Thursday, April 24, 2025
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AIS से ITR फाइल करना बहुत आसान– जानिए आपकी पूरी फाइनेंशियल हिस्ट्री कैसे मिलेगी एक ही क्लिक में

हर साल की तरह इस बार भी इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) भरने का समय शुरू हो चुका है। टैक्सपेयर्स के लिए यह समय थोड़ा तनाव भरा हो सकता है, क्योंकि सही जानकारी और डॉक्यूमेंट्स जुटाने में मेहनत लगती है। लेकिन इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने कुछ साल पहले एक नई व्यवस्था शुरू की है, जिसे एनुअल इन्फॉर्मेशन स्टेटमेंट (AIS) कहा जाता है। यह सिस्टम टैक्सपेयर्स के लिए टैक्स भरने में आसानी लाने और टैक्स प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए बनाया गया है। 

AIS सिस्टम क्या है और यह कैसे काम करता है?

एनुअल इन्फॉर्मेशन स्टेटमेंट (AIS) एक ऐसा डॉक्यूमेंट है, जिसमें टैक्सपेयर के पूरे वित्तीय वर्ष की कमाई, खर्च और लेनदेन की जानकारी एक जगह इकट्ठा होती है। यह सिस्टम इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने नवंबर 2021 में शुरू किया था, ताकि टैक्सपेयर्स को अपने टैक्स रिटर्न भरने में आसानी हो। AIS को फॉर्म 26AS का बड़ा और बेहतर रूप कहा जा सकता है। पहले फॉर्म 26AS में केवल TDS (टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स) और TCS (टैक्स कलेक्टेड एट सोर्स) की जानकारी होती थी, लेकिन AIS में इससे कहीं ज्यादा जानकारी होती है।

AIS में टैक्सपेयर की सैलरी, बैंक खाते में मिलने वाला ब्याज, डिविडेंड, किराए से होने वाली आय, शेयर और म्यूचुअल फंड के लेनदेन, प्रॉपर्टी की खरीद-बिक्री, विदेशी लेनदेन, और GST टर्नओवर जैसी कई जानकारियां शामिल होती हैं। यह जानकारी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को बैंकों, स्टॉक एक्सचेंज, रजिस्ट्रार ऑफिस, और अन्य स्रोतों से मिलती है। टैक्सपेयर को यह सारी जानकारी इनकम टैक्स की आधिकारिक वेबसाइट (www.incometax.gov.in) पर अपने ई-फाइलिंग अकाउंट में लॉग इन करके देखने को मिलती है।

AIS को देखने के लिए टैक्सपेयर को अपने पैन नंबर या आधार नंबर और पासवर्ड की मदद से लॉग इन करना होता है। लॉग इन करने के बाद, डैशबोर्ड पर AIS का विकल्प दिखता है, जहां से इसे PDF, JSON, या CSV फॉर्मेट में डाउनलोड किया जा सकता है। अगर AIS में कोई गलती दिखती है, तो टैक्सपेयर ऑनलाइन फीडबैक देकर इसे ठीक करवा सकता है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने इसे और सुविधाजनक बनाने के लिए ‘AIS for Taxpayers’ नाम का एक मोबाइल ऐप भी लॉन्च किया है, जिसे गूगल प्ले स्टोर या ऐप स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है। इस ऐप के जरिए टैक्सपेयर अपने फोन पर ही सारी जानकारी देख सकते हैं और जरूरत पड़ने पर फीडबैक दे सकते हैं।

AIS क्यों है जरूरी?

AIS सिस्टम का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह टैक्सपेयर्स को उनकी सारी वित्तीय जानकारी एक जगह उपलब्ध कराता है। पहले टैक्स रिटर्न भरना एक जटिल प्रक्रिया थी, जिसमें कई तरह के डॉक्यूमेंट इकट्ठा करने पड़ते थे। कई बार लोग अपनी कुछ कमाई, जैसे बैंक ब्याज या छोटे-मोटे निवेश से होने वाली आय, को रिटर्न में शामिल करना भूल जाते थे। इससे इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की ओर से नोटिस मिलने का खतरा रहता था। लेकिन AIS के आने से यह समस्या काफी हद तक कम हो गई है।

AIS में पहले से भरी हुई जानकारी टैक्सपेयर को एक तरह का ‘प्री-फिल्ड’ टैक्स रिटर्न देती है, जिसे वे चेक करके अपने ITR में इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे न सिर्फ समय बचता है, बल्कि गलतियां होने की संभावना भी कम हो जाती है। उदाहरण के लिए, अगर किसी टैक्सपेयर ने अपने बैंक खाते में 10,000 रुपये का ब्याज कमाया है, लेकिन उसे इसकी जानकारी नहीं है, तो AIS में यह ब्याज स्वतः दिख जाएगा। इससे टैक्सपेयर उस आय को अपने रिटर्न में शामिल करना नहीं भूलेगा।

इसके अलावा, AIS टैक्स प्रक्रिया में पारदर्शिता लाता है। चूंकि यह सारी जानकारी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के पास पहले से मौजूद होती है, टैक्सपेयर के लिए अपनी आय छिपाना या गलत जानकारी देना मुश्किल हो जाता है। इससे टैक्स चोरी पर लगाम लगती है और सरकार को ज्यादा से ज्यादा लोगों को टैक्स सिस्टम में शामिल करने में मदद मिलती है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का कहना है कि AIS का मकसद टैक्सपेयर्स को डराना नहीं, बल्कि उन्हें एक आसान और पारदर्शी सिस्टम देना है।

AIS का टैक्सपेयर्स पर प्रभाव

AIS सिस्टम ने टैक्सपेयर्स की जिंदगी को कई मायनों में आसान बनाया है। सबसे पहले, यह समय और मेहनत बचाता है। पहले जहां टैक्सपेयर को अपने बैंक स्टेटमेंट, फॉर्म 16, और अन्य डॉक्यूमेंट्स को अलग-अलग जगह से इकट्ठा करना पड़ता था, वहीं अब AIS में सारी जानकारी एक साथ मिल जाती है। इससे खासकर उन लोगों को फायदा हुआ है, जिनकी आय कई स्रोतों से होती है, जैसे सैलरी, बिजनेस, निवेश या किराया।

दूसरा, AIS ने टैक्सपेयर्स को ज्यादा जागरूक बनाया है। अब वे अपनी हर छोटी-बड़ी वित्तीय गतिविधि पर नजर रख सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उनकी ITR में कोई गलती न हो। उदाहरण के लिए, अगर कोई टैक्सपेयर प्रॉपर्टी खरीदता है, तो यह जानकारी AIS में दर्ज हो जाती है। अगर वह इस लेनदेन को अपने रिटर्न में नहीं दिखाता, तो इनकम टैक्स डिपार्टमेंट उससे सवाल कर सकता है। इससे टैक्सपेयर को अपनी जिम्मेदारी का अहसास होता है।

तीसरा, AIS ने इनकम टैक्स डिपार्टमेंट और टैक्सपेयर्स के बीच भरोसा बढ़ाया है। टैक्सपेयर अब यह जानते हैं कि उनकी जानकारी विभाग के पास पहले से मौजूद है, इसलिए वे सही और पूरी जानकारी देने के लिए प्रेरित होते हैं। साथ ही, फीडबैक की सुविधा ने इस सिस्टम को और भी यूजर-फ्रेंडली बनाया है। अगर AIS में कोई गलती है, तो टैक्सपेयर उसे आसानी से ठीक करवा सकता है। उदाहरण के लिए, अगर AIS में किसी गलत लेनदेन की जानकारी दिख रही है, तो टैक्सपेयर उसे ऑनलाइन फीडबैक देकर हटा सकता है।

हालांकि, AIS के कुछ मुश्किल पहलू भी हैं। कई टैक्सपेयर्स, खासकर ग्रामीण इलाकों में रहने वाले या तकनीक से कम वाकिफ लोग, इसे समझने और इस्तेमाल करने में दिक्कत महसूस करते हैं। इसके लिए इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को जागरूकता अभियान चलाने और आसान गाइडलाइंस देने की जरूरत है। फिर भी, कुल मिलाकर AIS ने टैक्स सिस्टम को पहले से ज्यादा सरल और पारदर्शी बनाया है।

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