भगवान जगन्नाथ मंदिर में ऐसे चमत्कार होते हैं, जिनका जवाब विज्ञान के पास भी नहीं हैं। मंदिर के ध्वज का हवा की विपरीत दिशा में लहराना भी इन्हीं चमत्कारों में से एक है। इसके पीछे एक पौराणिक मान्यता मौजूद है।
क्या है पौराणिक मान्यता
ध्वज का हवा के विपरीत लहराने का संबंध हनुमान जी से माना गया है। पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र की आवाज के कारण भगवान विष्णु को आराम करने में दिक्कत होती थी। जब ये बात हनुमान जी को पता तो उन्होंने समुद्र से कहा कि तुम अपनी आवाज रोक लो क्योंकि मेरे स्वामी तुम्हारे शोर के कारण विश्राम नहीं कर पा रहे। तब समुद्र ने कहा कि ये मेरे वश में नहीं है। जहां तक पवन वेग चलेगा यह आवाज वहां तक जाएगी। आपको इसके लिए अपने पिता पवन देव से विनती करनी चाहिए। तब हनुमान जी ने अपने पिता पवन देव का आह्वान किया और उनसे कहा कि आप मंदिर की दिशा में ना बहें। पवनदेव ने कहा कि यह संभव नहीं है। इसके लिए उन्होंने हनुमान जी को एक उपाय बताया।
अपने पिता के बताए उपाय के अनुसार, हनुमान जी ने अपनी शक्ति से खुद को दो भागों में विभाजित किया और फिर वे वायु से भी तेज गति से मंदिर के आसपास चक्कर लगाने लगे। इससे वायु का ऐसा चक्र बना की समुद्र की ध्वनि मंदिर के भीतर न जाकर मंदिर के आसपास ही घूमती रहती है और मंदिर में श्री जगन्नाथ जी आराम से सोते रहते हैं। इसी कारण से मंदिर का ध्वज भी हवा की विपरीत दिशा में बहता है।
मंदिर की चोटी पर लहराते इस ध्वज को रोज बदला जाता है। जगन्नाथ मंदिर की ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी ध्वज नहीं बदला गया तो मंदिर 18 वर्षों के लिए बंद हो जाएगा। इस मंदिर का प्रसाद भी बड़े ही रोचक ढंग से तैयार किया जाता है। प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक दूसरे पर रखे जाते हैं, जिन्हें लकड़ी के चूल्हे पर पकाया जाता है। लेकिन इस प्रक्रिया में सबसे ऊपर वाले बर्तन में रखी गई सामग्री सबसे पहले पकती है और फिर धीरे-धीरे नीचे के बर्तनों में रखी सामग्री पकती है।