Wednesday, April 17, 2024
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बेरोजगार युवाओं की फौज हो रही तैयार, कहां है सरकार

मध्यप्रदेश में पंजीकृत बेरोजागारों की संख्या करीब 35 लाख है

सरकार की नीतियां कैसे युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ कर रही हैं, उसकी बानगी आप मध्यप्रदेश में देख सकते हैं। एक तरफ कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की उम्र 60 से बढ़ाकर 62 कर दी, यहां तक तो ठीक था, फिर कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद एक्सटेंशन देने के नाम पर संविदा नियुक्ति की परंपरा शुरू हो गई, वहीं प्रदेश में विभिन्न विभागों में एक लाख से ज्यादा नियमित पद खाली हैं, जिन्हें सरकार नहीं भर रही है। सरकार ने पहले नियमित भर्ती के स्थान पर कर्मचारियों की संविदा पोस्टिंग शुरू की और अब संविदा नियुक्ति को समाप्त कर कर्मचारियों की आउटसोर्सिंग की जा sampadkiy 1रही है। आउटसोर्सिंग के जरिए युवाओं का हर तरह से शोषण किया जा रहा है। न उनके काम के घंटे तय हैं, न वेतन फिक्स है और न ही नौकरी की कोई गारंटी है। सेवा से कब 'आउटÓ कर दिया जाए, उन्हें खुद नहीं मालूम। यही वजह है कि युवा आउटसोर्सिंग के जरिए नौकरी से गुरजे करने लगे हैं। सरकारी भर्ती नहीं होने से प्रदेश में बेरोजगार युवाओं की फौज तैयार हो रही है। यहां पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या करीब 35 लाख है, यह आंकड़ा चौंकाने वाला है। दो साल से कोई सरकारी भर्ती नहीं हुई है। इस दरमियान प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड तीन परीक्षाएं निरस्त कर चुका है। बेरोजगारी का आलम यह है कि भृत्य और ड्रायवर की भर्ती के लिए हजारों आवेदन आ रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव से पहले एक कई बार लाख पदों पर भर्ती प्रक्रिया जल्द शुरू करने और बैकलॉग के पद जल्द भरने की बात कह चुके हैं, लेकिन इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं की गई।

नौकरी नहीं दे पा रहे तो स्वरोजगार का झुनझुना

चूंक‍ि सरकार बेरोजगारों को नौकरी नहीं दे पा रही है, इसलिए वह उन्हें स्व-रोजगार से जोडऩे की बात कह रही है। इसके लिए मुख्यमंत्री उद्यम क्रांति सहित कई योजनाएं लागू हैं, लेकिन इन योजनाओं के क्रियान्वयन में बैंक बड़ी बाधा हैं। सरकार की ओर से गारंटी लिए जाने के बाद भी बैंक लोन मंजूर नहीं करते। मुख्यमंत्री के संज्ञान में भी अधिकारी यह बात ला चुके हैं।

संविदा के नाम पर कर्मचारियों हो रहे उपकृत

नेताओं और उच्च अधिकारियों के चहेतों को उपकृत करने के लिए कई विभागों, निगम, मंडलों में 62 साल की उम्र में सेवानिवृत्त होने के बाद भी कई अधिकारियों-कर्मचारियों को  संविदा पर नियुक्ति दी गई है। इनमें कई कर्मचारी 65 साल की उम्र पूरी करने के बाद भी संविदा पर पदस्थ हैं। इनमें सरकार के चहेते कई क्लास वन और क्लास टू के अधिकारी भी शामिल हैं। इन कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली पेंशन की राशि को मायनस कर वेतन का 85 प्रतिशत भुगतान किया जाता है। वेयरहाउसिंग कॉर्पोरेशन में प्रदेश में करीब 28 कर्मचारी, नागरिक आपूर्ति निगम में 18 कर्मचारी, वन विकास  निगम में 6 कर्मचारी, पाठ्य पुस्तक निगम, ओपन स्कूल आदि में कर्मचारी सेवानिवृत्त होने और त्यागपत्र देने के बाद संविदा पर नियुक्त हैं।

75 फीसदी संविदाकर्मी 15 साल से दे रहे सेवाएं

प्रदेश में 1.20 लाख संविदाकर्मी पदस्थ हैं। ये लगभग सभी विभागों में  सेवाएं दे रहे हैं। कुल संविदाकर्मियों में से 75 फीसदी को सेवा देते हुए 15 वर्ष से अधिक का समय हो चुका है, लेकिन इन्हें नियमित करने की तरफ सरकार का ध्यान नहीं है, इससे इनका भविष्य अधर में लटका है। शिवराज कैबिनेट ने जून, 2018 में संविदाकर्मियों के लिए पॉलिसी मंजूर की थी। इसमें कर्मचारियों के वेतन समेत अन्य सुविधाओं के संबंध में प्रावधान किए गए थे, लेकिन संविदाकर्मियों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है। 

प्रमोशन के इंतजार में 55 हजार कर्मचारी सेवानिवृत्त

प्रमोशन में आरक्षण संबंधी प्रकरण सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन होने के कारण साढ़े पांच साल  से कर्मचारियों की पदोन्नति पर रोक लगी है। इससे कर्मचारियों में भारी निराशा है। इस अवधि में 55 हजार से ज्यादा कर्मचारी बगैर प्रमोशन के सेवानिवृत्त हो चुके हैं। मंत्रालय समेत अन्य कार्यालयों में प्रभारियों के भरोसे काम चल रहा है। लोक निर्माण विभाग में प्रमुख अभियंता जैसा महत्वपूर्ण पद का प्रभार सौंपा गया है। मप्र हाईकोर्ट की मुख्य पीठ जबलपुर ने 30 अप्रैल, 2016 को मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) अधिनियम-2002 खारिज कर दिया था। इस कानून में अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण देने का प्रावधान है। राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। अपर मुख्य सचिव सामान्य प्रशासन विनोद कुमार का कहना है कि अधिकारी-कर्मचारियों को उच्च पद का प्रभार देकर पदनाम दिए जाने के संबंध में रिपोर्ट तैयार कर शासन को सौंप दी गई है। इस मामले में आगे की कार्रवाई सरकार को करना है।

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