Stethoscope: आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के बढ़ते उपयोग के चलते अब डॉक्टर्स द्वारा सबसे ज्यादा उपयोग किए जाने वाले मेडिकल इक्यूपमेंट स्टेथोस्कोप के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है. मरीज की बीमारी को जांचने में इस स्टेथोस्कोप का काफी योगदान होता है. अभी तक भी डॉक्टर्स इस पर निर्भर रहे हैं.
करीब 200 से भी अधिक सालों से डॉक्टर्स का साथ निभाने वाले इस उपकरण का यूज आज भी हो रहा है. इसकी तकनीक को अभी तक बदला नहीं गया है. यह विचार मरीन लाइन्स के बॉम्बे हॉस्पिटल में AI और हेल्थकेयर पर आयोजित एक सम्मेलन में मौजूद डॉक्टर्स ने रखे. इस सम्मेलन में स्टेथोस्कोप के भविष्य पर विचार विमर्श किया गया. इस सम्मेलन में यह भी बात सामने आई कि पुराने डॉक्टर्स द्वारा हार्ट, लंग्स और अन्य अंगों की आवाज को सुनकर बीमारियों का पता लगाने की कला भी अब खत्म होती जा रही है. आजकल नई जेनरेशन डॉक्टर्स टेक्नोलॉजी पर निर्भर होने लगे हैं. ऐसे में शरीर के अंगों,हार्ट और नाड़ी की आवाज सुनकर परेशानी का पता लगाने की विधि को बरकरार रखना एक बड़ी चुनौती है.
2016 में स्टेथोस्कोप ने पूरे किए थे 200 साल
मेडिकल उपकरण स्टेथोस्कोप ने अपने बाइसेन्टेनियल (200 साल पूरे) माइलस्टोन को छुआ था. इस दौरान द गार्जियन अखबार में छपी एक खबर में लिखा था कि न्यूयॉर्क में भारतीय मूल के हार्ट स्पेशलिस्ट डॉ. जगत नरूला ने कहा है कि स्टेथोस्कोप के अंत का दौर शुरू हो चुका है. अब दुनिया में इसका अंत देखेगी. हालांकि जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में बाल चिकित्सा के एसोसिएट प्रोफेसर डब्ल्यू रीड थॉम्पसन ने उनके इस बयान का विरोध भी किया था. स्टेथोस्कोप का अविष्कार 1816 में रेने थियोफाइल हयासिंथे लैनेक ने किया था.
भारत की बात करें तो यहां भी डॉक्टर्स इसको लेकर अपनी अलग-अलग राय देते हैं. इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. सत्यवान शर्मा की मानें तो टेक्नोलॉजी की अपग्रेड होने से ट्रेडेशनल स्टेथोस्कोप पर निर्भरता कम हो जाएगी. अब इसका एनॉलॉग एडिशन देखने को मिलेगा. इसमें रोगी की जांच और सुगमता से हो जाएगी. इस ट्रेडेशनल स्टेथोस्कोप को इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल और अब एआई-संचालित एडिशन से जबरदस्त कंपटीशन मिलेगा. डॉ. शर्मा का मानना है कि धीरे-धीरे इसका भी आकार बदल जाएगा. वहीं, डॉक्टर्स अब अपने कान और दिमाग का उपयोग करने के बजाय एआई के जवाब पर निर्भर हो जाएंगे. एआई बेस्ट इक्यूपमेंट तुरंत बीमारी का पता लगाकर डॉक्टर्स को बता सकेंगे.
बदल सकता है स्वरूप
चर्चा में मौजूद श्वास रोग विशेषज्ञ डॉ. लैंसपॉट पिंटो का कहना है कि स्टेथोस्कोप के बिना मेडिकल प्रैक्टिस की कल्पना करना भी मजाक है. उन्होंने कहा कि टेक्नोलॉजी में बदलाव संभव है. एआई बेस्ड टेक्नोलॉजी में अब साउंड एनालिसिस भी शामिल है.आईआईटी द्वारा भी इसे विकसित किया जा चुका है.इसको स्टेथोस्कोप से जोड़ा जा सकता है और साउंड को रिकॉर्ड कर सकता है. इसके साथ ही ग्राफिक्स के रूप में साउंड का एनालिसिस कर सकता है. इसको ब्लूटूथ या ऐप के जरिए ट्रांसफर किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि इससे यह नहीं है कि स्टेथोस्कोप की जरूरत नहीं रही है. स्टेथोस्कोप से हार्ट बीट की अनियमितताओं, हार्ट में हो रही फुसफुसाहट, सांस से जड़ीं समस्याओं का पता लगाया जा सकता है. इससे आंत की भी आवाज को सुनकर बीमारी का पता लगाया जा सकता है.
टेक्नोलॉजी से होगा लाभ
एलटीएमजी (सायन) अस्पताल में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अरुण नायक ने कहा कि इनमें से कई कार्यों को अब नई टेक्नोलॉजी से लैस उपकरणों का यूज करके किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि डॉपलर मशीनें भ्रूण के दिल की धड़कन सुनने के लिए अच्छी मानी जाती हैं. यह सोचना बेवकूफी है कि स्टेथोस्कोप तकनीक के साथ नहीं बदलेगा. 6 माह पहले यूके में एक प्रोग्राम की शुरुआत हुई थी. इसमें हार्ट फेलियर के शुरुआती इलाज में सहायता के लिए 100 जनरल डॉक्टर्स तो एआई से लैस स्मार्ट स्टेथोस्कोप के साथ तैनात किए जाने की प्लानिंग की गई थी. वहीं, कुछ डॉक्टर्स का यह भी मानना है कि भारत जैसे देश लंबे समय तक ट्रेडिशनल स्टेथोस्कोप का यूज करते रहेंगे.