😊अगिया बेताल😊
क़मर सिद्दीक़ी
हम समझते हैं कि,खेल सिर्फ़ स्वास्थ्य के लिए ही मुफ़ीद होता है,दरअसल ये हमारी अज्ञानता के कारण है,हक़ीक़त तो ये है कि, इसका सबसे अच्छा प्रयोग,व लाभ सत्ता प्राप्ति में होता है। कल साहेब ने भी अपने उदबोधन में दोहराया कि,किसी देश के विकास में,खेलों की अहम भूमिका होती है। अब किसी विशेषज्ञ ने कहा है,तो न मानने का सवाल ही नहीं उठता। लेकिन ये कोई कहने की बात नहीं थी इतने सालों में लोगों ने भी कुछ तो सीख ही लिया। ये खेल ही तो था जिसमें कई चुनी हुई सरकारें क्लीन बोल्ड हो गईं। कर्नाटक,गोवा,महाराष्ट्र,सिक्किम,मध्यप्रदेश। इनका खेलने का पैटर्न थोड़ा जुदा है। जैसे कि,फुटवाल में होता है,एक मुख्य खिलाड़ी को घेर लो,बाक़ी के दिमाग अपने आप ही रास्ते पर आ जाएंगे,बस इनके खेल में इतना फ़र्क़ है कि,ये मज़बूत नहीं,बल्कि कमज़ोर को घेरते हैं। जैसे कि,मध्यप्रदेश में हुआ था। ,शोले फ़िल्म में जय ने मौसी से वीरू के लिए कहा था कि,बेचारा कभी हार भी जाता है, बंगाल में कमज़ोर पत्ते के चलते ऐसी ही कुछ स्थिति निर्मित हो गई थी। वैसे हर खिलाड़ी का अपना एक पीक टाइम होता है,उसके बाद या तो वो स्वयं रिटायर हो जाता है,या कर दिया जाता है।
सब कुछ लुटा के… तो क्या किया
विश्व की विख्यात दवा कंपनी फाइजर के वरिष्ठ अधिकारी का स्टिंग वहां के मीडिया कर्मी ने कर डाला। इसमें सामने आया कि,वैक्सीन की बिक्री बढ़ाने के लिए,कंपनी के इशारे पर वायरस से छेड़-छाड़ कर उसे घातक बताया गया। पूंजीवाद में संवेदनाओं के लिए कोई स्थान नहीं। केवल एक लक्ष्य,अधिक मुनाफा,और पूंजी विस्तार। काश अपने यहां भी कोई साहस कर पाता। पर करेगा कौन? जिनके ख़िलाफ़ करना है,उन्हीं के संस्थान से तो घर का चूल्हा जलता है।
बयानवीर
कल राजधानी में ब्यानवर्षा का दिन था। मामा ने नाथ के बारे में कुछ कहा,तो इधर से वर्मा ने मोर्चा संभाला। वर्मा के कहने का लब्बोलुआब ये था कि,जिसके घर शीशे के हों,उनको दूसरों के घर की तरफ पत्थर नहीं उछालना चाहिए। उनका पूरा राजपाट ही झूठ पर खड़ा हुआ है। डबल इंजन का राग अलापने वाले क्या ये बताएंगे कि, बड़े वाले इंजन ने इस छोटे इंजन के सालाना ईंधन में कटौती क्यों की? दुसरीं तरफ दीदी ने मोर्चा खोल ही रखा है। जब लगता है कि,लोग कहीं भूल न जाएं, एक-दो बयान,और दो-चार पत्थर हाथों में उठा लेती हैं। शराब नीति को लेकर बहुत मुखर रहती हैं। पता नहीं उनको शराबियों से कोई अदावत है,या मोहब्बत समझ से बाहर है। कल के बयान पर भी वर्मा जी ने उनको उकसाते हुए कहा कि,आपतो फायर ब्रांड नेता रही हैं,मार्गदर्शक मंडल के मुखिया को भारी महफ़िल में हड़का दिया था,ये कंकड़-पत्थर से कब तक काम चलाएंगी, कोई ठोस कदम उठाइये न। देखते हैं इनके उकसाने,और बहकाने का कोई प्रभाव नज़र आता है,या उनकी मुहिम सिर्फ निशानेबाज़ी तक ही सीमित रहती है।
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण ‘प्रदेश लाइव’ के नहीं हैं और ‘प्रदेश लाइव’ इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेता है।)