राम – रावण युद्ध खत्म हो चुका था. रावण मारा जा चुका था. उसके बेटों समेत पराक्रमी भाई भी युद्ध में मारे गए. सेना तहस – नहस हो गई. राम युद्ध जीत चुके थे. सीता अभी अशोक वाटिका में ही थीं. लेकिन उनके पास पति राम की जीत का समाचार पहुंच चुका था. इस बीच की उनका राम से मिलन होता, उससे पहले ही नाराज शूर्पणखा उनसे मिलने पहुंची. और तब क्या हुआ. इसके बाद जब वह वापस लौटी तो उसने अपना बाकी जीवन कैसे गुजारा.
रावण की मृत्यु के बाद शूर्पणखा का सीता से मिलने का प्रसंग मुख्य रूप से क्षेत्रीय रामायणों (जैसे कंब रामायण) और लोककथाओं में मिलता है. ये मुलाकात लंका की अशोक वाटिका में ही हुई. पूरे युद्ध के दौरान शूर्पणखा लंका में ही थी. मना रही थी कि उसके भाई रावण की जीत हो लेकिन जो कुछ हुआ, वो उसके लिए बहुत बड़ा झटका था.
तमतमाती क्रुद्ध शूर्पणखा सीता के पास पहुंची
युद्ध के नतीजों से वह घबराई भी हुई थी और रावण के मारे जाने से नाराज भी. क्रुद्ध शूर्पणखा को मालूम था कि उसका सबकुछ खत्म हो चुका है लेकिन तब भी उसकी अकड़ गई नहीं थी. वह तमतमाते हुए जब सीता के पास पहुंची, उन्हें बहुत खरीखोटी सुनाई. अपशब्द कहे.
सीता को रावण की मृत्यु और वंश के विनाश का जिम्मेदार ठहराया
शूर्पणखा ने सीता को रावण की मृत्यु और राक्षस वंश के विनाश के लिए जिम्मेदार ठहराया. कुछ कथाओं के अनुसार, वह सीता से मिलने गई क्योंकि वह सीता को अपने भाई रावण की मृत्यु का कारण मानती थी. उसका मानना था कि सीता के कारण ही राम और रावण के बीच युद्ध हुआ. वह या तो सीता से बदला लेने और उन्हें अपमानित करने के इरादे से गई थी.
वह सीता पर ये भी दोष लगाती है कि उसकी सुंदरता और आचरण ने रावण को मोहित किया और युद्ध को भड़काया. वह सीता को कोसती है. उनके प्रति नफरत जाहिर करती है.
फिर सीता उसकी नाराजगी दूर करती हैं
सीता ने शांतिपूर्वक उसकी सारी बात सुनी. फिर करुणापूर्ण ढंग से जवाब दिया. बजाए नाराजगी के सीता उससे सहानुभूति दिखाती हैं. सीता के जवाब से शूर्पणखा का क्रोध शांत हुआ. वह उसे समझाती हैं कि युद्ध और रावण की मृत्यु तो उसके कर्मों का फल थी. ये तो होना ही था.
सीता का जवाब सुनकर उसका दुख झलकने लगा. वह दुखी थी कि अब क्या करेगी. उसका तो दुनिया में कोई नहीं. उसकी पीड़ा जाहिर थी. जाते जाते उसने मान लिया कि गलती उसकी थी. अगर वह अपनी शिकायत लेकर रावण के पास नहीं आती, उसे नहीं उकसाती तो ना सीता का हरण होता और ना युद्ध और ना युद्ध का ये परिणाम..ना ये विध्वंस.
सीता से माफी मांगती है
कुछ कथाएं कहती हैं कि वह सीता से माफी मांगती है. अपनी गलती स्वीकार करती है. हालांकि, कुछ अन्य संस्करणों में कहा गया है कि वह अपमानित होकर वापस लौट जाती है.
क्या उसने सीता को श्राप दिया
कुछ कथाओं (विशेषकर क्षेत्रीय रामायणों) में ये कहा गया कि शूर्पणखा ने सीता को श्राप दिया कि “जिस तरह मेरे परिवार का नाश हुआ, वैसे ही तुम्हारा भी वियोग होगा”. इसके बाद ही राम ने सीता का परित्याग किया.
वह तपस्वी बन गई
कुछ लोककथाओं के अनुसार, युद्ध के बाद और सीता से मिलने के बाद वह लंका छोड़कर जंगलों या दक्षिण भारत के किसी एकांत स्थान पर चली गई. वहां उसने तपस्वी जीवन अपनाया.बाद में उसकी स्वाभाविक मृत्यु हो जाती है.
कुछ दक्षिण भारतीय लोककथाओं में शूर्पणखा को एक ऐसी राक्षसी के रूप में चित्रित किया गया है, जो अपने परिवार के नाश के बाद भटकती रही. कुछ कथाओं में उसे एक त्रासदीपूर्ण चरित्र के रूप में दिखाया गया, जो अपने कर्मों के बोझ तले दब गई.
तपस्वी के रूप में देह त्याग दी
कुछ दक्षिण भारतीय परंपराओं में ये भी मानते हैं कि शूर्पणखा ने अपने कर्मों का प्रायश्चित करने के लिए तपस्या की. तपस्वी के रूप में देह त्याग दी. वैसे वाल्मीकि रामायण में शूर्पणखा के जीवन के अंत या मृत्यु का कोई उल्लेख नहीं है. कंब रामायण (तमिल) शूर्पणखा के सीता से मिलने और उसके बाद के जीवन के कुछ संकेत मिलते हैं, लेकिन मृत्यु का स्पष्ट वर्णन नहीं है.
वैसे कुछ समकालीन लेखकों जैसे चित्रा बनर्जी दिवाकरुनी ने अपनी किताब द फारेस्ट ऑफ एनचेंटमेंट्स में (The Forest of Enchantments) में शूर्पणखा के दृष्टिकोण से इस मुलाकात के बारे में लिखा है.
चित्रा बनर्जी दिवाकरुनी की किताब में शूर्पणखा को जटिल चरित्र के रूप में दिखाया है. उसे एक ऐसी महिला के रूप में दिखाया जाता है, जो अपने अपमान (नाक-कान कटने) और परिवार के नुकसान के बाद भी जीवित रहने की कोशिश करती है. कुछ व्याख्याओं में वह अपने अंतिम दिन तपस्या या आत्म-चिंतन में बिताती है.
रावण की बहन थी शूर्पणखा, कैसे हुई राम-लक्ष्मण पर मोहित
शूर्पणखा रावण की बहन थी. वह वन में राम, लक्ष्मण और सीता को देखती है. वह देखते ही राम पर मोहित हो जाती है. उनसे विवाह का प्रस्ताव रखती है. राम और लक्ष्मण दोनों ही इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर देते हैं.
इसके बाद जब शूर्पणखा क्रोधित होकर सीता को मारने की कोशिश करती है, तब लक्ष्मण उसे रोकते हैं. उसकी नाक और कान काट देते हैं. अपमानित होकर वह अपने भाई रावण के पास जाती है और उसे राम से बदला लेने के लिए उकसाती है. इसके बाद ही रावण ने सीता का हरण किया. फिर राम अपनी वानर सेना लेकर लंका पहुंचे. युद्ध हुआ और इसमें रावण हारा और मारा गया.