tomar-vs-sindhiya : वरिष्ठ भाजपा नेता व केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच पटरी नहीं बैठ रही है। चुनाव नजदीक आने के साथ ही उनके बीच की खाई और बढ़ती जा रही है। मंगलवार को भाजपा कोर ग्रुप की मीटिंग से उठकर सिंधिया यह कहकर बाहर चले गए कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है। बाद में कहा गया कि उनकी जांच रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आई है। बताया जा रहा है कि सिंधिया नरेंद्र सिंह तोमर के कारण मीटिंग छोड़कर चले गए। इससे पहले मीटिंग में सिंधिया के आने पर तोमर उठकर चले गए थे। इस बार वही काम सिंधिया ने किया। खास बात यह है कि ये दोनों ही नेता एक ही अंचल से आते हैं और उनके बीच वर्चस्व की लड़ाई है। दरअसल, रातापानी में हुई कोर ग्रुप की बैठक में पार्टी नेताओं में व्याप्त अंतर्कलह से निपटने और चुनाव का रोड मैप तैयार करने को लेकर चर्चा हुई। मजेदार बात यह है कि मीटिंग में दोनों नेताओं के बीच खाई साफ नजर आ गई।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक सिंधिया और तोमर एक दूसरे के साथ बैठना पसंद नहीं करते, इसलिए पिछली बैठक में तोमर चले गए और इस बार की बैठक में सिंधिया साथ नहीं बैठे। नगरीय निकाय चुनाव में भी हम देख चुके हैं कि ग्वालियर और मुरैना नगर निगम बीजेपी के हाथ से छिन गईं। पार्टी की समीक्षा में सामने आया कि सिंधिया और तोमर के समर्थकों के बीच खाई इतनी गहरी थी की पार्टी की लाख कोशिश के बाद भी दूरियां नहीं पाट पाईं। इस कारण ग्वालियर और मुरैना में भाजपा चुनाव महापौर का चुनाव हार गई।
tomar-vs-sindhiya : सिंधिया और तोमर दोनों की नजर ग्वालियर सीट पर
बीजेपी के सामने आने वाले लोकसभा चुनावों में बड़ी चुनौतियां हैं। खास तौर से ग्वालियर सीट को लेकर, एक तरफ सिंधिया की नजर ग्वालियर सीट पर है, तो वहीं मुरैना से सांसद और केंद्रीय मंत्री तोमर की नजर भी ग्वालियर सीट पर है। तोमर मुरैना सीट छोडऩा चाहते हैं और सिंधिया गुना से चुनाव नहीं लडऩा चाहते। दोनों ही नेता ग्वालियर को अपने लिए सेफ सीट मानकर चल रहे हैं। हालांकि पार्टी सूत्रों के मुताबिक पार्टी सिंधिया को ज्यादा तवज्जो दे सकती है, क्योंकि युवाओं में सिंधिया को लेकर क्रेज है और उन्हीं की वजह से भाजपा चौथी बार प्रदेश की सत्ता में काबिज हुई है। पार्टी फिलहाल उन्हें नाराज नहीं करना चाहती।
नरेंद्र सिंह शुरू से ही चाहते थे की भोपाल सीट से वे लड़ें, लेकिन राजनीतिक समीकरण उनके लिए फिट नहीं बैठे. तोमर को पता है की भोपाल सीट से अच्छी कोई सीट नहीं हैं। लिहाजा उनको लगता है कि यदि पार्टी ने उनकी जगह सिंधिया को ज्यादा तवज्जो दी, तो फिर उन्हें फिर मुरैना से ही लडऩा पड़ेगा, लेकिन मुरैना में वे खुद की जीत को लेकर संशय में हैं। पार्टी तोमर पर ज्यादा विश्वास करती है या सिंधिया पर भरोसा जताती है, यह आने वाला वक्त बताएगा।