इस संसार में जो आया है उसका मरना तो निश्चित है लेकिन कभी-कभी ऐसी घटनाएं हो जाती है जिसमें कि हम अपने कई पूर्वजों को अपने अल्पकाल में ही खो देते हैं। ऐसी स्थिति में उनका किस तिथि में श्राद्ध किया जाए इस चिंता में लोग डूबे रहते हैं । आज हम बताने जा रहे हैं कि ऐसे पितरों को किस तिथि में श्राद्ध करना चाहिए एवं उनके पितरों को शांति के लिए क्या अनुष्ठान करना चाहिए।
पंचम तिथि पर कुंवारे पितरों का विधिवत पिण्डदान
इस वर्ष पंचम तिथि 3 अक्टूबर, मंगलवार को है एवं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पंचम तिथि पर कुंवारे पितरों का विधिवत पिण्डदान करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। ऐसा भी माना गया है कि इस दिन किसी कुंवारे ब्राह्मण को बुलाकर पितरों का तर्पण कराया जाना चाहिए। पहले गाय कौवा कुत्ता चींटी और पीपल देव को भोजन अर्पित करना चाहिए। पंचम तिथि को धर्म कर्मदान कार्य भी बहुत शुभ माना जाता है इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को अपनी क्षमता अनुसार कोई भी सामान दान मिठाइयां फल आदि दान कर इस दिन पीपल बरगद तुलसी अशोक के पेड़ भी लगाना शुभ माना गया है। ऐसा माना गया है कि इस दिन कुंवारें पितरों को तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
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मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध सिर्फ पुरुषों द्वारा ही किया जाता है लेकिन गरुड़ पुराण की माने तो कन्याएँ श्राद्ध कर्म कर सकती हैं। कन्या इसी स्थिति में श्राद्ध कर सकती है जब उसे घर में कोई पुरुष ना हो ऐसा माना जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि जब भगवान राम सीता के साथ पिता दशरथ का श्राद्ध करने गए गया गए थे, उसी सयम ऐसा हुआ कि भगवान राम श्राद्ध की सामग्री लेने के लिए चले गए, इस दौरान राजा दशरथ की आत्मा ने पिंडदान की मांग की जिससे माता सीता ने फल्गु नदी घास केतकी के फूल और वट वृक्ष को साक्षी मानकर श्राद्ध किया था, इस अनुसार कुछ पंडितों का मानना है की कन्याओं द्वारा श्राद्ध कर्म किया जा सकता है बस घर में कोई भी पुरुष ना हो और कन्या ही उसे घर की जवाबदारी संभाल रही हो।
श्राद्ध के अन्य नियम
श्रद्धा के संबंध में यह भी मानता है कि पितरों का साथ सही तिथि पर ही करना चाहिए अगर किसी कारण से आपकी तिथि याद नहीं है, तो सर्व पितृ अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। श्राद्ध में सफेद रंग का महत्व होता है। नहाने के बाद श्राद्ध पक्ष में सफेद कपड़े पहनना चाहिए साथ सामग्री में कुछ रोली सिंदूर चावल जान काले तिल और गंगाजल जैसे पदार्थ जरूर रखें साथ कम करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना और अपनी क्षमता अनुसार दान भी दे सकते हैं। श्राद्ध कर्म के दौरान मानता है कि कौओं को भोजन खिलाने से पितरों को तर्पण होता है एवं प्रकृति का संरक्षण होता है।