मध्यप्रदेश में लोकायुक्त की क्या स्थिति है। लोकायुक्त की जांच सत्ता में बैठे शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ अभयदान कैसे देती है, इसका एक उदाहरण राष्ट्रीय स्तर के एक दैनिक अख़बार ने अपनी मुख्य आवरण कथा में हैडिंग के साथ छापा 'ईडी भी हैरान-लोकायुक्त ने आरोपियों के बचने के रास्ते क्यों छोड़े, न कार पकड़ी, न सहयोगी के घर छापा मारा'। यह मामला अभी ताजे सौरभ शर्मा परिवहन घोटाले को लेकर प्रदेश के लोकायुक्त जैसे संस्थान की कार्य प्रणाली का एक छोटा सा अंश भर है। अगर कोई शिकायत मुख्यमंत्री के खिलाफ हो तो उसकी क्या जॉच होगी? यह सोचने वाली बात है। ऐसा ही कुछ काम लोकायुक्त ने उज्जैन स्थित पत्रकार राजीव सिंह भदौरिया की दिनांक 5/10/2023 की शिकायत पर भी किया है, हो सकता है कि मामले को लोकायुक्त ने नस्तीबद्ध भी कर दिया हो। मध्यप्रदेश की जॉच एजेंसियों के कारण एक पत्रकार (राजीव सिंह भदौरिया) को अपनी जान बचाने के लिये जतन करने पड़ रहे हैं। कुछ इसी तरह लोकायुक्त ने महाकाल लोक घोटाले को लेकर भी किया था। लोकायुक्त का लचर रवैया हाल ही में परिवहन विभाग के एक कांस्टेबल सौरभ शर्मा के मामले में भी देखा जा सकता है। लोकायुक्त कैसे-कैसे हथकंडे अपनाकर सौरभ शर्मा और उससे जुड़े रसूखदार लोगों को बचाने का प्रयास कर रहा है। जब मामला मुख्यमंत्री से जुड़ा हो तो हम कैसे कह सकते हैं कि जांच एजेंसियां निष्पक्ष होकर अपना काम करेंगी? सवाल बड़ा है और इसका जवाब हम जानना चाहते हैं।
अभी हाल ही में भोपाल स्थित कुछ पत्रकारों को मोहन यादव सरकार के खिलाफ छापने के कारण उनको आवंटित शासकीय आवास खाली कराने के नोटिस भी प्राप्त हुए हैं। और कुछ पत्रकारों की अधिमान्यता भी निरस्त कर दी गई है। ऐसे में निश्चित तौर पर मुख्यमंत्री मोहन यादव के खिलाफ ऐसी शिकायतों का संज्ञान स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को करना चाहिए या फिर माननीय हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट से न्याय मिलना चाहिए। कहने में कोई अतिश्योक्ति नही कि आज प्रदेश के मुख्यमंत्री, गृहमंत्री समेत 10 विभागों के मंत्री मोहन यादव के खिलाफ प्रदेश की कोई भी जॉच एजेंसी निष्पक्ष जॉच की स्थिति में नही है।
मुख्यमंत्री मोहन ने रखे अनुभवहीन सलाहकार
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने सलाह के लिए ऐसे लोगों की टीम तैयार कर रखी है जो अनुभवहीन के साथ-साथ गलत सलाह देकर मुख्यमंत्री को गुमराह करने का काम करते हैं। वहीं मुख्यमंत्री मोहन यादव भी सलाहकारों की सलाह पर ऐसे फैसले ले रहे हैं जिनका कोई आधार ही नही बनता है। और ऐसे फैसले मुख्यमंत्री की छवि आम जनता के बीच में धूमिल कर रहे हैं। आईएएस भरत यादव और मुख्यमंत्री के करीबी कई अधिकारी इस टीम का हिस्सा हैं। किसी भी पत्रकार की अधिमान्यता खत्म करना उसकी पत्रकारिता पर कुठाराघात है। इस कदम का मतलब है कि पत्रकारों के बीच खौफ पैदा करना ताकि अन्य कोई पत्रकार भी मुख्यमंत्री के खिलाफ सच्चाई प्रकाशित न कर सके।