भोपाल : संघर्षों से तपकर जिंदादिली से खुद का वजूद बनाने की यह कहानी सागर जिले की है। रहली ब्लॉक के एक छोटे से गांव धनगुंवा की रहने वाली माया विश्वकर्मा संघर्ष, आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की जीवन्त मिसाल बन गई हैं। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति हमेशा कमजोर ही रही। माया और उनके पति दिहाड़ी पर मेहनत-मजदूरी से बमुश्किल अपनी रोजी-रोटी का इंतजाम करते थे। इन मुश्किल हालातों के बीच माया को सरकार की मदद मिली, जिससे उनके जीवन का पूरा परिदृश्य ही बदल गया।
माया ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत संचालित समूह के बारे में सुना। उन्हें पता चला कि इस योजना से ग्रामीण क्षेत्र के गरीब परिवारों को आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलती है, ताकि वे खुद का रोजगार शुरू कर अपने पैरों पर खड़े हो सकते हैं। माया के लिए यह उम्मीद की किरण थी। उन्होंने इससे जुड़ने का निर्णय लिया और समूह में शामिल हो गईं। समूह की मदद से उन्हें बैंक से ऋण मिला।
माया ने इस राशि से एक छोटी सी मनिहारी की दुकान खोल ली। शुरुआत में यह दुकान बहुत साधारण थी, लेकिन उन्होंने अपना काम बड़ी ईमानदारी और मेहनत से किया। मेहनत ने रंग लाना शुरू किया और दुकान से प्राय: 500-600 रूपये रोजाना आमदनी होने लगी। माया का आत्मविश्वास बढ़ा, और उन्होंने इस व्यवसाय को और बढ़ाने का फैसला किया।
कुछ समय बाद उन्होंने अपनी दुकान में सभी प्रकार का किराना सामान और फोटो कॉपियर मशीन भी रख ली। इससे उनकी आय बढ़ने लगी। अब उनकी आमदनी लगभग दोगुनी हो चुकी थी। माया का जीवन अब पहले से कहीं बेहतर था। उन्होंने अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में दाखिल करवाया, ताकि उनका भविष्य उज्जवल हो सके। कड़ी मेहनत ने माया को आत्मनिर्भर बना दिया और अब वे अपने परिवार को पहले से बेहतर जीवन देने में समर्थ होने लगीं।
माया ने अपने सपनों को साकार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। धीरे-धीरे उन्होंने अपने घर को पक्का बनाया। मोबाइल रिपेयरिंग की दुकान भी शुरू की और जब जमापूंजी बढ़ गई, तो एक स्कूल मैजिक वाहन भी खरीद लिया। अब तो माया के दिन ही बदल गये हैं। अब वो अपने गांव के आत्मनिर्भर महिला के रूप में जानी-पहचानी जाती हैं।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ने माया विश्वकर्मा जैसे लाखों परिवारों को आत्मनिर्भर बनने का मौका दिया है। माया गर्व से कहती हैं कि आजीविका मिशन की मदद से उनका परिवार अब सुरक्षित और खुशहाल है। माया का मानना है कि…….
जिंदगी जब दर्द दे, तो बड़ी ही खामोशी से पी जाना चाहिए…
और जब गुल दे, तो गुलशन की तरह बाअदब जी जाना चाहिए…