जबलपुर । सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश शासन की वह अंतरिम मांग पूरी करने से इनकार कर दिया, जिसके जरिये हाई कोर्ट के पूर्व आदेश पर रोक की राहत चाही गई थी। उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण अंतरिम आदेश के जरिए राज्य शासन को निर्देश दिया था कि अपनी इच्छा से विवाह करने वाले वयस्कों पर मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम-2021 की धारा-10 के अंतर्गत मुकदमा नहीं चलाया जाए। मप्र हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति सुजय पाल व न्यायमूर्ति प्रकाश चंद्र गुप्ता की युगलपीठ ने अपने आदेश में साफ किया था कि धारा 10, जो मतांतरण के इच्छुक नागरिक के लिए जिला मजिस्ट्रेट को इस संबंध में (पूर्व) घोषणा देना अनिवार्य बनाती है, प्रथमदष्ट्या असंवैधानिक प्रतीक होती है। लिहाजा, आगामी आदेश तक राज्य शासन इसके आधार पर वयस्क नागरिकों पर मुकदमा नहीं चलाएगा। यदि वे अपनी इच्छा से विवाह करते हैं तो उनके विरुद्ध मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम की धारा 10 के उल्लंघन के लिए कठोर कार्रवाई नहीं की जाएगी। हाई कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में यह साफ किया कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायदृष्टांतों के आधार पर याचिकाकर्ताओं द्वारा अपनी इच्छा से दो वयस्क नागरिकों के विवाह के संबंध में चाही गई राहत का आधार मौजूद था। कोर्ट ने मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम-2021 के प्रविधानों को चुनौती देने वाली भोपाल निवासी एलएस हरदेनिया और आम खान सहित आठ लोगों की याचिकाओं पर संयुक्त सुनवाई करते हुए उक्त व्यवस्था दी थी। याचिकाकर्ताओं ने अधिनियम के तहत किसी के विरुद्ध मुकदमा चलाने से राज्य को रोकने के लिए राहत चाही थी। अधिनियम की धारा 10 में धर्म परिवर्तन के इच्छुक को कलेक्टर को आवेदन देने की शर्त लगाई गई थी। याचिकाकर्ताओं ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के विरुद्ध बताया था।