Epic Story: पौराणिक कथा के अनुसार राक्षस कुल में एक वृंदा नाम की लड़की का जन्म हुआ था. वह लड़की भगवान विष्णु की परम भक्त थी. वह भगवान श्रीहरिविष्णु की पूजा में लीन रहती थी.जब वह लड़की बड़ी हुई तो उसका विवाह राक्षस कुल में दानवराज जलंधर से हुआ था. जालंधर के विषय में देवीभागवतपुराण में कथा है कि एक बार भगवान शिव ने अपने तेज का अंश समुद्र में छोड़ दिया था, जिससे जालंधर नाम बालक का जन्म हुआ. जब दैत्य गुरु शुक्राचार्य की दृष्टि उस बालक पर पड़ी तो वे उसे अपने साथ ले आए.
दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने मायावी ज्ञान जालंधर को दे दिया, इससे वह काफी अधिक बलशाली हो गया था. इसके चलते उसे दैत्यों का राजा नियुक्त कर दिया गया. उसका विवाह वृंदा से हुआ था. वृंदा भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थीं. उनकी भक्ति और पति प्रेम के कारण जालंधर का सामना कोई भी नहीं कर पाता था. सभी देवता उससे पराजित हो जाते थे.
शक्तियों पर हो गया था अहंकार
जालंधर को अपनी शक्तियों पर अहंकार हो गया था. उसने भगवान विष्णु की पत्नी माता लक्ष्मी को मारना चाहा. इसके लिए वह जब बैकुंठ धाम गया तो वहां पर माता लक्ष्मी को देखकर वह मोहित हो गया. माता लक्ष्मी ने अपनी रक्षा के कहा कि ‘हे जालंधर तुम्हारे मन में जो भी ख्याल आया है उसे त्याग दो. जल से जन्म लेने के कारण मैं और तुम भाई-बहन हैं. इस कारण जो तुम सोच रहे हो, वह संभव नहीं है.’ इस बात से जालंधर प्रभावित हो गया और उसने माता लक्ष्मी को पाने का ख्याल खुद से निकाल दिया.
माता पार्वती के लिए कैलाश पहुंचा जालंधर
जालंधर ने माता पार्वती को पाने का विचार बनाया और वह कैलाश पर माता के सामने पहुंचा. माता पार्वती ने जालंधर के मन की बात जान ली और गुस्से में आकर उन्होंने अस्त्र उठा लिया. जालंधर को पता था कि माता देवी दुर्गा का ही रूप हैं. इस कारण वह वहां से भाग गया और भगवान शिव के साथ युद्ध करने लगा. उसकी पतिव्रता स्त्री वृंदा के तप के कारण भगवान शिव के हर प्रहार जालंधर का कुछ नहीं बिगाड़ पा रहे थे.
माता पार्वती पहुंची भगवान विष्णु के पास
जब माता पार्वती ने यह देखा तो वे भगवान विष्णु के पास पहुंची और उनको सारी बात बताई. माता पार्वती की बात सुनकर भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप बनाया और वृंदा के पास पहुंच गए. वृंदा ने भगवान विष्णु को अपना पति समझकर उनके साथ पत्नी जैसा व्यहार करना शुरू कर दिया. इससे वृंदा का पतिव्रता धर्म टूट गया और इससे जालंधर का भगवान शिव ने वध कर दिया.
पत्थर के बन गए भगवान
जालंधर के वध की बात जब देवी वृंदा को पता चली तो उन्होंने उनके पति के रूप में रहने वाले भगवान विष्णु से उनके असली रूप में आने को कहा, जब उन्होंने देखा कि वे भगवान विष्णु हैं तो उन्होंने क्रोध में आकर उनको श्राप दिया कि आप पत्नी वियोग में दर-दर भटकेंगे. इसके साथ ही आप काले पत्थर के हो जाएंगे. वृंदा के श्राप के चलते भगवान विष्णु काले पत्थर के हो गए. इसी को भगवान विष्णु का शालिग्राम स्वरूप कहा गया. इसको देखते हुए सारे देवताओं में हाहाकार मच गया. सारे देवता और माता लक्ष्मी वृंदा के पास पहुंची और भगवान विष्णु को पत्थर बनने से श्राप से मुक्त करने को कहा. इस पर वृंदा ने उनको पूर्व रूप वापस दे दिया. इसके बाद उनका वृंदा से विवाह हुआ.
खुद हो गईं सती
वृंदा खुद जालंधर के साथ सती हो गईं. उनकी राख के ऊपर तुलसी का पौधा उगा. उस दिन से तुलसी के पौधे को वृंदा का स्वरूप माना गया है. भगवान विष्णु बिना तुलसी के भोग स्वीकार नहीं करते हैं. वृंदा के श्राप के कारण ही भगवान विष्णु को प्रभु श्रीराम स्वरूप में दर-दर पत्नी वियोग में दर-दर भटकना पड़ा था.