Sunday, September 8, 2024
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सीएम की समीक्षा बैठकें, क्या 21 महीने में आत्मनिर्भर बन पाएगा मध्यप्रदेश?

वर्ष 2003 से प्रदेश में सत्ता की बागडोर भाजपा के हाथ में है। इस दरमियान सिर्फ 15 महीने को छोड़कर बचे हुए करीब 17 साल भाजपा सरकार में रही। शिवराज सिंह चौहान मार्च, 2020 में चौथी बार प्रदेश में मुख्यमंत्री बने। इससे पहले के कार्यकाल में उन्होंने प्रदेश को स्वर्णिम मप्र बनाने के लिए जी तोड़ मेहनत की। वे इस संबंध में मंत्रियों-अधिकारियों को समय-समय पर निर्देश देते रहे। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने स्वर्णिम मप्र को लेकर लगातार बैठकें कर नौकरशाही को निर्देश दिए। यह कवायद वोटरों की लुभाने के लिए थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में भाजपा हार गई, sampadkiy 1कमलनाथ मुख्यमंत्री बन गए और शिवराज सिंह चौहान का प्रदेश को स्वर्णिम बनाने का सपना पूरा नहीं हो पाया। पंद्रह महीने बाद ही कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और शिवराज चौथी बार मुख्यमंत्री बन गए। इस बार उन्होंने 'स्वर्णिम मप्र' की बजाय प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प लिया है। यह संकल्प प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनर्भिर भारत बनाने के संदर्भ में लिया गया है। करीब डेढ़ साल से मुख्यमंत्री प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने की कवायद में जुटे हैं। देशभर के विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा करने के बाद आत्मनिर्भर मप्र का रोडमैप तैयार किया गया है। इस संबंध में मुख्यमंत्री विभिन्न विभागों की दर्जनों बैठकें कर चुके हैं। निर्देश दे चुके हैं, लेकिन अब तक सरकार प्रदेश को अत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कुछ खास हासिल नहीं कर पाई है।

सीएम की समीक्षा बैठको में 52 विभागों की समीक्षा

अब जब प्रदेश में विधानसभा चुनाव को सिर्फ 21 महीने बचे हैं, तो कोरोना से निपटने की चुनौती के बीच मुख्यमंत्री ने प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कार्रवाई तेज कर दी है। इसी कड़ी में उन्होंने हाल में एक के बाद बैठकें कर सभी 52 विभागों की समीक्षा कर डाली और मंत्रियों-अधिकारियों को प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने को लेकर दिशा-निर्देश दिए। अधिकारियों को अपने-अपने विभागों को लेकर ऐसे भारी-भरकम टास्क दिए गए हैं, जिन्हें चंद महीनों में पूरा कर पाना नामुमकिन नजर आ रहा है। और हां, यह बात तय है कि यदि अफसर समीक्षा बैठकों में दिए गए सीएम के दिशा-निर्देशों पर पूरी तरह से अमल करते हैं, तो मध्यप्रदेश विकास का न्याय अध्याय लिखने में सफल हो जाएगा। जैसा कि कहा जाता है, कहना आसान होता है, करना मुश्किल। जानकारों की मानें तो शिवराज अपने पिछले कार्यकालों में भी इस तरह बैठकें कर प्रदेश के विकास को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करते रहे हैं, पर उनका नतीजा सिफर रहा।

प्रदेश में उद्योग के क्षेत्र में निवेश को ही ले लीजिए। पिछले कार्यकाल में मुख्यमंत्री चौहान ने ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट पर करोड़ों रुपए खर्च कर डाले, लेकिन वे उम्मीद के मुताबिक निवेशकों का विश्वास जीतकर प्रदेश में निवेश लाने में कामयाब नहीं हो पाए। कृषि की बात करें, तो यह प्रदेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।

किसान आत्महत्या में प्रदेश, देश में नंबर एक पर

मुख्यमंत्री शिवराज वर्षों से किसानों की आय दोगुनी करने की बात कह रहे हैं, लेकिन आज भी प्रदेश के किसानों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। किसान आत्महत्या में प्रदेश, देश में नंबर एक पर है। सरकार इस साल रबी सीजन में किसानों को डीएपी और यूरिया तक उपलब्ध नहीं करा पाई। बड़ा सवाल यह है कि शिवराज सिंह चौहान जो काम अपने 16 साल से ज्यादा के कार्यकाल में नहीं कर पाए, क्या वह बचे हुए 21 महीनों में कर पाएंगे?

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सीएम की हिदायत, पर नहीं रुक रहा भ्रष्टाचार

प्रदेश में सरकारी तंत्र में किस हद तक भ्रष्टाचार व्याप्त है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आए दिन ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त के छापों में अधिकारी-कर्मचारी रिश्वत लेते पकड़े जा रहे हैं। उनके पास से करोड़ों रुपए की काली कमाई जब्त हो रही है। यह स्थिति तब है, मुख्यमंत्री  अधिकारियों को फटकार लगाते हुए  भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं करने की बात कह रहे हैं। वे कहते हैं, मैं भ्रष्टाचार करने वालों को छोड़ूगा नहीं। सीएम पिछले 16 साल से भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात कर रहे हैं, लेकिन सरकारी नुमाइंदे सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं। उन पर मुख्यमंत्री की हिदायत का कोई असर नहीं हो रहा है। ऐसे में आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश की बात बेमानी नजर आ रही है।

समीक्षा बैठकों में मुख्यमंत्री के कुछ निर्देशों पर गौर करिए….

 – उज्जैन के महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार काशी विश्वनाथ मंदिर की तर्ज पर किया जाए।
– होशंगाबाद और बैतूल को मिलाकर वन पर्यटन सर्किट बनाया जाए।
– एफपीओ के लिए स्टेट का मॉडल तैयार करें।
– नर्मदा सिंचाई परियोजनाओं से अगले तीन वर्ष में छह लाख हेक्टेयर में सिंचाई बढ़ाएं।
– ऑनलाइन एजुकेशन के मामले में मप्र को मॉडल बनाएं। हम कुछ ऐसे कोर्सेस का एनालिसिस करें, जिनसे नौकरी मिले।

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