बिहार में एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर बीजेपी-जेडीयू की बैठक…सहयोगी दलों को खुश करने का पूरा प्लान बीजेपी के पास तैयार 

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पटना । बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में सीटों के बंटवारे पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के बीच बातचीत चल रही है, जिसमें चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी-रामविलास (एलजेपी-आर), जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम), और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) के लिए सीटें तय की जा रही हैं।
एनडीए सूत्रों के मुताबिक, कुल 243 विधानसभा सीटों में से 201 से 205 सीटें बीजेपी और जेडीयू आपस में लड़ेंगी। शेष 38 से 42 सीटें अन्य तीन सहयोगी दलों के लिए छोड़ी जाएंगी। दोनों के बीच सहमति बनी है कि जेडीयू बीजेपी से एक सीट ज्यादा लड़ेगी। अगर बीजेपी 101 सीट लड़ती है, तब जेडीयू 102 लड़ेगी। वहीं 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने 115 और बीजेपी ने 110 सीटों पर चुनाव लड़ा था।
इसके साथ ही चिराग पासवान 30 सीटों के साथ एक राज्यसभा सीट की भी मांग कर रहे हैं, जिससे उनकी मां रीना पासवान को सांसद बनाया जा सके। इसपर बीजेपी ने चिराग के लिए 18 से 22 सीटों का प्रस्ताव रखा है। अगर उन्हें एक राज्यसभा सीट मिलती है, तब सीटों की संख्या में कुछ और कमी की जा सकती है। इतना ही नहीं उपमुख्यमंत्री पद भी इस डील का हिस्सा हो सकता है, इसके लिए चिराग अरुण भारती का नाम आगे बढ़ा सकते हैं। चिराग खुद मुख्यमंत्री से नीचे के किसी पद के लिए तैयार नहीं हैं। वहीं एनडीए में बिहार में एक ओर सहयोगी जीतनराम मांझी (हम) 2020 से ज्यादा सीटों की मांग कर रहे हैं। बीजेपी उन्हें 7 से 9 सीटों के दायरे में देख रही है। इसके लिए बीजेपी मांझी को याद दिला सकती है कि उन्हें इकलौते सांसद होने के बावजूद बड़ा कैबिनेट मंत्रालय मिला है और उनके बेटे संतोष सुमन को राज्य में मंत्री बनाया गया है। बीजेपी के इस प्रस्ताव पर केंद्रीय मंत्री और हम पार्टी के प्रमुख मांझी का तर्क है कि पासवान की तुलना में मुसहर जाति का वोट ट्रांसफर रिकॉर्ड बेहतर है। इसके बाद उपेंद्र कुशवाहा (आरएलएम) जिनकी पार्टी को लोकसभा चुनाव में अपेक्षित सफलता नहीं मिली, उन्हें भी बीजेपी 7 से 9 सीटों के दायरे में रख रही है। एनडीए में पिछले कई दिनों से चर्चा है कि विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें केंद्र में मंत्री बनाया जा सकता है, जिससे वे अधिक सीटों की जिद न करें।
शाहाबाद क्षेत्र को चुनाव से पहले साधना एनडीए की प्राथमिकता है, क्योंकि 2020 और 2024 दोनों चुनावों में इस क्षेत्र में उन्हें निराशा हाथ लगी थी। मुकेश सहनी के बारे में यह संभावना है कि वे आखिरी मौके पर भी पाला बदल सकते हैं। इसलिए, एनडीए में सीटों का अंतिम बंटवारा तब तक नहीं हो सकता, जब तक विपक्षी महागठबंधन में पार्टियां अपनी सीटों का हिसाब-किताब न कर लें। 2020 में सहनी तेजस्वी यादव की प्रेसवार्ता से निकलकर एनडीए में शामिल हो गए थे, और तब बीजेपी ने अपने कोटे की 11 सीटें उन्हें दी थीं। अगर महागठबंधन में उन्हें कम सीटें मिलती हैं, वे फिर से एनडीए में आ सकते हैं, जिससे बीजेपी-जेडीयू को अपने अलावा अन्य तीन दलों की सीटों में अतिरिक्त कटौती करनी पड़ेगी। इसलिए एक चर्चा ये भी हैं कि एनडीए में सीटों का बंटवार महागठबंधन की फीचर साफ होने के बाद हो सकती है। क्योंकि महागठबंधन के सीट बंटवार पर ही मुकेश सहनी का रुख तय हो सकता है। इसकारण एनडीए के घटक दल अभी वेट एंड वॉच की स्थिति में है।