किसान आंदोलन और राजनीतिक महत्वाकांक्षा
भारत में अन्नदाताओं का बहुत बड़ा वोट बैंक है। सरकार बनाने और गिराने में किसानों की अहम् भूमिका रहती है। यही वजह कि तमाम सरकारों और राजनीतिक दलों को चुनावी मौसम में किसान याद आ ही जाते हैं। राजनीतिक दलों की ओर से किसानों को लुभाने के लिए बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं। कोई भी सरकार किसानों को नाराज नहीं करना चाहती। मोदी सरकार को ही ले लीजिए। किसानों के कल्याण की बात कहकर तीन कृषि कानून लाए गए, लेकिन इसके विरोध में किसानों ने आंदोलन शुरू कर दिया। दंभ में डूबी मोदी सरकार ने साल भर आंदोलनकारी किसानों की सुध नहीं ली,
मध्यप्रदेश में महंगाई और मौसम की मार से परेशान किसान
अब मध्यप्रदेश की बात। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान वैसे तो खुद को किसान पुत्र बताकर किसानों का रहनुमा होने का दावा करते हैं, लेकिन इस साल रबी सीजन में डीएपी और यूरिया की भारी कमी ने सरकार के किसान हितैषी होने के दावे की पोल खोलकर रख दी। कई जगह डीएपी-यूरिया के लिए लाइनों में लगे किसानों पर पुलिस ने लाठियां बरसाईं। इससे किसानों में सरकार के प्रति भारी रोष है। किसानों ने मजबूरी में महंगे दामों पर डीएपी और यूरिया खरीदकर जैसे-तैसे बोवनी की, तो उनसे मौसम रूठ गया। हाल के दिनों हुई बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से प्रदेश के दो दर्जन जिलों में खेतों में खड़ी चना, मसूर, गेहूं, सरसों, मटर और सब्जी का फसल को काफी नुकसान हुआ। प्रदेश में ओलावृष्टि से अब तक 1,04,611 हेक्टेयर क्षेत्र में रबी फसलों को नुकसान पहुंचने का अनुमान है। प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश जिलों में 25 से 33 प्रतिशत के बीच नुकसान का आंकलन किया गया है। ओलावृष्टि से फसलों के नुकसान की राशि करीब 900 करोड़ रुपए आंकी गई है। खास बात यह है कि इस बार मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के सदस्य ओलाव़ष्टि से हुआ नुकसान देखने खेतों में नहीं पहुंचे। अपने पिछले कार्यकाल में सीएम शिवराज कई मौकों पर अतिवृष्टि व ओलावृष्टि से हुए नुकसान का जायजा लेने खेतों में पहुंचते नजर आए। वर्ष 2019 में कमलनाथ जब मुख्यमंत्री थे और प्रदेश में ओलावृष्टि से फसलों को नुकसान हुआ था, तो शिवराज सिंह चौहान ने कमलनाथ पर तंज कसते हुए उनसे खेतों में जाने को कहा था, लेकिन विभागों की समीक्षा में मशगूल होने की वजह से इस बार वे खुद खेतों में जाकर नुकसान का जायजा लेना भूल गए। महंगे डीजल, खाद, बीज से प्रदेश का किसान परेशान है। उन्हें फसलों का उचित दाम नहीं मिल रहा है। किसानों बैंकों का कर्ज नहीं चुका पा रहे हैं। करीब 21 महीने बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव होना है। पिछले चुनावों की तरह इस बार भी किसान निर्णायक भूमिका में रहेंगे।
भाजपा कैसे करेगी किसान कर्ज माफी की काट
किसान कर्ज माफी को लेकर तत्कालीन कमलनाथ सरकार को घेरने वाली भाजपा चौथी बार सत्ता में आने के बाद किसान कर्ज माफी पर खुद ही घिर गई। दरअसल, सितंबर, 2020 में आयोजित सत्र में कांग्रेस विधायक जयवद्र्धन सिंह और बाला बच्चन के प्रश्नों के जवाब में कृषि मंत्री कमल पटेल ने सदन में बताया था कि किसान कर्ज माफी के लिए चलाए गए दो चरणों में कमलनाथ सरकार ने 26 लाख 95 हजार किसानों का कुल 11,500 करोड़ रुपए का कर्ज माफ किया है। इसके बाद किसान कर्ज माफी को लेकर भाजपा बैकफुट पर आ गई। आगामी विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस किसान कर्ज माफी करने की तैयारी कर रही है। देखना होगा कि भाजपा किसान कर्ज माफी की काट कैसे करेगी?