Friday, April 19, 2024
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मप्र में बनी गांव व नगर सरकारें- सियासी पाप- पुण्य के बाद काम करके बताएं…

प्रदेश में सम्भवतः पहली बार राजनीतिक गुत्थमगुत्था और भारी उठापटक के बाद नगर और गांव की सरकारें चुन ली गईं। उनके विकास की गंगा बहाने के तमाम वादे और दावों को जनता ध्यान में रख 2023 के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अपना वोट देगी। इसलिए जीत कर सिंकदर बने नेताजी विकास भी करें और विनम्र भी रहें। ठीक वैसे ही मानो वे लड़की की शादी में दुल्हन के भाई हैं। राजनीति की बारात तो अभी घर आई है और बराती वोटर लोकसभा चुनाव तक जनवासे में ही रहने वाले हैं। “अहंकार छोड़ने और विनम्र रहने का टाइम शुरू होता है अब”…..वरना सोने की सत्ता खाक भी हो सकती है।
सम्भवतः पहली दफा जनपद और जिला पंचायतों के सदस्यों की विधायकों की तरह बाड़बंदी, किलेबन्दी,खरीदफरोख्त की खबरें आम हुई। इस पर बहस हो सकती है कि विचारधारा पर सियासत करने वाले कौन कितने में खरीदे और बिके..? विधायकों के बिकने और खरीदने की महामारी ने जनपद से लेकर जिला पंचायतों के सदस्य, नगरपालिका, नगर पंचायतों के पार्षद और पंचों के भी घर देख लिए हैं। जैसे कहावत है- “बुढ़िया के मरने का गम नही,चिंता यह है कि मौत ने घर देख लिया है”…पक्का जान लीजिए आज इनकी तो कल उनकी बारी आएगी ही। कमजोर होते दलों और दोयम दर्जे के नेताओं ने जो बीज बोए हैं उससे गांव- गांव, शहर – शहर सियासी और सामाजिक तौर पर लट्ठ चलने की हालत न ही दिखे तो अच्छा है। हरेक दल अपने हिसाब से आंकड़ों की बाजीगरी कर खुद की बढ़त की बातें कर रहे हैं।

Raghavendra Singh

भोपाल में भी तनाव के बीच जिला सरकार को लेकर गहमागहमी, लोभ लेने – देने के आरोप और फिर सदस्यों की घेराबंदी के जो दृश्य दिखे उनसे शर्मिदगी ज्यादा हुई। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी को भोपाल कलेक्टर ऑफिस के सामने मोर्चा सम्भालना पड़ा। लेकिन भाजपा की रणनीति और जोड़तोड़ के सामने में लाचार नजर आए। बहस , पुलिस प्रशासन से नोकझोक झूमाझटकी तक हुई। भोपाल नगर निगम और जिला पंचायत में भाजपा के नए रणनीतिकार के रूप में कैबिनेट मंत्री विश्वास सारंग उभर आए हैं। भाजपा कार्यकर्ता मालती राय को भोपाल की मेयर प्रत्याशी बनाने से लेकर उनके विजयी होने तक के सफर में सारंग और विधायक कृष्णा गौर व रामेश्वर शर्मा की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही। लेकिन प्रदेश कांग्रेस के नेतृत्व खासतौर पर दिग्विजय सिंह से सीधे टकराने में सारंग ने बड़ा जोखिम लिया है। एक जमाने मे विश्वास सारंग के दिवंगत पिता वरिष्ठ भाजपा नेता कैलाश सारंग से दस साल मुख्यमंत्री रहते हुए दिग्विजय सिंह के राजनीतिक और कूटनीतिक रिश्ते जग जाहिर थे। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि सारंग की सिंह से टकराहट किस मुकाम तक जाएगी। मंत्री सारंग ने कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी से श्री सिंह को गुंडा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने तक की मांग कर राजनीतिक विवाद को नया रंग दे दिया है। सुना है राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह ने भी पूरे मामले को गम्भीरता से लिया है।

मास्टर प्लान और अफसरों को जिम्मेदार तय करने की चुनौती…
भोपाल की नवनिर्वाचित महापौर मालती राय ने तो भ्रष्टाचार खत्म करने जैसे कठिन काम को अपना चुनावी मुद्दा बनाया था। इस पर भरोसा कर जनता ने उन्हें महापौर बना भी दिया है। गुड गवर्नेंस के जरिए यहां होने वाले भ्रष्टाचार पर अधिकारियों की जिम्मेवारी तय कर उन्हें सजा देने की शुरुआत जरूर करनी चाहिए। हालांकि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मालती राय को अपनी पार्टी के बेईमानों से ज्यादा लड़ना पड़ेगा। भाजपा के विधायक उन्हें अपने क्षेत्र में शायद उसने भी ना दें क्योंकि विधायक के साथ खुद को अपने क्षेत्र का मेयर भी मानते हैं। पिछला तजुर्बा तो यही कहता है। मामला चाहे बिल्डिंग परमिशन से लेकर अतिक्रमण, सड़कों का घटिया निर्माण का हो या सफाई का। जिम्मेदारी तय करने के साथ कठोर कदम उठाने की दरकार है। 29 दिन के लिए होने वाली फर्जी नियुक्तियों की कड़ाई से जांच की गई तो करोड़ों रुपए का घोटाला उजागर हो सकता है । भोपाल का मास्टर प्लान लागू करना और फिर उसके ही हिसाब से विकास का रोड मैप बनाना मेयर से लेकर मुख्यमंत्री तक के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा । भोपाल के मेयर चुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के वादों और उनकी सक्रियता ने भी भाजपा को जिताया है। वरना एक समय तो लग रहा था बीजेपी चुनाव हार भी सकती है।
भोपाल नगर निगम में 29 दिवसीय कर्मचारियों की संख्या 13 हजार पार होने के आंकड़े हैं। ऑडिट में इसपर आपत्ति ली गई है।
असल मे बड़ी संख्या में दैनिक वेतन भोगी, बिना काम ले रहे वेतन। यह बहुत बड़ा घपला माना जा रहा है। आडिटर का कहना है कि नगर निगम शासन से अनुमति लेकर इन कर्मचारियों को नियमित करे या इन्हें बाहर का रास्ता दिखाए। अभी तक तो आडिटर की आपत्ति कूड़े दान में है।
नियम विरुद्ध हजारों कर्मचारी नगर निगम के अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के घर में सेवाएं दे रहे हैं। इनमें अधिकतर बिना काम के वेतन ले रहे हैं। इसके बावजूद निगम प्रशासन द्वारा सख्त कार्रवाई नहीं करने से निगम के पैसे का दुरुपयोग हो रहा है। यह कहानी हरेक नगर निगम और नगर पालिका की है।
आडिटर की आपत्ति में स्पष्ट कहा गया है कि इतनी बड़ी संख्या में 29 दिवसीय कर्मचारियों की निरंतर सेवाएं नही ली जा सकती है। सामान्य प्रशासन विभाग और नगरीय प्रशासन विभाग द्वारा पूर्व में ही इस प्रकार की नियुक्तियों को पूर्णत: प्रतिबंधित किया गया है।

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