Saturday, February 22, 2025
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दिल्ली हाई कोर्ट का बड़ा बयान: युवाओं को प्यार करने की आज़ादी होनी चाहिए, कानून को होना चाहिए विकसित

दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में कहा कि 18 साल से कम उम्र के युवाओं को वैधानिक बलात्कार कानूनों के डर के बिना रोमांटिक और सहमति से बने संबंधों में शामिल होने की आजादी होनी चाहिए. वैधानिक बलात्कार कानून के तहत अगर रिश्ते में कोई भी व्यक्ति 18 साल से कम है तो इस रिश्ते को अपराध माना जाता है. जस्टिस जसमीत सिंह की बेंच ने इस मामले पर बात करते हुए कहा कि किशोरावस्था में लड़के-लड़कियों के बीच सहमति से बनाए गए शारीरिक संबंधों को भी अपराध माना जाता है और इसको POCSO अधिनियम के तहत जुर्म माना जाता है. इसी बात पर जज ने राय दी कि इस यंग उम्र में लड़के-लड़कियों के बीच प्यार को स्वीकार करने के लिए कानून को विकसित होना चाहिए. जज ने कहा, मेरा मानना ​​है कि सामाज और कानून दोनों को ही युवा व्यक्तियों के रोमांटिक रिश्तों में शामिल होने के अधिकारों पर जोर देना चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा कि यह रिश्ते ऐसे हो जिसमें न लड़का और न लड़की किसी का भी शोषण न हो और किसी के साथ भी दुर्व्यवहार न हों.

प्यार करने की आजादी होनी चाहिए
जज ने युवाओं के प्यार को स्पोर्ट करते हुए कहा, प्यार एक ऐसा अनुभव है जो सभी को होना चाहिए, यह एक फंडामेंटल अनुभव है. किशोरों को इमोशनल कनेक्शन बनाने का अधिकार है. कानून को इन रिश्तों को स्वीकार करने और सम्मान देने के लिए विकसित होना चाहिए. इन रिश्तों को स्वीकार करने की शर्त यह होनी चाहिए कि यह सहमति से बने हों और इन में किसी तरह की जबरदस्ती न हों. कोर्ट ने कहा कि जहां नाबालिगों की सुरक्षा के लिए सहमति की कानूनी उम्र जरूर है जोकि 18 साल है. वहीं कानून को सहमति से बनाए गए संबंधों को अपराध बनाने के बजाय इन रिश्तों में शोषण और दुर्व्यवहार को रोकने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए. लीगल सिस्टम को युवा व्यक्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए उनके प्यार के अधिकार की रक्षा करनी चाहिए. किशोर रिलेशनशिप से जुड़े मामलों में सजा देने के बजाय समझ को अहमियत देनी चाहिए.

क्या था पूरा मामला?
मार्च 2024 में, आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने POCSO मामले में बुक किए गए 21 साल के व्यक्ति को जमानत दे दी और कहा गया कि अदालतें किशोर प्रेम को नियंत्रित नहीं कर सकती हैं. जुलाई 2024 में, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने चिंता जताई की कि सहमति से रोमांटिक संबंधों में किशोरों के खिलाफ POCSO अधिनियम का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है. दिल्ली हाई कोर्ट ने यह फैसला साल 2014 के एक केस के दौरान सुनाया. साल 2014 में एक पिता ने शिकायत दर्ज कराई थी कि उनकी 12वीं कक्षा में पढ़ने वाली बच्ची, ट्यूशन क्लास गई थी और उसके बाद वापस घर नहीं लौटी. बाद में लड़की एक लड़के के साथ मिली थी. लड़के की उम्र 18 साल से ज्यादा था. लड़के को POCSO अधिनियम के तहत अपराध के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.

दिल्ली हाई कोर्ट ने POCSO अपील की खारिज
एक ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को सभी आरोपों से बरी कर दिया, जिसके बाद राज्य ने हाईकोर्ट में अपील दायर की. हाईकोर्ट ने 30 जनवरी, 2025 को राज्य की अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि लड़की ने अपनी गवाही में साफ रूप से कहा था कि आरोपी के साथ उसका संबंध सहमति से था. कोर्ट ने यह भी कहा कि लड़की की सही उम्र में विसंगतियों थी और घटना के समय 16-17 साल थी. अदालत ने कहा कि लड़की की उम्र के निश्चित सबूत के बिना POCSO अधिनियम के तहत आरोपी को दोषी ठहराना कठोर होगा, खासकर जब लड़की घटना के समय अडल्ट होने की उम्र (18 वर्ष) से सिर्फ दो साल छोटी थी. हालांकि, यह भी साफ किया गया कि यह सिद्धांत तब लागू नहीं होगा अगर यह साबित कर दिया जाए कि लड़की की उम्र घटना के समय 14-15 साल से कम थी. कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में, POCSO अधिनियम के प्रावधानों की अनदेखी करना न्याय की हत्या के बराबर होगा.

पहले भी कोर्ट ने किया स्पोर्ट
ऐसा पहली बार नहीं है कि किसी कोर्ट ने युवाओं के प्यार और रिश्ते को लेकर स्पोर्ट किया हो, इससे पहले भी कई बार कोर्ट की तरफ से यह आवाज उठाई गई है. अक्टूबर 2023 में, कलकत्ता हाई कोर्ट ने चिंता जाहिर की थी कि POCSO अधिनियम अनुचित रूप से किशोरों के बीच सहमति से बनाए गए शारीरिक संबंधों को को यौन अपराधों के साथ जोड़ता है. इसी के साथ कोर्ट ने कहा था कि इस कानून में संशोधन किया जाना चाहिए और इसमें 16 साल से अधिक उम्र के किशोरों के सहमति से बनाए गए शारीरिक रिलेशनशिप को अपराध नहीं माना जाना चाहिए. इसी तरह की राय 2021 में मद्रास हाई कोर्ट ने भी सामने रखी थी. कर्नाटक हाई कोर्ट ने फरवरी 2024 में कहा था कि POCSO एक्ट का मकसद किशोरों में मरजी के साथ बनाए गए संबंधों को अपराध मानना नहीं है बल्कि यौन संबंधों में दुर्व्यवहार से बचाना है.

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