हटा/दमोह: सावन के महीने का इंतजार लोगों को साल भर रहता है। इस बार तो सावन का महीना और भी ज्यादा खास है, क्योंकि इस बार सावन का महीना पूरे दो महीने चलने वाला हैं, सावन का महीना भगवान शिव को अतिप्रिय है। शिवालयों में भक्त भगवान शिव को जल अर्पित करने पहुंच रहे हैं। इन्हीं शिवालयों में से एक है हटा का गौरीशंकर मंदिर। जहां भगवान दूल्हे के वेश में माता पार्वती के साथ नंदी पर विराजमान हैं। यहां भगवान के दर्शनों के लिए जिले के अलावा अन्य जिलों से भी लोग आते हैं।
गौरीशंकर मंदिर का इतिहास
हटा के गौरीशंकर मंदिर की स्थापना के पहले तकरीबन 350 वर्ष पूर्व मालगुजारी शासनकाल में हटा की मालगुजारिन हजारिन बहू ने अपने पति की स्मृति में एक चबूतरा निर्माण कराया था। बाद में उसी पर भगवान गौरीशंकर की साकार स्वरूप और राजसी वेश वाली संगमरमरी प्रतिमा को स्थापित कराकर यहां पर विराट मंदिर का निर्माण कराया। यहां करीब तीन फीट ऊंचे दूल्हा वेशधारी नंदी पर सवार भगवान शंकर के वामांग में विराजी माता पार्वती की प्रतिमा शोभायमान है।
इस मंदिर में दाहिनी वती सू़ंड वाले दुर्लभ गजानन और बाईं ओर बटुक भैरव की स्थापना की गई है। इन दोनों प्रतिमाओं के बीच में एक मुंड रखा है। ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन शिव मंदिरों में यह मुंड रखे मिलते हैं। दक्षिण मुखी भगवान शिव के गौरीशंकर वाले इस साक्षात स्वरूप के बारे में मान्यता है कि वे माता पार्वती को उत्तराखंड हिमाचल से ब्याहकर जब कैलाश पर्वत ले जा रहे थे उसी का अंश यहां स्थापित है।
जानकार बताते हैं कि जयपुर से मंगवाई गई शिला पर कुशल कारीगरों द्वारा यह प्रतिमा उकेरी गई थी। जिस पर मृगछाला, सिर पर चंद्रमा, गले में सर्प और हाथ में डमरू व त्रिशूल है।
रविवार को होती है विशेष पूजा
मंदिर के पुजारी का कहना है कि साढ़े तीन सौ साल पहले प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा रविवार के दिन की गई थी। तब से लेकर आज तक रविवार के दिन विशेष पूजा अर्चना होती है। महाशिवरात्रि, बसंत पंचमी, जन्माष्टमी और रामनवमीं को भगवान का विशेष श्रृंगार किया जाता है। महाशिवरात्रि पर भगवान शिव का विवाह धूमधाम से मनाया जाता है। यहां मांगी गई सभी मनोकामना भगवान शिव पूरी करते हैं।