Saturday, July 27, 2024
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विधानसभा चुनाव: कांग्रेस का फोकस संगठन की मजबूती पर, कड़ा होगा मुकाबला

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव को भले ही करीब पौने दो साल बचे हों, लेकिन भाजपा और कांग्रेस अभी से चुनाव मोड में आ गई हैं। भाजपा तो खैर पांचों साल ही चुनाव मोड में रहती है, पर कांग्रेस में यह पहली बार हो रहा है, जब पार्टी चुनाव को लेकर इतने पहले से इतनी सक्रियता दिखा रही है। उसमें भी पार्टी का सबसे ज्यादा फोकस अपने बेहद कमजोर संगठन को मजबूत करने पर है। पूर्व सीएम और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ कई मौकों पर मंच से कह चुके हैं कि हमारा मुकाबला बीजेपी से नहीं, बीजेपी के मजबूत संगठन से है। यही वजह है कि कमलनाथ सभी 230 विधानसभा क्षेत्रों में मंडलम्, सेक्टर और बूथ की कार्यकारिणी के गठन पर जोर दे रहे हैं। हाल में जिला प्रभारियों और कांग्रेस जिलाध्यक्षों की बैठक में करीब 80 विधानसभा क्षेत्रों में बूथ स्तर तक कार्यकारिणी का गठन नहीं होने पर नाराजगी sampadkiy 1जताई और हफ्ते भर में कार्यकारिणी का गठन करने को कहा। पार्टी पूरे प्रदेश में महंगाई के विरोध में जन जागरण अभियान भी चला रही है। मप्र कांगे्रस सदस्यता अभियान भी चला रही है। गत 1 नवंबर से शुरू हुए सदस्यता अभियान में 31 मार्च तक 50 लाख सदस्य बनाने का लाख सदस्य बनाने का लक्ष्य रखा गया है। खास बात यह है कि इस बार अभियान को लेकर कांग्रेस के नेता ‘लेतलाली’ नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि पार्टी संगठन की तरफ से इसकी सतत् मॉनीटरिंग की जा रही है। संगठन ने प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष प्रकाश जैन को अभियान की मॉनीटरिंग की जिम्मेदारी सौंपी है। वे सुबह से शाम तक विधायकों, पूर्व विधायकों, जिलाध्यक्षों और अन्य पदाधिकारियों को फोन लगाकर सदस्यता अभियान का फीडबैक लेते रहते हैं। इसके अलावा कमलनाथ आंतरिक रूप से हर स्तर पर चुनाव की तैयारियां कर रहे हैं। इसके लिए अलग-अलग टीमें काम कर रही हैं। वे संगठन के कामकाज व प्रत्याशी चयन को लेकर सभी विधानसभा क्षेत्रों में प्रायवेट एजेंसियों से सर्वे करा रहे हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि इस बार विधानसभा चुनाव में मुकाबला कड़ा और रोचक होगा। चूंकि कमलनाथ के पास खोने को कुछ नहीं है।

वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव से ठीक छह महीने पहले उन्हें मप्र कांग्रेस की कमान सौंपी गई थी और उन्होंने इस छोटी सी अवधि में बाजी पलटते हुए 15 साल बाद कांग्रेस की प्रदेश की सत्ता में वापसी करा दी थी। कमलनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, लेकिन 15 महीने बाद ही उनकी सत्ता से विदाई हो गई। यह आसानी से समझा जा सकता है कि उन्हें मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाने का गम किस हद तक साल रहा होगा। कमलनाथ 75 साल के हो चुके हैं, उनके पास यह आखिरी मौका है, जब वे कांग्रेस की सत्ता में वापसी कराकर फिर से मुख्यमंत्री बन सकते हैं। यही वजह है कि कमलनाथ खामोशी रहकर पूरी ताकत से चुनाव की तैयारियों में जुटे हैं। पार्टी आलाकमान भी कमलनाथ पर पूरा भरोसा जता रहा हैं। उन पर पार्टी कार्यकर्ताओं ने नहीं मिलने, प्रदेश में सक्रिय नहीं रहने, पार्टी कार्यकर्ताओं को नहीं पहचानने जैसे आरोपों के बाद भी उन्हें पीसीसी चीफ के साथ ही नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी भी सौंप रखी है। कमलनाथ पार्टी हाईकमान के विश्वास पर कितना खरे उतर पाते हैं, यह विधानसभा चुनाव के बाद पता चलेगा।  

सदस्यता में  ‘हलफनामा’ बन रहा बाधा

कांग्रेस के सदस्यता अभियान में  ‘हलफनामा’ बड़ी बाधा बन रहा है। दरअसल, सदस्यता अभियान को लेकर पार्टी की ओर से जारी किए गए मेंबरशिप फॉर्म में कई बदलाव किए गए हैं। इसके तहत पार्टी द्वारा दस बिंदुओं का उल्लेख किया गया है, जिसमें एक शर्त यह भी है कि सदस्यता लेने वाले व्यक्ति को यह हलफनामा देना होगा कि वह पार्टी की नीतियों व निर्णयों की आलोचना सार्वजनिक तौर पर नहीं करेगा। इसके अलावा यह शर्त भी रखी गई है कि सदस्यता लेने वाला कोई भी व्यक्ति कानूनी सीमा से अधिक संपत्ति नहीं रखेगा। साथ ही वह शराब और मादक पदार्थों (ड्रग्स) से दूरी बनाकर रखेगा और कांग्रेस की नीतियों व कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए फिजिकल एफर्ट और जमीन पर काम करेगा।  इस हलफनामे की वजह से कांग्रेस नेताओं को सदस्य बनाने में मुश्किल आ रही है। यही वजह है कि नेता हलफनामा को दरकिनार कर सदस्य बना रहे हैं, ताकि सदस्यता के लक्ष्य को पूरा किया जा सके।

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