Monday, December 23, 2024
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बाबा महाकाल की नगरी में 15 दिन लगता है पितरों का मेला

बाबा महाकाल: पितृपक्ष में अधिकांश लोग अपने घर पर ही ब्राह्मणों को भोजन करवारकर अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कि तीर्थ स्‍थानों पर जाकर अपने पितरों के लिए पिंडदान करते हैं और वहां उनका श्राद्ध करते हैं। आज हम ऐसे ही कुछ तीर्थ स्‍थानों के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जहां के बारे में ऐसी मान्‍यता है कि यहां आकर पितरों का श्राद्ध करने से उन्‍हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए आपको बताते हैं कौन से हैं ये तीर्थ स्‍थान।

पितृपक्ष में 15 दिनों में उज्जैन में पितरों के मोक्ष एवं शांति के लिए श्रद्धालु बाबा महाकाल की नगरी तर्पण- पिंडदान करने आते हैं। उज्जैन में महाकाल मंदिर के आलावा भी बहुत से ऐसे मंदिर है, जिनका अपना एक अलौकिक इतिहास रहा है। जिनका जिक्र न सिर्फ इतिहास में बल्कि हिंदू पुराणों में भी मिलता है। इनमें सबसे ज्यादा प्रसिद्ध गया कोटा तीर्थ मंदिर है। यह मंदिर जटेश्वर महादेव (28/84) साई राम कॉलोनी काजीपुरा में स्थित है। यहां की मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण ने अपने गुरु के पुत्रों का तर्पण इसी स्थान पर करवाया था। इसी मान्यता अनुसार राज्य से ही नहीं बल्कि देश विदेश से भी यहां कई श्रद्धालु अपने पितरों की शांति के लिए आते है। पितरों के तर्पण और पिंडदान करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

श्राद्ध पक्ष में उज्जैन में श्रद्धालुओं का मेला जैसा लग जाता है। मान्यता है कि देवी देवता की अपेक्षा पितरों का तर्पण पूजन का कर्म करना विशिष्ट है। भारतीय संस्कृति में पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए अपने माता-पिता तथा परिवार के अन्य मृत प्राणियों के निमित्त श्राद्ध करना, पितृ के समक्ष पूजन और तर्पण करना अनिवार्य माना गया है।

इस मंदिर में खुद का श्राद्ध करने पहुंचते हैं लाखों लोग

गया कोटा एक सिद्ध तीर्थ है जहां पर हमारे पितरों के समक्ष पितृ पूजा एवं तर्पण करने से हमारे पितरों को मोक्ष की प्राप्ती तो होती ही है, साथ ही यह कर्म करने से हमारे वंश और जीवन में आनंद की अनुभूति है.मन प्रसन्न होता हैं और जीवन के कष्टों से भी मुक्ति मिलती है। मान्यता अनुसार जो गया में जाकर एक बार भी श्राद्ध तर्पण कर दे तो उसके सभी पितर सदा के लिए तृप्त हो जाते हैं। इसलिए ही उज्जैन गया कोटा तीर्थ का भी उतना ही महत्व है, जितना की बिहार के गया का महत्व है। गया कोटा तीर्थ में 16 चरण बने हुए है। एक एक चरण एक एक तिथि का है जैसे आज से पूर्णमासी के श्राद चालू हुआ है, जो अमावस्या तिथि पर खत्म होता है उसका विशेष महत्व बताया जाता है। यहां दूध, जल, तुलसी, श्रेवत, अर्पण करने से हमारे पितृ प्रसन्न होते हैं। घर परिवार, धन, दौलत में उन्नति की प्रप्ति होती है।

विष्णुपद मंदिर, गया

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, बिहार का गया जिला पितरों के निमित्त पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध कर्म के लिए बेहद शुभ है। गया में स्थित ‘विष्णुपद मंदिर’ में लोग ना सिर्फ अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने पहुंचते हैं, बल्कि यहां लोग खुद का श्राद्ध कराने भी पहुंचते हैं। बता दें कि यह मंदिर गया के भस्म कूट पर्वत पर स्थित है। खास बात ये है कि बिहार का गया पिंडदान के लिए समूचे विश्व में प्रसिद्ध है। इस पवित्र स्थल देश-दुनिया के कोने-कोने से लोग पिंडदान के लिए पहुंचते हैं। वहीं गया से कुछ दूरी पर स्थित बोधगया शहर को बुद्ध की नगरी से संबोधित किया जाता है। पितृ पक्ष में लोग बोधगया में मौजूद फल्गु नदी के किनारे पूर्वजों के निमित्त पिंडदान और श्राद्ध कर्म संपन्न कराते हैं।

गया में माता सीता ने भी किया था पिंडदान

गया में पिंडदान का जिक्र रामायण में भी किया गया है। कहते हैं कि गयाजी में किए गए पिंडदान का गुणगान स्वयं भगवान श्रीराम ने भी किया है। पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक, माता सीता ने राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए इसी स्थान पर पिंडदान किया था।

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। Pradeshlive.com इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।

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