भोपाल । लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही मप्र की सभी 29 सीटों पर राजनीतिक पार्टियों की गतिविधियां तेज हो गई हंै। भाजपा सभी 29, कांग्रेस 28 और सपा एक सीट पर चुनाव लड़ेगी। वहीं बसपा ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। वैसे भी प्रदेश में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच होता है और थर्ड फ्रंड उनके आगे पस्त रहता है। हालांकि बसपा ने कई बार चौकाया है लिए सपा और बसपा को आशातीत सफलता नहीं मिली है।
मप्र में भाजपा-कांग्रेस के अलावा सपा और बसपा का प्रभाव दिखता है। मप्र के सीमावर्ती जिलों में यूपी का सर्वाधिक प्रभाव है। सीमावर्ती जिले सांस्कृतिक और राजनैतिक माहौल में उत्तर प्रदेश से सर्वाधिक प्रभावित हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के कमजोर होने के बाद क्षेत्रीय दलों ने अपनी पकड़ मजबूत बनाई। कांसीराम ने बहुजन समाज पार्टी का 14 अप्रैल 1984 को और मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी का 4 अक्तूबर 1992 को गठन किया। दोनों दलों ने यूपी में सत्ता प्राप्त की और लोकसभा चुनाव में भी अपना प्रभाव बढ़ाया था। मध्य प्रदेश में भी लोकसभा चुनाव में बसपा और सपा ने राजनीति में अपना भाग्य आजमाया। बसपा को कुछ सफलता मिली, परंतु यह क्रम लंबे समय तक नहीं चल पाया। वहीं, सपा के खाते में प्रदेश में लोकसभा चुनाव में अब तक कोई सफलता हासिल नहीं हुई।
1991 में बसपा ने 21 उम्मीदवार उतारे
1989 में प्रदेश के लोकसभा चुनाव में बसपा ने 35 उम्मीदवार चुनाव मैदान में खड़े किए, जिसमें से 32 की जमानत जब्त हो गई थी, उसे राज्य में 4.28 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे। 1991 में बसपा ने 21 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे थे। यह वर्ष बसपा के लिए सफलता का रहा और रीवा लोकसभा सीट पर बसपा के भीमसिंह पटेल ने कुल डाले गए मतों में से 32.79 प्रतिशत मत प्राप्त कर कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे श्रीनिवास तिवारी को पराजित किया था।
पूर्व मुख्यमंत्री सकलेचा को हराया
1996 के चुनाव में बसपा को प्रदेश में आशातीत सफलता मिली थी। सतना से बसपा के सुखलाल कुशवाह ने 28.37 प्रतिशत मत प्राप्त कर भाजपा के वरिष्ठ नेता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा को पराजित किया था। रीवा से बसपा के बुद्धसेन पटेल ने 26.91 मत प्राप्त कर भाजपा की प्रवीण कुमारी को पराजित किया था। इस तरह 1996 के चुनाव में बसपा ने दो सीटों पर विजय प्राप्त कर रिकॉर्ड बनाया था। 1998 से 2004 तक हुए तीन लोकसभा चुनाव में बसपा को निराश ही होना पड़ा था, उसे कोई सफलता हासिल नहीं हुई बल्कि प्रदेश में उसे प्राप्त होने वाला मत प्रतिशत भी कम हुआ। 2009 के लोकसभा चुनाव में रीवा से बसपा के देवराज सिंह पटेल ने 28.49 प्रतिशत मत प्राप्त कर भाजपा के मणि चंद्र त्रिपाठी को पराजित कर विजय प्राप्त की थी।
2014 के बाद लगा झटका
2014 और 2019 में बसपा का मत प्रतिशत भी काफी कम हुआ और उसे कोई सफलता हासिल नहीं हुई, बल्कि 2019 के लोकसभा चुनाव में उसने 25 उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा था, सबकी जमानत जब्त हो गई थी। बहुजन समाजवादी को प्रदेश में हासिल हुई सफलता देख समाजवादी पार्टी ने भी मध्य प्रदेश की राजनीति में अपना भाग्य आजमाया।
सपा ने उम्मीदवार उतारे, सबकी जमानत जब्त हुई
1996 के लोकसभा चुनाव में सपा ने 3 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे। उन्हें प्रदेश में डाले गए मतों में से मात्र 0.8 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे। 1998 से 2019 प्रदेश के चुनाव में सपा ने उम्मीदवार खड़े किए परंतु सभी की जमानत जब्त होती गई। उनके खाते में प्रदेश से कोई सफलता हासिल नहीं हुई। बसपा को जो प्रदेश में सफलता हासिल हुई, वह यूपी की सीमा से जुड़े क्षेत्रों में ही हासिल हुई। जाहिर है कि उन क्षेत्रों में यूपी का प्रभाव था। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी सपा और बसपा निश्चित ही प्रदेश में उम्मीदवार खड़े करेगी। लेकिन, देखना यह है कि उन्हें कितनी सफलता हासिल होती है।
एक रोचक जानकारी भी
प्रदेश के पहले चुनाव 1951-52 में मध्य भारत, मध्य प्रदेश, विंध्य प्रदेश, बिलासपुर और भोपाल आज के मध्य प्रदेश का हिस्सा थे। कुछ हिस्सों को राज्य पुनर्गठन आयोग ने महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में सम्मिलित कर नए मध्य प्रदेश का निर्माण किया था। पहले चुनाव में मतपत्रों के लिए मतपेटियों की आपूर्ति देश के कई निर्माताओं ने की थी। प्रदेश में ग्वालियर से ग्वालियर इंजीनियरिंग वक्र्स ने प्रति मतपेटी 6 रुपये 12 आना में सप्लाई की थी। देश के अन्य आपूर्तिकर्ताओं ने भी मतपेटियां दी थी। मध्य प्रदेश को 1,41,850, मध्य भारत 53,016, भोपाल 5050, बिलासपुर 680 और विंध्य प्रदेश में 23,000 मतपेटियां उपयोग के लिए प्राप्त हुई थीं।