भोपाल । बीते कुछ सालों में मप्र ऐसा राज्य बन गया था, जिसने पंजाब जैसे गेहंू उत्पादक राज्य तक को पीछे छोड़ दिया था, लेकिन अब एक बार फिर से मप्र गेंहू के उत्पादन में पिछड़ता नजर आने लगा है। इसकी वजह है अब प्रदेश के किसानों में गेहंू उत्पादन की जगह सब्जी की फसलों की तरफ बढ़ता रुझान। इसका असर यह है कि सात सालों तक लगातार कृषि कर्मण पुरस्कार पाने वाले राज्य में बीते चार सालों से लगातार गेहंू का उत्पादन गिरता ही जा रहा है। दरअसल, किसानों को गेंहू की फसल की तुलना में सब्जियों की फसल में कई गुना अधिक फायदा होता है। ऐसे ही एक किसान का कहना है कि वे बीते कई सालों से गेहूं की खेती जगह अब सब्जी उत्पादन कर रहे हैं। सब्जियों से अच्छी आय हो जाती है।
सालभर में दस एकड़ में गेहूं उत्पादन करने में जितनी आय होती थी, उससे ज्यादा सिर्फ डेढ़ एकड़ में सब्जियों से होने लगी है। हालांकि कम होते गेंहू उत्पादन के मामले में अफसरों का अपना तर्क है। उनका कहना है कि इसके पीेछे की वजह है मौसम आने वाला परिवर्तन। इससे प्रदेश के किसानों की आय दोगुना करने सरकार के प्लान पर असर पड़ा है। उत्पादन में कमी आने के पीछे कृषि वैज्ञानिक क्लाइमेट चेंज मान रहे हैं। वहीं किसानों ज्यादा मुनाफा देने वाली फसलों की बोवनी कर रहे हैं।
गेहूं की फसल रबी सीजन में होती है। दिसंबर के आखिरी और जनवरी के पहले सप्ताह में तापमान में काफी वेरिएशन होता है। अगर न्यूनतम तापमान 2 से 3 डिग्री तक पहुंच जाता है तो गेहूं के दाने पोचे हो जाते हैं और पाले का असर भी गेहूं पर ज्यादा होता है। आमतौर पर गेहूं की फसल 110 से 120 दिन में पकती है, जबकि सब्जियों में आलू दो माह में ही तैयार हो जाता है। ऐसे में किसान एक ही अवधि में 2 बार आलू की फसल ले लेते हैं। किसान लाभ के लिए उन फसलों की ओर बढ़ रहे हैं, जिनकी कीमत गेहूं से दोगुनी रहती है। किसानों का धान की ओर रुझान बढ़ा है। सब्जी हाईब्रीड की उगाने से किसानों की आय में भी बढ़ोत्तरी हो रही।
गेहूं उत्पादन में पंजाब को टक्कर देने वाले मध्यप्रदेश में वर्ष 2019-20 में 371.98 लाख मीट्रिक टन उत्पादन हुआ था जो 2023-24 में 329.72 लाख मीट्रिक टन उत्पादन रह गया। राज्य के आंकड़े भी बता रहे कि अनाज में 1.91 प्रतिशत की कमी आई है। वहीं दालों में 42.62 प्रतिशत और तिलहन में 7.32 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। सब्जी उत्पादन में 236.41 मीट्रिक टन से बढकऱ 242.62 एमटी हो गया।
गेहूं के कारोबार से जुड़े एक व्यापारी का कहना है कि खेती का पैटर्न बदलने से गेहूं की आवक में 15 से 20 प्रतिशत तक की कमी आई है। पैदावार में कमी के साथ ही गेहूं की दक्षिण भारत में खपत बढऩा भी बड़ा कारण है। पहले मंडी में सीजन में हर दिन करीब 15 हजार क्विंटल गेहूं आता था, अब करीब 12 हजार क्विंटल आवक रह गई है।
अब किसानों को रास नहीं आ रही गेहूं की फसल
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