😊अगिया बेताल😊
क़मर सिद्दीक़ी
बजट “पास” हो गया, लेकिन विपक्ष कह रहा है, ये तो “फेल” है। तुम चिल्लाते रहो, तुम्हारे चिल्लाने से क्या होता है,और फिर ये तो तुम्हारा कर्तव्य,और मजबूरी भी तो है। इनकी खुद की पार्टी की महिलाएं ख़ुश हो रहीं होंगी कि,हमारे ख़र्चे को तो मिल ही रहा है,हमारी गुड़िया भी अब स्कूटी से कॉलेज जाया करेगी। ख़ैर ये तो हमेशा ही होता है। विपक्ष है तो विरोध भी होगा। बजट का मुख्य प्रभाव “किचेन” इंचार्ज पर होता है, सो उसको पहले ही साध लिया,ये बात और है कि,इधर इसकी सिर्फ घोषणा हुई,उधर एक्शन हो गया। सिलेंडर के दाम में 50 का इज़ाफ़ा। कुछ वर्षों पहले अक्सर ख़बरें छपती थीं कि,किसी कार वाले के आस-पास चंद नोट गिरा कर,लुटेरे ने उससे कहा “आपके पैसे गिर गए हैं” जैसे ही लालची व्यक्ति उनको समेटने लगा,इधर नोटों से भरा थैला ग़ायब। इस पार्टी को मालूम है कि,कहां की ज़मीन नम है,कहां आसानी से फसल पैदा की जा सकती है। इस बार तो बात सायकल से स्कूटी तक पहुंच गई,वो भी बैटरी वाली,पेट्रोल की झंझट भी नही,यानी महिला विभाग तो पूरी तरह सेट हो गया,और बचा युवा तो,उनको बताया जा रहा है कि,हम लाखों नौकरियों के साथ-साथ,सागर,ओरछा, ओमकारेश्वर ,उज्जैन आदि में धार्मिक स्थलों को और भव्य,सुंदर,और सुविधाजनक बनाने जा रहे हैं। जो तुमको हो पसंद वही बात करेंगे। आख़िर ये भी तो एक प्रकार का “टूल” ही है,लोगों को आकर्षित करने का, इस तरह के मुद्दे आमतौर पर स्त्री वर्ग को ज़्यादा आकर्षित नहीं करते,पर पुरुषों को इसमें गर्व का अहसास होता है। इस तरह इन्होंने धर्माचार्यों की ज़िम्मेदार भी काफ़ी हद तक अपने कांधों पर उठा ली। ये कोई मामूली काम है क्या,वरना किसी की हिम्मत है,जो “उनके” काम में हस्ताक्षेप करे,पर सियासी ताक़त के आगे वो भी असहाय हैं।
तेरी उम्मीद, तेरा इंतज़ार करते हैं
ये गाने की लाइन नहीं, मंडीदीप के बाशिंदों का दर्द है। 8 बरस पहले सरकार ने वादा किया था कि, हर व्यक्ति को भरपूर पानी मयस्सर होगा। पानी का स्रोत मात्र दस किलोमीटर दूर,पर आठ सालों बाद भी जहां का तहां है। इस बीच चार पालिका अध्यक्ष,सोलह अधिकारी आए और गए,पर पानी नहीं आया। हां साल दर साल ठेके की राशि ज़रूर बढ़ती रही। अधिकारियों,नेताओं को भी मालूम था, कि एकता में ही शक्ति है,इसलिए सब का साथ,सब का विकास की तर्ज़ पर बंदर बांट चलती रही,और लीग पानी के लिए तरसते रहे।
दाढ़ी का तिनका
न्यूज़ चैनलों को राहुल बाबा से बड़ी ही मोहब्बत है,इसीलिए उनकी हर गतिविधि पर निगाह रखते हैं। इस बार उनकी चिंता दाढ़ी को लेकर है। कह रहे हैं कि,लंदन में छोटी दाढ़ी के साथ बिल्कुल नए लुक में दिख रहे थे। दाढ़ी बढ़ाई तो दिक़्क़त, घटाई तो संकट,अबे चाहते क्या हो? साहेब भी तो एक समय “टैगोर” के लुक में आ गए थे,और फिर बैक गेयर लगा दिया। कभी उनके बारे में भी चर्चा कर के देखो,दाढ़ी तो दूर,तुम्हारे सिर पर एक भी बाल नहीं बचेगा।
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण ‘प्रदेश लाइव’ के नहीं हैं और ‘प्रदेश लाइव’ इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेता है।)