नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को लेक्स फ्रिडमैन के साथ 3 घंटे के इंटरव्यू में कहा कि मेरी ताकत मेरे नाम में नहीं बल्कि 1.4 अरब भारतीयों और देश की कालातीत संस्कृति और विरासत के समर्थन में निहित है। जब मैं विश्व के नेताओं से हाथ मिलाता हूं, तो ऐसा मोदी नहीं बल्कि 1.4 अरब भारतीय करते हैं। पीएम ने कहा कि जब भी हम शांति की बात करते हैं, तो दुनिया हमारी बात सुनती है, क्योंकि भारत गौतम बुद्ध और महात्मा गांधी की भूमि है। मैंने अपने शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान को आमंत्रित किया था, ताकि एक नया अध्याय शुरू कर सकूं, लेकिन शांति के हर प्रयास का सामना दुश्मनी और विश्वासघात से हुआ।पीएम ने कहा कि पाकिस्तान के लोग शांति चाहते हैं। हम पूरी ईमानदारी से आशा करते हैं कि पाकिस्तान को एक दिन सद्बुद्धि आएगी और वह शांति का रास्ता अपनाएगा। अपनी आलोचना के सवाल पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा- मैं किसी भी तरह की आलोचना का स्वागत करता हूं। मेरा दृढ़ विश्वास है कि यह लोकतंत्र की आत्मा है।
पाकिस्तान के लोग आतंक में रहने से थक गए होंगे
मोदी ने पाकिस्तान से शांति के सवाल पर कहा कि 2014 में मैं जब पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाला था तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को विशेष रूप से आमंत्रित किया था। उम्मीद थी कि दोनों देश एक नया अध्याय शुरू करेंगे। यह दशकों में किसी भी तरह का अनूठा कूटनीतिक इशारा था। वही लोग जो कभी विदेश नीति के प्रति मेरे दृष्टिकोण पर सवाल उठाते थे, वे तब हैरान रह गए जब उन्हें पता चला कि मैंने सभी सार्क राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित किया है। हालांकि शांति का हर नेक प्रयास का सामना दुश्मनी और विश्वासघात से हुआ। पाकिस्तान के लोग शांति चाहते हैं। वे भी संघर्ष, अशांति और निरंतर आतंक में रहने से थक गए होंगे। हम पूरी ईमानदारी से आशा करते हैं कि पाकिस्तान को एक दिन सद्बुद्धि आएगी और वह शांति का मार्ग अपनाएगा। हमारे तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने संस्मरण में उस ऐतिहासिक इशारे का वर्णन किया है। उन्होंने कहा- यह इस बात का प्रमाण है कि भारत की विदेश नीति कितनी स्पष्ट और आत्मविश्वासी हो गई है। इसने दुनिया को शांति और सद्भाव के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के बारे में एक स्पष्ट संदेश दिया, लेकिन हमें वांछित परिणाम नहीं मिले।
महात्मा गांधी की गो-रक्षा की इच्छा थी
पीएम मोदी ने कहा कि हमारे यहां महात्मा गांधी की गो-रक्षा की इच्छा थी। उसको लेकर आंदोलन चल रहा था। उस समय पूरे देश में एक दिन का व्रत करने का कार्यक्रम था। हम तो बच्चे थे, प्राइमरी स्कूल से निकला था। मुझे भी व्रत रखना था। उस उम्र में मुझे नई एनर्जी मिल रही थी। मुझे लगा कि ये कोई साइंस है। धीरे-धीरे इसके बारे में और समझता गया। मैंने देखा है कि उपवास के दौरान मुझे अगर कहीं अपने विचारों को व्यक्त करना है। तो मैं हैरान हो जाता हूं कि ये विचार कहां से आते हैं। कैसे निकलते हैं।