Thursday, March 28, 2024
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Chaitra Navratri : कब है चैत्र नवरात्रि?, जानिए मां दुर्गा के नौ स्वरूप, महत्व और पूजा विधि..

22 मार्च 2023 से चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) का शुभारंभ होने जा रहा है। चैत्र नवरात्रि के शुरू होते ही नया हिंदू विक्रम संवत 2080 भी शुरू हो जाएगा। इस दिन महाराष्ट्र में हिंदू नववर्ष को गुडी पड़वा के रूप में मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार साल में 4 बार नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। शारदीय और चैत्र नवरात्रि बहुत ही खास तरीके से मनाया जाता है। नवरात्रि के 9 दिनों तक देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-उपासना की जाती है। प्रत्येक वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ हो जाता है। हिन्दू धर्म में नवरात्रि के इन नौ दिनों को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि चैत्र नवरात्रि पर्व में नवदुर्गा की उपासना करने से और उपवास रखने से साधकों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष 22 मार्च

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चैत्र नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विशेष पूजा का विधान है। प्रथम दिन यानि प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना के साथ माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। बता दें कि इन नौ दिनों में मां दुर्गा के सभी नौ स्वरूपों को अलग-अलग भोग अर्पित किया जाता है। आइए जानते हैं मां दुर्गा के नौ स्वरूप और उनके प्रिय भोग।

प्रथम दिन (माता शैलपुत्री)

कलश स्थापना के साथ ही प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना की जाती है। इनकी सवारी सफेद गाय है और यह पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। माता को सफेद रंग बहुत प्रिय है और इनकी उपासना करने साधक को आरोग्यता का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन मां शैलपुत्री को गाय के घी का भोग अर्पित किया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है और देवी मां अपने भक्तों को हर संकट से मुक्ति देती हैं।

दूसरा दिन (माता ब्रह्मचारिणी)

चैत्र मास की द्वितीया तिथि के दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा का विधान है। माता ब्रह्मचारिणी के पूजन-अर्चन से आपके व्यक्तित्व में वैराग्य, सदाचार और संयम बढ़ने लगता है। इस दिन मां को शक्कर और पंचामृत का भोग लगाया जाता है।मान्यता है कि यह भोग लगाने से माँ दीर्घायु होने का वरदान देती हैं इसके साथ ही इस प्रसाद को घर के सभी सदस्यों को अवश्य ही दें। वास्तु शास्त्र के अनुसार माता के प्रसाद को ग्रहण करने से इंसान लंबी उम्र को प्राप्त करता है।

तीसरा दिन (मां चंद्रघंटा)

चैत्र तृतीया तिथि के दिन मां चंद्रघंटा की उपासना की जाती है। माता की सवारी सिंह है और इनकी पूजा करने से साधकों को सांसारिक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है।वही माता के भोग की बात करें तो मां को दूध से बनी मिठाइयां, खीर आदि का भोग लगाएं, जिससे माता चंद्रघंटा अधिक प्रसन्न होती हैं।मान्यता है कि ऐसा करने से धन-वैभव व ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

चौथा दिन (माता कूष्मांडा)

चैत्र नवरात्रि के चतुर्थी तिथि के दिन मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है। माता कूष्मांडा बाघ की सवारी करती हैं और उनकी उपासना से बुद्धि और मनोबल में वृद्धि होती है। इस दिन माता को मालपुए का भोग अर्पित करें।आप माता को लगाए भोग को ब्राह्मणों को दान करते हैं तो आपको अधिक फल प्राप्त होता है। इसके साथ ही इस भोग को घर के सभी सदस्यों को भी अवश्य ही ग्रहण करना चाहिए।ऐसा करने से बुद्धि का विकास होता है और मनोबल भी बढ़ता है।

पांचवां दिन (मां स्कंदमाता)

चैत्र मास के पंचमी तिथि के दिन मां स्कंदमाता की पूजा का विधान है। माता स्कंदमाता की सवारी शेर है और इनकी पूजा करने से साधक को आरोग्यता का आशीर्वाद प्राप्त होता है, साथ ही सभी शारीरिक पीड़ाएं दूर हो जाती हैं। इन दिन माता को केले का भोग अर्पित करें।कहा जाता है कि माता को केले का भोग लगाने से सभी शारीरिक रोगों से मुक्ति मिलती है,बच्चों का करियर अच्छा रहता है।

छठा दिन (माता कात्यायनी)

चैत्र नवरात्रि के षष्ठी तिथि के दिन माता कात्यायनी की पूजा की जाती है। माता कात्यायनी की उपासना करने से आकर्षण शक्ति में वृद्धि होती है और घर-परिवार से नकारात्मक उर्जा समाप्त हो जाती है। षष्ठी तिथि के दिन मां को लौकी, मीठे पान और शहद का भोग अर्पित करें।ऐसा करने से आकर्षण शक्ति में वृद्धि के योग बनते हैं और घर से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।

सातवां दिन (मां कालरात्रि)

चैत्र मास की सप्तमी तिथि के दिन माता कालरात्रि की विधि-विधान से उपासना की जाती है। मान्यता है कि माता कालरात्रि की उपासना करने से शत्रुओं पर विजय का आशीर्वाद मिलता ही और रोग-दोष से मुक्ति प्राप्त होती है। इस दिन माता को गुड़ से बनी मिठाई का भोग अर्पित करें।मान्यता है कि इस दिन यह भोग लगाने से माँ रोग व शोक से मुक्ति देती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।

आठवां दिन (माता महागौरी)

चैत्र शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन माता महागौरी की पूजा का विधान है। शास्त्रों में बताया गया है कि माता महागौरी की उपासना करने से सभी कष्टों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।माता महागौरी को नारियल का भोग बेहद प्रिय है, इसीलिए नवरात्रि के आठवें दिन आप भोग के रूप में नारियल चढ़ाएं तो आपको मनोवांछित फल प्राप्त होगा और घर में कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती है।

नौवां दिन (माता सिद्धिदात्री)

चैत्र नवरात्रि पर्व के अंतिम दिन यानि नवमी तिथि को माता सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है। इस दिन कन्या पूजन भी किया जाता है।देवी सिद्धिदात्री को घर में बने हलवा-पूड़ी और खीर का भोग लगा कर कन्या पूजन करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं।

नवरात्रि के 9 दिन का महत्व

नवरात्र शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है नव और रात्रि यानी की 9 रातें। ‘रात्रि’ शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है। प्राचीन काल में शक्ति और शिव की उपासना के लिए ऋषि मुनियों ने दिन की अपेक्षा रात्रि को ज्यादा महत्व दिया है। पुराणों के अनुसार रात्रि में कई तरह के अवरोध खत्म हो जाते हैं। रात्रि का समय शांत रहता है, इसमें ईश्वर से संपर्क साधना दिन की बजाय ज्यादा प्रभावशाली है। इन 9 रातों में देवी के 9 स्वरूप की आराधना से साधक अलग-अलग प्रकार की सिद्धियां प्राप्त करता है।

नवरात्रि में रात्रि की पूजा के लाभ

वहीं दूसरा रात्रि का दूसरा पक्ष ये है कि मनुष्य जीवन के तीन पहलू हैं शरीर, मन और आत्मा। भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक यह तीनों के ईर्द गिर्द ही मनुष्य की समस्याएं घिरी होती है। इन समस्याओं से जो छुटकारा दिलाती है वह रात्रि है। रात्रि या रात आपको दुख से मुक्ति दिलाकर आपके जीवन में सुख लाती है। इंसान कैसी भी परिस्थिति में हो, रात में सबको आराम मिलता है। रात की गोद में सब अपने सुख-दुख किनारे रखकर सो जाते हैं। नवरात्रि के 9 रातें साधना, ध्यान, व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, तंत्र, त्राटक, योग आदि के लिए महत्वपूर्ण होती है।

चैत्र नवरात्रि की रात में ऐसे करें 9 दिन तक पूजा

चैत्र नवरात्रि के पहले दिन से आखिरी दिन तक रात्रि में देवी के समक्ष घी का दीपक जलाएं और फिर दुर्गासप्तशती का पाठ करें। कहते हैं इससे देवी दुर्गा बेहद प्रसन्न होती है और साधक के हर कष्ट हर लेती हैं।

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