंसे हैं। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। भ्रष्टों की मांग पर अब आपको जेब से पैसा नहीं निकालना होगा। यह फंड सरकार देगी। इसके लिए रिवॉल्विंग फंड होगा। दरअसल, यदि कोई अफसर रिश्वत में मांगता है तो शिकायतकर्ता को भरोसा दिया जाता है कि जो रकम वह घूस में देगा, वह लौटा दी जाएगी। भ्रष्टों को पकडऩे के बाद रिवॉल्विंग फंड से शिकायतकर्ता को वह राशि लौटाई जाती है। जब केस का निराकरण होता है, तब घूस की रकम कोर्ट से रिलीज करा एजेंसियां फंड में रख लेती हैं।

45 से 50 लाख रुपए का फंड

सरकार लोकायुक्त के लिए अलग से (रिवाल्विंग) फंड बनाने जा रही है। इसमें 45 से 50 लाख रुपए रहेंगे। पीडि़त की शिकायत पर भ्रष्टाचारी अफसर-कर्मी की मांग के अनुसार घूस की रकम लोकायुक्त देगी। फिर कार्रवाई कर जब्त करेगी। इससे पीडि़तों की कमाई बरसों लोकायुक्त और कोर्ट के चक्कर में नहीं फंसेगी। घूसखोरों को पकड़वाने लोग आगे आएंगे। विशेष पुलिस स्थापना लोकायुक्त जयदीप प्रसाद ने बताया कि इसके लिए शासन को प्रस्ताव भेजा गया है। कुछ राज्यों में पहले से यह व्यवस्था है। शुरुआत में इसके लिए लगभग 50 लाख रुपये का फंड बनाने का प्रस्ताव है। सूत्र बताते हैं, रिवॉल्विंग फंड की सरकार से अनुमति मिलते ही संभागवार इसे बांटा जाएगा। 50 लाख रुपए के फंड में से हर संभाग को करीब 5-5 लाख रुपए आवंटित किए जाएंगे। जिस संभाग क्षेत्र में भ्रष्टों पर कार्रवाई होगी, वहां उसी फंड से रुपए का इस्तेमाल होगा। भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसने के लिए राज्यों में अलग-अलग व्यवस्था है। राजस्थान मेंं एसीबी भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई करती है। पीडितों को राहत देते हुए राज्य सरकार ने 2021 में 1 करोड़ का रिवॉल्विंग फंड बनाया। बाद की सरकार ने भी इस फंड को जारी रखा। उत्तराखंड में भ्रष्टों पर विजिलेंस विभाग कार्रवाई करता है। पीडि़तों के रुपए फंसने पर सरकार ने 2022 में दो करोड़ के रिवॉल्विंग फंड की व्यवस्था की। हरियाणा में स्टेट विजिलेंस ब्यूरो के प्रस्ताव को नवंबर 2022 में सरकार ने मंजूरी दी। भ्रष्टों पर कार्रवाई के लिए 1 करोड़ के रिवॉल्विंग फंड की तैयारी।

सालों से फंसी है घूस की रकम

सरकार नई व्यवस्था इसलिए लाने की तैयारी कर रही है कि लोगों द्वारा दी जाने वाली घूस की रकम ट्रैप के बाद सालों तक फंसी रहती है। जबलपुर में शहपुरा भिटौरी के अर्जुन साहू की जमीन का सीमांकन होना था। पटवारी ने 30 हजार रुपए मांगे। 20 हजार में सौदा हुआ। अर्जुन ने रुपए दिए और लोकायुक्त ने पटवारी को ट्रैप कर लिया। ये 20 हजार रुपए एक साल से फंसे हैं। अब तक अर्जुन को नहीं मिले। वहीं ग्वालियर नगर निगम के अफसर मनीष कनौजिया ने अनूप कुशवाह के मकान को अवैध बता तोडऩे का नोटिस दिया। 3 लाख घूस मांगी, 2 लाख में सौदा हुआ। 50 हजार घूस देते लोकायुक्त ने पकड़ा। 4 साल में केस नहीं खत्म हुआ, अनूप रुपए की वापसी का इंतजार कर रहा है।

शिकायतकर्ताओं को तत्काल मिलेगी ट्रेप की राशि

लोकायुक्त संगठन अब किसी पीडि़त की शिकायत पर किसी शासकीय सेवक को रिश्वत लेते रंगेहाथ पकड़ती है तो जब्त राशि शिकायतकर्ता को तत्काल मिल जाएगी। क्योंकि लोकायुक्त पुलिस ट्रेप की जो राशि पकड़ती है वह आवेदक को खुद देनी पड़ती है, ऐसे में प्रकरण के निराकरण होने तक राशि फंस जाती है। अब आवेदक को राशि तत्काल मिल जाएगा। इसके लिए फंड बनाने का प्रस्ताव भेजा गया है। बाद में कोर्ट से मामले का निपटारा होने के बाद यह राशि विशेष निधि में पहुंच जाए। इस तरह राशि का आना-जाना (रोटेशन) बना रहेगा। लोकायुक्त पुलिस के अधिकारियों ने बताया कि केस का निपटारा होने में औसतन 10 वर्ष लग जाते हैं। तब तक राशि शिकायतकर्ता को नहीं मिल पाती। यह राशि जब्ती में कोर्ट के अधीन रहती है। इसका कहीं उपयोग भी नहीं किया जा सकता। न ही शिकायतकर्ता को इस राशि का ब्याज मिल पाता है।

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