होलिका दहन में उठती हुई आग की लपटों से लगाया जाता है पूरे साल का अनुमान

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होली का त्योहार उत्साह- आनन्द- उमंग का पर्व है. सारी बुराईयों को होलिका दहन में जलाकर आनन्द के रंग में रंग जाने का नाम ही होली है. होली बसन्त ऋतु का मुख्य पर्व है.सभी आनन्द से गदगद हो जाते हैं. यह सनातनी व्यवस्था का सनातनी जीवन पद्धति का अभिन्न अंग है. हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन का पर्व मनाया जाता है। होलिका दहन के अगले दिन रंगों वाली होली होती है। इस साल पूर्णिमा दो दिन पड़ने के कारण कई जगहों पर होलिका दहन कल कर ली गई है।

वहीं, कई जगहों पर आज की जाएगी। पूर्णिमा में ही प्रदोषकाल में रात्रि में होलिका दहन करने का निर्णय लिया जाता है, क्योंकि इसमें विशेष रुप से ध्यान देना है कि चतुर्दशी में होलिका का दाह न हो न ही प्रतिपदा में होलिका का दाह हो. होलिका दहन भद्रा में नहीं होना चाहिए, क्योंकि इसबार पूर्णिमा के साथ भद्रा भी लग जा रही है. यानी कि इस समय के बाद ही होलिका दहन होगा. होलिका दहन से उठती लपटों को देखकर यह तय किया जाता है कि वर्ष कैसा जाएगा. यदि लौ दक्षिण दिशा की तरफ़ जाती हैं तो निश्चित रूप से राष्ट्र पर विपत्ति आने का यह संकेत हैं. जबकि अन्य दिशाएं खुशहाली का संकेत देती हैं.