Kaal Sarp Dosh: कुंडली में 12 तरह के होते हैं कालसर्प दोष, कैसे पहचानें? जानें बचाव के उपाय…

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हिंदू शास्त्र में दो दोषों का काफी जिक्र किया जाता है. एक पितृ दोष और दूसरा काल सर्प दोष (Kaal Sarp Dosh). किसी जातक की कुंडली में इन दोषों मे से कोई एक दोष है तो उसे दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. काल सर्प दोष जीवन में कई तरह के दुष्परिणाम लेकर आता है. ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि जब कोई जातक जन्म लेता है तो उसकी कुंडली में तमाम योग रहते हैं. कुछ अच्छे तो कुछ बुरे. इनके असर जीवनभर रहते हैं. उन्होंने कहा कि काल सर्प दोष के चलते जातक को शारीरिक, आर्थिक और मानसिक तीनों प्रकार की समस्याएं परेशान करती हैं.

कालसर्प दोष का कारण

कुंडली में जब राहु और केतु एक तरफ और बाकी ग्रह दूसरी तरफ आ जाते हैं या राहु और केतु के कारण पैदा हुई ग्रहीय स्थिति के कारण कालसर्प दोष पैदा होता है.

कालर्सप दोष के संकेत

सपने में बार बार सांप का दिखाई देना, मन में अकारण भय का व्याप्त होना, परिवार में कलह, कार्यों में असफलता, धन हानि जैसे कारण कालसर्प दोष के संकेत माने जाते हैं.

काल सर्पदोष से हानि

ज्योतिषाचार्य के मुताबिक अगर कुंडली में कालसर्प दोष है तो जातक को जीवनभर आर्थिक परेशानियों से जूझना पड़ता है. वहीं, दंपति को संतान सुख भी नहीं मिलता. रोजगार संबंधी परेशानियां पीछा नहीं छोड़ती हैं. वहीं, जातक कर्ज के जाल में भी फंसा रहता है. कर्ज कम होने का नाम ही नहीं लेते. कार्यों में सफलता नहीं मिलती है.

हिंदू शास्त्र में 12 तरह के होते हैं कालसर्प दोष

  1. अनंत कालसर्प योग
    लग्न से सप्तम भाव तक राहु एवं केतु अथवा केतु एवं राहु के मध्य सूर्य, मंगल, शनि, शुक्र, बुध, गुरू, और चंद्रमा स्थित हों तो अनंत नामक काल सर्प योग निर्मित होता है. इस योग से ग्रस्त जातक का व्यक्तित्व एवं वैवाहिक जीवन कमजोर होता है. प्रथम व सप्तम भाव के मध्य कालसर्प योग में जन्मा व्यक्ति स्वतंत्र विचारों वाला, निडर होता है व आत्म सम्मान को सदा ऊपर रखता है लेकिन जीवन में संघर्ष करना पड़ता है.
  2. कुलिक काल सर्प योग
    द्वितीय से अष्टम भाव तक राहु केतु या केतु राहु के मध्य सभी ग्रह स्थित हों, तो कुलिक काल सर्प योग बनता है. इस योग से ग्रस्त जातक को धन और स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
  3. वासुकी काल सर्प योग
    तृतीया से नवम भाव तक राहु केतु या केतु राहु के मध्य सभी ग्रह स्थित हों, तो वासुकी काल सर्प योग होता है. इस योग से जातक को भाई एवं पिता की ओर परेशानी मिलती है और पराक्रम में कमी आती है.
  4. शंखपाल काल सर्प योग
    चतुर्थ से दशम भाव के मध्य राहु केतु या केतु राहु के मध्य अन्य सातों ग्रह स्थित हों, तो शंखपाल नामक काल सर्प योग बनता है. इसके कारण मातृ सुख में कमी, व्यापार में अवरोध, पद एवं प्रतिष्ठा में कमी आ सकती है.
  5. पद्म काल सर्प योग
    पंचम तथा एकादश भाव के मध्य राहु- केतु या केतु- राहु के बीच सभी ग्रह स्थित होने पद्म नामक काल सर्प योग बनता है. इससे ग्रस्त जातक को विद्याध्ययन, संतान सुख और स्नेह संबंधों में कमी आ सकती है.
  6. महापद्म काल सर्प योग
    छठवें से बारहवें भाव के मध्य राहु केतु या केतु राहु के बीच सभी ग्रहों की स्थिति से महापद्म नामक काल सर्प योग बनता है. इस योग के कारण जातक को रोग, कर्ज और शत्रुओं का अधिक सामना करना पड़ सकता है.
  7. तक्षका काल सर्प योग
    सप्तम से प्रथम के मध्य राहु केतु या केतु राहु के बीच सभी ग्रह स्थित हों, तो तक्षक नामक काल सर्प योग बनता है. इस योग के कारण जातक का वैवाहिक जीवन दुखमय हो सकता है. उसे साझेदारी में हानि भी हो सकती है.
  8. कर्कोटक काल सर्प योग
    अष्टम भाव सें द्वितीय भाव के मध्य राहु केतु या केतु राहु के बीच सभी ग्रहों की स्थिति से कर्कोटक नामक कालसर्प योग निर्मित होता है. इससे ग्रस्त जातक की आयु क्षीण हो सकती है. इसके अलावा बीमारी, धन हानि या वाणी दोष संबंधी समस्याओं से गुजरना पड़ सकता है.
  9. शंखचूड़ काल सर्प योग
    नवम एवं तृतीया भावों के बीच राहु केतु अथवा केतु राहु के बीच अन्य सातों ग्रह स्थित हो, तो शंखचूड़ नामक काल सर्प योग बनता है. इस कुयोग के कारण भाग्योदय में अवरोध, नौकरी में दिक्कतें, मुकदमेबाजी से परेशान होना पड़ सकता है.
  10. घातक काल सर्प योग
    दशम तथा चतुर्थ भावों के मध्य यदि राहु केतु या केतु राहु के बीच सभी ग्रह स्थित हों, तो घातक काल सर्प योग बनता है. यह योग व्यापार में घाटा, प्रतिष्ठा में कमी, अधिकारियों से अनबन और सुख शांति में बाधा पहुंचाता है.
  11. विषधर काल सर्प योग
    ग्यारहवें से पांचवें भाव के बीच राहु केतु या केतु राहु के मध्य सभी ग्रह बैठे हों, तो विषधर काल सर्प योग बनता है. इससे ज्ञानार्जन में रुकावट, परीक्षा में असफलता, संतान सुख में कमी और अनपेक्षित हानि आदि का सामना करना पड़ता है.
  12. शेषनाग काल सर्प योग
    द्वादश से छठवें भाव में कालसर्प में जन्मे व्यक्ति की आंखें अक्सर कमजोर होती है, पढ़ाई आदि में अत्यधिक प्रयासों के बाद ही सफलता प्राप्त होती है. इसके कारण जातक अपने घर या देश से दूर रह संघर्ष करता है.

कालसर्प दोष के उपाय

  1. दुर्गा सप्तशती का नित्य पाठ करने से भगवान आशुतोष प्रसन्न होते हैं.
  2. शिवलिंग पर दूध, गंगाजल तथा शहद मिलाकर अभिषेक करें, उसके उपरांत बिल्वपत्र तथा पुष्प चढ़ाने से काल सर्प योग शांत होता है.
  3. सावन या शिवरात्रि में रुद्राभिषेक कराने से विशेष लाभ होता है.
  4. यदि लग्न में बृहस्पति व शुक्र बैठे हों या राहु पर दृष्टि पड़े, तो कालसर्प योग कष्ट पैदा नहीं करता.
  5. घर की चौखट, मुख्य द्वार पर चांदी का स्वास्तिक चिह्न बनवाकर लगाएं.
  6. घर में मोर पंख रखें व प्रातः उठकर व सोने से पूर्व, भगवान शिव व कृष्ण भगवान का ध्यान कर देखा करें.
  7. शिव उपासना एवं निरन्तर रुद्रसूक्त से अभिमंत्रित जल से स्नान करने पर यह योग शिथिल हो जाता है.
  8. शिवलिंग पर तांबे का सर्प चढ़ाएं.
  9. चांदी के सर्प के जोड़े को बहते पानी में छोड़ दें. इससे काल सर्प योग में चमत्कारिक लाभ होता है.