हरिद्वार: श्रावण मास यानी सावन का महीना शुरू होते ही भगवान शिव के निमित्त कावड़ यात्रा की विधिवत रूप से शुरुआत हो जाती है. हालांकि, इससे करीब एक महीना पहले ही भक्त अपने कंधों पर गंगाजल लेकर जाना शुरू हो जाते हैं. कावड़ में जल भरकर अपनी मनोकामना के अनुसार शिव भक्त यात्रा करते हैं और भोलेनाथ का अभिषेक करते हैं. शिव भक्त कावड़ियों को देखकर अक्सर मन में यही सवाल सबसे पहले आता है कि कावड़ की शुरुआत कैसे हुई और पहला कावड़िया कौन था?
कौन था पहला कांवड़िया
धार्मिक कथाओं के अनुसार लंकाधिपति महाराजा रावण को पहला कावड़िया बताया जाता है, तो कुछ कथाओं में श्रवण कुमार आदि को पहला कावड़िया बताया गया है. इसकी ज्यादा जानकारी देते हुए हरिद्वार के विद्वान धर्माचार्य पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं की जब कावड़ यात्रा होती है तो सबसे पहले मन में यही सवाल उठता है कि इस यात्रा की शुरुआत कैसे हुई और पहले कावड़िया कौन था जिसने भोलेनाथ का अभिषेक किया था.
धार्मिक ग्रंथो के अनुसार जब भोलेनाथ ने समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को अपने कंठ में धारण किया था तो उनके गले में की जलन को शांत करने के लिए सबसे पहले लंका के महाराज रावण ने कावड़ में गंगाजल भरकर भोलेनाथ का अभिषेक किया था. भोलेनाथ ने महाराजा रावण की सभी मनोकामनाएं बिन मांगे ही पूर्ण कर दी थी.
कुछ के अनुसार परशुराम थे पहले कावड़िया
कुछ धार्मिक कथाओं में विष्णु भगवान के अवतार परशुराम को भी पहला कावड़िया बताया गया है. श्रावण मास में परशुराम ने गढ़मुक्तेश्वर से कावड़ में जल भरकर बिना रुके यात्रा की और उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में स्थित पुरा महादेव में भोलेनाथ का अभिषेक किया था. माना जाता है कि इसी समय से कावड़ यात्रा का आरंभ हुआ था.
श्रवण कुमार त्रेता युग में श्रवण कुमार ने अपने अंधे माता-पिता को कावड़ रूप में यात्रा करवाई थी और हरिद्वार से जल लेकर भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था कुछ कथाओं के अनुसार श्रवण कुमार के समय से ही कावड़ यात्रा के प्रारंभ होने की जानकारी होती है.
धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान राम थे पहले कांवड़िया
पंडित श्रीधर शास्त्री आगे बताते हैं कि कुछ धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान राम को भी पहला कावड़िया बताया गया है. प्राचीन समय में भगवान राम ने बिहार के सुल्तानगंज से पवित्र गंगाजल भरकर वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का जलाभिषेक किया था पौराणिक कथाओं के अनुसार यह भी कावड़ यात्रा की शुरुआत मानी जाती है.
समुद्र मंथन से जुड़ा है कांवड यात्रा
गौरतलब है कि कावड़ यात्रा को लेकर अलग-अलग धार्मिक कथाओं का वर्णन किया गया है. दरअसल, सावन में होने वाली कावड़ यात्रा का संबंध समुद्र मंथन से जुड़ा है. समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को जब भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण किया था तो उससे उनके गले समेत पूरे शरीर में जलन हो गई थी. इसी जलन को शांत करने के लिए उन पर शीतल और पवित्र जल डाला गया था, जिसमें राक्षस राजा रावण, परशुराम, श्रवण कुमार और भगवान राम का वर्णन मिलता है.