मुख्यमंत्री शिवराज तक को नहीं बनाया स्टार प्रचारक
सियासत के नजरिए से देश के सबसे अहम् राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की रणभेरी बच चुकी है। चुनाव की तारीखों को ऐलान होने के साथ ही राजनीतिक दलों ने चुनाव मैदान में पूरी ताकत झोंक दी है। पार्टियों में नेताओं की तोड़-फोड़ जारी है। वैसे तो उत्तर प्रदेश के चुनावों पर पूरे देश की निगाह रहती है, क्योंकि कहते हैं, दिल्ली जीतने के लिए उत्तर प्रदेश जीतना जरूरी है। पड़ोसी राज्य होने के नाते मप्र के लोगों और नेताओं की उत्तर प्रदेश के चुनाव में विशेष रुचि रहती है। खास बात यह है कि इस बार भाजपा संगठन ने उप्र विधानसभा चुनाव में मप्र के भाजपा नेताओं को
क्या मप्र के भाजपा नेताओं का कोई सियासी कद नहीं बचा
माना जा रहा है कि उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से ब्राह्मण नाराज हैं और वे उन्हें चुनाव में सबक सिखाने की तैयारी में हैं। पिछड़ा वर्ग नेताओं को सपा प्रमुख अखिलेश यादव पहले ही लामबंद कर चुके हैं। मध्य प्रदेश का भाजपा संगठन ब्राह्मण और अन्य पिछड़ा वर्ग के नेताओं को उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार के लिए भेजने की तैयारी में था। इनमें शिवराज सिंह चौहान, उमा भारती, प्रहलाद पटेल, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा व गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के नाम प्रमुख हैं। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को तो उत्तर प्रदेश चुनाव में एक बार मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में भी प्रोजेक्ट किया गया था, लेकिन इस बार उन्हें भी स्टार प्रचारक बनने का मौका नहीं मिला है। भाजपा ने संगठन से जुड़े मप्र के कुछ वरिष्ठ नेताओं को उप्र चुनाव में छोटी-मोटी जिम्मेदारी सौंपी है। न तो किसी को विधानसभा सीटों का प्रभार सौंपा है और न ही स्टार प्रचारक बनाया गया है। प्रदेश के एक भी भाजपा नेता को स्टार प्रचारक नहीं बनाए जाने को लेकर विरोधी दल मुखर हैं। वे कह रहे हैं कि राष्ट्रीय नेतृत्व की नजर में मप्र के भाजपा नेताओं का कोई सियासी कद नहीं रह गया है। राष्ट्रीय नेतृत्व प्रदेश भाजपा के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय को पश्चिम बंगाल चुनाव की कमान सौंपकर इसका हश्र देख चुका है।
कड़ा और रोचक होगा मुकाबला
पिछले विधानसभा चुनाव में उप्र में भाजपा ने एकतरफा जीत दर्ज की थी। विधानसभा की कुल 403 सीटों में से भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने 325 सीटों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन इस बार उप्र का चुनावी माहौल अलग है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव जिस तरह से रणनीति बनाकर चुनावी बिसात बिछा रहे हैं, उससे उप्र में चुनावी मुकाबला दिलचस्प और कड़ा हो गया है। उप्र में बीजेपी के लिए चुनाव जीतना आसान नहीं दिख रहा है। सभी सीटों पर कड़ा संघर्ष होने की बात कही जा रही है। यही वजह है कि पार्टी नेतृत्व के फैसले से कई भाजपा नेता खुश हैं। वे कोरोना संक्रमण और कड़े मुकाबले के बीच उप्र जाने से बच रहे थे, क्योंकि सीटें हारने की स्थिति में हार का दाग उनके माथे पर लग जाएगा। उप्र में मुख्यमंत्री योगी सत्ता में फिर वापसी करेंगे या अखिलेश यादव पांच साल बाद सत्ता संभालेंगे, इसका फैसला 10 मार्च को होगा।