अब से करीब सवा तीन साल पहले जब कांग्रेस 15 साल का वनवास पूरा कर सत्ता में आई थी, तो इसमें तीन किरदारों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरािदत्य सिंधिया। तीनों ने एकजुट होकर विधानसभा चुनाव लड़ा और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन गई। कमलनाथ को प्रदेश की कमान सौंप दी गई। कमलनाथ मुख्यमंत्री थे, लेकिन कहा जाता था कि सरकार का रिमोट कंट्रोल दिग्विजय सिंह के पास है। तमाम की-पोस्ट पर दिग्विजय सिंह के
कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच 'तल्ख' संवाद
कांग्रेसियों को उम्मीद है कि ये दोनों मिलकर 2023 में फिर से कांग्रेस की सत्ता में वापसी करवाएंगे, लेकिन गत 21 जनवरी को धरने के दौरान सड़क पर जिस तरह कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच 'तल्ख' संवाद हुआ, उससे यह स्पष्ट हो गया कि इन दोनों के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। उनके बीच अदावत की इस आहट से कांग्रेसी सदमे में हैं। जिन दो वरिष्ठ नेताओं के भरोसे में पौने दो साल बाद सत्ता में वापसी की बाट जोह रहे हैं, यदि उनके बीच ही रिश्ते मधुर नहीं रहे तो कांग्रेस नेताओं का भविष्य क्या होगा? दरअसल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर मिलने के लिए समय नहीं देने का आरोप लगाते हुए दिग्विजय सिंह 21 जनवरी को सीएम हाउस के नजदीक सड़क पर धरने पर बैठ गए। दिग्विजय जब सड़क पर बैठे थे, तब कमलनाथ भी उनसे मिलने पहुंच गए। वे भी उनके साथ सड़क पर बैठ गए। इसी दौरान उन्होंने दिग्विजय से पूछा कि चार दिन पहले तो मैं यहीं था, मुझे इस कार्यक्रम के बारे में बताया तक नही गया। इस पर बगल में बैठे दिग्विजय ने कहा कि क्या मैं आप से पूछकर मुख्यमंत्री से मिलने का समय लूंगा? इस पर कमलनाथ ने कहा कि देट इज गुड और चंद सेकंड बाद ही वे वहां से उठकर चले गए। उनके बीच सड़क पर हुए इस संवाद का वीडियो जमकर वायरल हो रहा है। बीजेपी भी उन दोनों के बीच हुए इस संवाद को लेकर कांग्रेस पर तंज कसने का मौका नहीं छोड़ रही है। यह भी संयोग है कि जिस समय दिग्विजय धरने पर बैठे थे, ठीक उसी समय कमलनाथ और सीएम शिवराज स्टेट हैंगर पर आपस में बात कर रहे थे। शिवराज से मिलने के बाद ही कमलनाथ दिग्विजय के धरने में पहुंचे थे। कांग्रेस नेताओं का एक बड़ा वर्ग यह मान रहा है कि दिग्विजय सिंह अपनी लाइन बड़ी करना चाहते हैं। यही वजह है कि वे आए दिन बयानबाजी और ट्वीट के जरिए आरएसएस, भाजपा पर हमला करते रहते हैं, जिसका खमियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ रहा है।
पार्टी में अराजकता
दिग्विजय प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, मुख्यमंत्री और केंद्रीय महासचिव रहे हैं। फिलहाल वे राज्यसभा सदस्य हैं। उन्हें पार्टी के नियमों की भलीभांति जानकारी है। उन्हें यह साफ करना चाहिए कि क्या वे निजी हैसियत से मुख्यमंत्री से मिलना चाहते थे या फिर राच्यसभा सदस्य और पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से। अगर यह उनका निजी कार्यक्रम था, तो कोई बात नहीं। अगर ऐसा नहीं, तो उन्हें पीसीसी चीफ को इस बारे में सूचित तो करना ही चाहिए था। अगर पार्टी नेता उनका अनुसरण करने लगेंगे, तो फिर पार्टी में अराजकता फैल जाएगी। कोई किसी की न सुनेगा, न मानेगा। कांगे्रसी मानते हैं कि मुख्यमंत्री रहते कमलनाथ भरम में रहे। दिग्विजय को अपना सबसे पुराना और करीबी साथी बताकर उन पर आंख मूंदकर विश्वास जताते रहे। कमलनाथ यह भूल गए थे कि इन्हीं दिग्विजय सिंह ने अपने गुरु अर्जुन सिंह को प्रदेश में राजनीतिक हाशिये पर पहुंचा दिया था। वे उनके सगे कैसे हो सकते हैं। उधर दिग्विजय ने अपना कमाल दिखा दिया। उन्होंने अपने बेटे जयवद्र्धन सिंह की राजनीति चमकाने के लिए ऐसी कुटिल चाल चली कि ज्योतिरादित्य पार्टी छोडऩे पर मजबूर हो गए और कमलनाथ सड़क पर आ गए।
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दरार भरेगी या और गहरी होगी
दिग्विजय की राजनीति पर पिछले चार दशक से गहरी नजर रखने वाले एक पुराने कांग्रेस नेता की राय में-दिग्विजय इन दिनों तडफ़ रहे हैं। दिल्ली उन्हें पूछ नही रही है। जिस उत्तरप्रदेश के प्रभारी रहे हैं, उसमें चुनाव प्रचार का चेहरा भी नही बनाया है। 10 जनपथ और 24 अकबर रोड के कपाट उनके लिए खुल नही रहे हैं, तो फिर वे क्या करें? दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के बीच आई दरार भरेगी या और गहरी होगी और आने वाले विधानसभा चुनाव पर इसका क्या असर पड़ेगा, यह आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की अदावत से फिलहाल कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता परेशान हैं।
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