वैदिक ज्योतिष में सूर्यदेव को ग्रहों का राजा बताया गया है और पृथ्वी पर ऊर्जा का मुख्य स्रोत सूर्यदेव ही हैं. वैदिक काल के लोगों द्वारा सबसे पहले पहचाने गए देवता सूर्य हैं और सूर्य के शुभ प्रभाव से मनुष्य के मान-सम्मान और प्रतिष्ठा में अच्छी वृद्धि होती है. सूर्यदेव को भगवान विष्णु का अंश भी माना जाता है इसलिए सूर्यदेव को सूर्य नारायण भी कहा जाता है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, सूर्यदेव के पिता का नाम महर्षि कश्यप और माता का नाम अदिती था. माता अदिती की कोख से जन्म लेने के कारण सूर्यदेव का नाम आदित्य पड़ा. आज हम आपको सूर्यदेव के परिवार के बारे में बताएंगे और उनकी संतान आखिर पृथ्वी लोक पर किन वजह से बदनाम हैं.
सूर्यदेव की दो पत्नियां
धार्मिक ग्रंथों में सूर्यदेव की दो पत्नियों का वर्णन मिलता है, एक का नाम संज्ञा और दूसरी का नाम छाया. संज्ञा और छाया से सूर्यदेव को 10 संतान की प्राप्ति हुई और एक संतान कुंति से. सूर्यदेव का तेज बहुत अधिक था, जिसकी वजह से सूर्यदेव की पहली पत्नी संज्ञा ने छोड़ दिया था क्योंकि संज्ञा सूर्यदेव के तेज को सहन नहीं कर पा रही थीं. इसके बाद संज्ञा के पिता और सूर्यदेव के ससुर विश्वकर्मा ने सूर्य के तेज को छांट काटकर कम कर दिया, इसके बाद सूर्यदेव के तेज में कमी आई.
सूर्यदेव ने लिया अश्व का रूप
सूर्यदेव को छोड़ने के बाद संज्ञा पृथ्वी लोक पर आ गईं और एक अश्विनी यानी घोड़ी के रूप में रहती थी. अपनी पत्नि को मनाने के लिए सूर्यदेव ने भी अश्व के रूप धारण कर लिया और फिर उनसे दो पुत्र की प्राप्ति हुई, जो अश्विनी कुमार कहलाते हैं. एक पौराणिक कथा यह भी मिलती है कि रामायण काल में सुग्रीव और महाभारत काल में कुंति से कर्ण का जन्म सूर्यदेव की वजह से हुआ था.
संज्ञा से हुई संतान
यमराज – मृत्यु के देवता
यमुना नदी- जो पूरे विश्व में प्रसिद्ध नदी है
वैवस्वत मनु – जो वर्तमान मन्वन्तर के अधिपति हैं.
अश्विनी कुमार – जिन्हें चिकित्सा के देवता के रूप में जाना जाता है.
सूर्यपुत्र रेवंत – एक अन्य पुत्र है.
छाया से हुई संतान
शनिदेव – न्याय के देवता और कर्म के कारक ग्रह
ताप्ती – सूर्यदेव की पुत्री हैं और पृथ्वी पर नदी के रूप में रहती हैं.
विष्टि (भद्रा) – सूर्यदेव की अन्य पुत्री, जो काल में आती हैं.
सावर्णि मनु – जो एक और पुत्र हैं.
महाभारत और रामायण काल
सुग्रीव – रामायण काल में बलशाली वानर हैं, उनकी माता का नाम ऋक्षराज और पिता का नाम सूर्यदेव है.
कर्ण – महाभारत काल में एक शक्तिशाली योद्धा थे और कर्ण की माता कुंती व पिता सूर्य देव थे.
सूर्य पुत्र और पुत्री, नाम की वजह से बदनाम
यमराज मृत्यु के देवता हैं, जिनसे पृथ्वी लोक के वासी काफी डरते हैं. वहीं शनिदेव, जो छाया के पुत्र हैं. शनिदेव की महादशा व साढ़ेसाती व ढैय्या के अशुभ प्रभाव से मनुष्य को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है इसलिए हर कोई चाहता है कि उन पर शनि की महादशा का प्रभाव ना हो. इस वजह से शनिदेव से मनुष्य काफी डरते हैं. सूर्यदेव की पुत्र के अलावा पुत्री से भी मनुष्य काफी डरते हैं और उनका नाम है विष्टि या फिर उनको भद्रा भी कहा जाता है. भद्रा शब्द का अर्थ शुभ है लेकिन ज्योतिष में भद्रा काल को एक अशुभ समय माना गया है. इस काल में किया गया कोई भी कार्य हमेशा अशुभ फल ही देता है. रक्षाबंधन, होली समेत सभी पर्व में की जाने वाली पूजा अर्चना में भद्रा का विशेष ध्यान रखा जाता है और कोई भी शुभ कार्य करने से भद्रा को देखा जाता है.