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जानिए अनोखी मछली के बारे में, आंखें नहीं, त्वचा से भी देखती है

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Viral news: आज हम आपको एक अनोखी मछली के बारे में बताने जा रहे हैं, जो आंख नहीं, त्‍वचा से देखती है। बिना लड़े ही शिकारियों को मात दे देने में सक्षम है। दरअसल, इसमें रंग बदलने की क्षमता होती है, जिससे श‍िकारी समझ नहीं पाते और अक्‍सर यह मछली उनसे बचकर निकल आती है। इतना ही नहीं, यह दुनिया का एकमात्र ऐसा जीव है जिसकी खोपड़ी तो होती है, लेकिन रीढ़ की हड्डी नहीं होती। लगभग 300 मिलियन वर्षों से यह मछली अस्‍त‍ित्‍व में है। हम बात कर रहे हॉगफ‍िश (Hogfish) मछली के बारे में।

द गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक, यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना के वैज्ञानिकों ने लंबे रिसर्च के बाद पाया कि हॉगफ‍िश की त्‍वचा अन्‍य मछल‍ियों से बेहद अलग है। यह प्रकाश के संपर्क में आकर अपना रंग बदल सकती हैं। इतना ही नहीं, यह अपने आसपास की चीजों को इसी त्‍वचा की मदद से देख सकती हैं। इसे ऐसे समझें कि यह मछली त्‍वचा को ही आंख के रूप में उपयोग कर सकती है। इतना ही नहीं , हमले की स्थिति में यह अपने शिकारियों पर गंदा पदार्थ छोड़ती है, जो समुद्री जल के साथ घुलकर 20 लीटर तक हो जाता है और चारों ओर फैल जाता है। यह गंदगी शिकारियों को इतनी व्याकुल कर देती है कि वह हर हाल में इससे बाहर निकलने की कोश‍िश करते हैं।

त्वचा में प्रकाश-संवेदनशील प्रोटीन होता है

यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना के जीव विज्ञानी लोरियन श्वेइकर्ट ने कहा, इनकी त्‍वचा इतनी संवेदनशील होती है कि वे सिर्फ बाहरी चीजों को नहीं बल्‍क‍ि अपने शरीर को भी देख सकती हैं। इनकी त्‍वचा में क्रोमैटोफ़ोर्स नामक कई कोशिकाएं होती हैं, जिनमें कई रंगों के कण होते हैं। जैसे ही कोई इनके करीब आता है, क्रोमैटोफोर सेलुलर सिस्‍टम को रिपोर्ट करता है और तुरंत रंग बदल जाता है। नेचर कम्युनिकेशंस में पब्‍ल‍िश रिपोर्ट के मुताबिक, हॉगफिश की त्वचा में ऑप्सिन नामक एक प्रकाश-संवेदनशील प्रोटीन होता है, जो उनकी आंखों में पाए जाने वाले ऑप्सिन से अलग होता है. रंगों के कण कोशिका के अंदर घूमते रहते हैं। जब वे एक-दूसरे के करीब आते हैं तो वे पारदर्शी हो जाते हैं, जबकि जब वे फैलते हैं तो रंग गहरे दिखाई देते हैं।

अपने अंदर की तस्‍वीर भी अपनी त्‍वचा से ले सकती है

श्वेइकर्ट ने कहा कि इसका मतलब यह है कि हॉगफिश की त्वचा से टकराने वाले प्रकाश को इस प्रकाश-संवेदनशील परत तक पहुंचने से पहले क्रोमैटोफोर्स से गुजरना पड़ता है। यह मछली को प्रकाश में परिवर्तन को पकड़ने और इन वर्णक से भरे क्रोमैटोफोरस के माध्यम से फ़िल्टर करने की अनुमति देता है। कुछ हद तक पोलेरॉइड की तरह। रिसर्च टीम का हिस्‍सा रहे ड्यूक विश्वविद्यालय के जीवविज्ञानी सोंके जॉन्सन ने कहा, यह मछली इतनी अनोखी है कि अपने अंदर की तस्‍वीर भी अपनी त्‍वचा से ले सकती है। वह बता सकती है कि उसकी त्‍वचा अंदर से कैसी दिखती है।

शोधकर्ता ने कहा

बर्लिन में प्राकृत‍िक इत‍िहास संग्रहालय के शोधकर्ता ने कहा, कई जानवर अपनी आंखों से अपने शरीर को पूरी तरह देख नहीं पाते। यह जानने के लिए वे अक्‍सर क्रोमैटोफोरस का विस्‍तार या संकुचन करते हैं। यह एक साफ़ और सरल तंत्र प्रदान करता है जिसके द्वारा मछलियां अपनी आंखों पर भरोसा करने के बजाय, अपने पूरे शरीर में फैले प्रकाश सेंसर का उपयोग करके बता सकती हैं कि उन्होंने सफलतापूर्वक रंग बदल लिया है या नहीं। लेकिन यह पहली बार है कि इस मछली पर इतना गहरा अध्‍ययन सामने आया है।

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