वन नेशन-वन इलेक्शन यानी एक देश-एक चुनाव को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। 18,626 पन्नों की इस रिपोर्ट में समिति ने देश में एकसाथ लोकसभा, विधानसभा चुनावों के लिए संविधान में संशोधन की सिफारिश की है। कोविंद की अध्यक्षता वाली इस समिति ने देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए राष्ट्रपति से संविधान के अंतिम पांच अनुच्छेदों में संशोधन की सिफारिश की है।
इनमें संसद के सदनों की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 83, लोक सभा के विघटन से संबंधित अनुच्छेद 85, राज्य विधानमंडलों की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 172, राज्य विधानमंडलों के विघटन से संबंधित अनुच्छेद 174, और राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने अनुच्छेद 356 शामिल है। समिति की यह रिपोर्ट 191 दिनों के शोध कार्य का परिणाम है। इसमें कहा गया है कि पहले चरण में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं, इसके बाद 100 दिन के अंदर दूसरे चरण में स्थानीय निकायों के चुनाव कराए जा सकते हैं।
एकसाथ चुनाव कराने को लेकर ज्यादातर दल सहमत
समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, लोकसभा, विधानसभा और पंचायत चुनाव को एक साथ कराने को लेकर ज्यादातर राजनीतिक दल सहमत हैं। समिति ने एक राष्ट्र-एक चुनाव के लिए सरकार गिरने की स्थितियों पर एकसाथ चुनाव कराने की व्यवस्था कायम रखने की अहम सिफारिशें की है। समिति की रिपोर्ट में एक मतदाता सूची रखने की सिफारिश, लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव के लिए एक मतदाता सूची रखने की सिफारिश शामिल है यानी लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव कराने के लिए एक सिंगल वोटर लिस्ट बनाई जाए। बताया जा रहा है जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रासंगिक प्रावधानों में संशोधन करने की भी सिफारिश की गई है।
बताया गया है कि समिति का मानना है कि उसकी सभी सिफारिशें सार्वजनिक डोमेन में होनी चाहिए, लेकिन इसको लेकर फैसला सरकार ही करे। रिपोर्ट एक साथ चुनाव कराने के लिए जरूरी वित्तीय और प्रशासनिक संसाधनों का भी ब्योरा दिया जाएगा। इसको लेकर समिति ने अपनी वेबसाइट के जरिए से दिए गए फीडबैक और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों सहित तमाम हितधारकों से फीडबैक पर विचार किया है।
पिछले साल किया गया था समिति का गठन
समिति का गठन पिछले साल 2 सितंबर को किया गया था और इसके अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद हैं। समिति राजनीतिक दलों, संवैधानिक विशेषज्ञों, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों और चुनाव आयोग व अन्य संबंधित हितधारकों के साथ उनके विचार जानने और मामले पर गहन जानकारी एकत्रित करने के लिए परामर्श कर रही थी। समिति के कार्यक्षेत्र में अन्य पहलुओं के अलावा शासन, प्रशासन, राजनीतिक स्थिरता, खर्च और वोटरों की भागीदारी पर चुनावों के संभावित प्रभाव की जांच करना शामिल है।
रामनाथ कोविंद कर चुके हैं ये अपील
इससे पहले एक संसदीय स्थायी समिति, नीति आयोग और विधि आयोग ने एक साथ चुनाव के मुद्दे पर विचार किया है, जिसमें एक के बाद एक चुनाव कराने के बढ़ते खर्च पर चिंता व्यक्त की गई है, लेकिन साथ ही संभावित संवैधानिक और कानूनी समस्याओं का भी जिक्र किया गया है। कोविंद पहले ही संसदीय और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने के पक्ष में रहे हैं और सभी राजनीतिक दलों से राष्ट्रीय हित में इस विचार का समर्थन करने की अपील भी कर चुके हैं। पिछले साल नवंबर में पूर्व राष्ट्रपति ने कहा था कि केंद्र में सत्ता में रहने वाली किसी भी पार्टी को “एक राष्ट्र, एक चुनाव” से लाभ होगा और चुनाव खर्च में बचाए गए धन का उपयोग विकास के लिए किया जा सकता है। बीजेपी के 2014 और 2019 के घोषणापत्र में पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की वकालत की गई थी, लेकिन इसे लागू करने के लिए संविधान में कम से कम पांच अनुच्छेद और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में बदलाव करना होगा।