Bengali Ullu Dhvani: भारत विविधताओं का देश है, जहां सभी धर्म के लोग रहते हैं। यहां अनेक धर्म और भाषाओं के साथ रीति-रिवाज और परंपराएं भी हैं। बात करें त्यौहार की तो भारत में कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक शादियों से जुड़े नियम, परंपरा और रीति-रिवाज में अंतर देखने को मिलता है। ऐसे में हम बंगाली समाज में खास बात यह है कि उल्लू ध्वनि किए बिना कोई भी शुभ कार्य का होना पूरा नहीं माना जाता है। शुभ कार्य में मंदिर जाकर चाहे देवी-देवताओं के आगे प्रार्थना करना हो, पूजन अर्जन करना हो या छोटी सी कथा से लेकर गृह प्रवेश कार्यक्रम हो, यहां तक कि तीज त्योहार जैसे दशहरा, दिवाली, होली, संक्रांति, शिवरात्रि, गणेश उत्सव हो सभी में उल्लू ध्वनि जरूर दी जाती है। इस ध्वनि को केवल महिलाएं ही करती हैं। लेकिन क्या आपने यह जानने की कोशिश की है की बंगाली त्यौहार में ऐसा कुछ क्यों किया जाता है। इसके पीछे क्या कारण है। शायद नहीं तो आज हम आपको बताएंगे कि उल्लू ध्वनि का क्या महत्व होता है।
10 नवंबर को धनतेरस के साथ दीपावली का पांवन पर्व शुरू हो जाएगा। मान्यता है कि दिवाली पर उलूक (उल्लू) ध्वनि करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। उल्लू माता लक्ष्मी की सवारी माना गया है, इसलिए दिवाली पर उसका पूजन भी किया जाता है। बंगाली समाज का हर शुभ कार्य आज भी पंचांग के हिसाब से ही होता है।
इस ध्वनि को केवल महिलाएं ही करती हैं
बंगाली समाज में खास बात यह है कि उल्लू ध्वनि किए बिना कोई भी शुभ कार्य का होना पूरा नहीं माना जाता है। शुभ कार्य में मंदिर जाकर चाहे देवी-देवताओं के आगे प्रार्थना करना हो, पूजन अर्जन करना हो या छोटी सी कथा से लेकर गृह प्रवेश कार्यक्रम हो, यहां तक कि तीज त्योहार जैसे दशहरा, दिवाली, होली, संक्रांति, शिवरात्रि, गणेश उत्सव हो सभी में उलूक ध्वनि जरूर दी जाती है। इस ध्वनि को केवल महिलाएं ही करती हैं।
बंगाली समाज के पंडितों के मुताबिक, इस उलूक ध्वनि को उत्सव और समृद्धि से संबंधित माना जाता है। कहते हैं ऐसा करने से देवी देवता जागृत होते हैं। बंगाली समाज की महिलाओं के द्वारा धनतेरस, छोटी दिवाली और दीपावली के दिन पूजन के समय इस ध्वनि को जरूर किया जाता है। हिंदू धर्म में जितना शंख का महत्व होता है, उसके ही बराबर उलूक ध्वनि मानी गई है।
उल्लू ध्वनि का महत्व
बता दें कि यह ध्वनि उत्सव और समृद्धि से संबंधित है। उल्लू ध्वनि आपको सुनने में अच्छी लग सकती है, लेकिन ऐसी ध्वनि निकालने के लिए अभ्यास की जरूरत होती है, जिसमें बंगाली महिलाओं को महारथ हासिल है। वह बचपन से ही अपने घर-परिवार में इस ध्वनि को सुनती आती हैं, इसलिए वे इसे सीख जाती हैं। वहीं, ऐसा भी माना जाता है कि इस ध्वनि से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। इसलिए किसी भी पवित्र या शुभ अवसर की शुरुआत या अंत के दौरान ही उलूक ध्वनि निकाली जाती है। साथ ही कहा जाता है कि सभी महिलाओं का एक साथ होकर यह ध्वनि उत्पन्न करना वातावरण को सौम्य बनाता है। वहीं कुछ अन्य लोगों का मानना है कि इस ध्वनि से नकारामत्मक ऊर्जा दूर होती है। इसलिए किसी भी पवित्र अवसर की शुरुआत या अंत के दौरान ही यह आवाज निकाली जाती है। यह एक ऐसी कला है जिसमें सभी बंगाली महिलाएं महारत हासिल करती हैं। यह आमतौर पर शंख की तुरही से पहले होता है। इसके साथ ही कहा जाता है कि सभी महिलाओं का एक साथ होकर यह ध्वनि उतपन्न करना वातावरण को सौम्य बनाता है। हालांकि, यह एक ऐसा अभ्यास है जिसे करना आसान लग सकता है, लेकिन इसके लिए बहुत अधिक अभ्यास की आवश्यकता होती है। इसके अलावा इस ध्वनि को शुभ माना जाता है।