Aditya L1: चंद्रयान-3 की सफलता से साइंस एंड टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में दुनिया में डंका बजवाने के बाद अब सूर्य की स्टडी के लिए सूर्य मिशन पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अपने पहले ‘आदित्य एल-1’ को प्रक्षेपित किया। प्रक्षेपण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के रॉकेट पीएसएलवी से किया गया। सूर्य की ओर अपनी यात्रा के दौरान आदित्य-L1 करीब 15 लाख किलोमीटर की यात्रा करेगा. ‘आदित्य एल-1’ ‘लैग्रेंजियन-1’ बिंदु तक पहुंचने में 125 दिन लगेंगे। आदित्य-एल1 की लॉन्चिंग PSLV-XL रॉकेट से होगी, जिसे ISRO ने PSLV-C57 नंबर दिया है.
इस लॉन्चिंग के साथ ही भारत चंद्रमा- सूर्य दोनों तक पहुंचने वाले गिने-चुने देशों की सूची में शामिल हो गया.
ISRO इस मिशन की मदद से सौर वायुमंडल और तापमान का अध्ययन करेगा. आदित्य-एल1 सौर तूफानों के आने की वजह, सौर लहरों और उनका धरती के वायुमंडल पर क्या असर होता है इसका भी पता लगाएगा. मिशन आदित्य-L1 को ISRO के ISTRAC के साथ यूरोपीय स्पेस एजेंसी के सैटेलाइट ट्रैकिंग सेंटर भी ट्रैक करेंगे. आदित्य-एल1 की लॉन्चिंग के साथ भारत की स्पेस एजेंसी ISRO दुनिया की उन चुनिंदा अंतरिक्ष एजेंसियों में शुमार हो गया जिन्होंने अब तक सूर्य की स्टडी के लिए मिशन लॉन्च किए हैं. इस लिस्ट में अमेरिका का नासा, यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ESA), जापान और चीन के अंतरिक्ष मिशन का नाम शामिल है.
खुलेंगे सूरज के तूफानी राज, संचार तकनीक की बाधा दूर करने में रामबाण साबित होगा ‘आदित्य एल1’
साढ़े छह सौ करोड़ रुपये की लागत पर तैयार हुए ‘चंद्रयान 3’ मिशन की सफलता के बाद अब ‘आदित्य एल1 मिशन’ की बारी है। इसकी कामयाबी से दुनिया को ‘सूरज’ के वे तूफानी राज मालूम चलेंगे, जिनसे अभी पर्दा उठना बाकी है। पूर्व वैज्ञानिक एवं प्रमुख रेडियो कार्बन डेटिंग लैब, बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान, लखनऊ, डॉ. सीएम नौटियाल ने बताया कि सूरज का ‘मिजाज’ जानने के लिए दुनिया का हर देश प्रयासरत है। सूर्य के व्यवहार का पता लगना बहुत अहम है। अगर यह पता लगाने में हम कामयाब हो जाते हैं तो मानव जाति के विकास से जुड़ी कई समस्याओं का हल हो सकता है। सूरज पर तूफान आते हैं, जिन्हें हम ‘सोलर स्ट्रॉम’ कहते हैं। ‘आदित्य एल1 मिशन’ के जरिए हम ‘सोलर स्ट्रॉम’ का पता लगा सकते हैं। ये तूफान संचार तकनीक पर असर डालते हैं। कम्युनिकेशन सिस्टम को बाधित कर देते हैं। यदि हमें सूरज के मिजाज और वहां आने वाले तूफान का पता चल जाएगा तो दुनिया में संचार तकनीक की बाधाओं को दूर करने में बड़ी सफलता मिलेगी। इस मामले में ‘आदित्य एल1 मिशन’ रामबाण साबित हो सकता है।
तापमान इतना कि हीरा गल जाए, दूरी इतनी कि प्लेन को पहुंचने में 20 साल लगें, ऐसा है हमारा सूरज
पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर स्थित इसे लैग्रेंजियन बिंदु 1 (एल1) पर भेजा जाना है। इस बिंदु तक मिशन को पहुंचने में लगभग चार महीने का वक्त लगेगा। भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया में हिन्दुस्तान के इस सूर्य मिशन को लेकर दिलचस्पी बढ़ी है। कोर यानी केंद्र सूर्य का सबसे गर्म भाग है, जिसका तापमान 1.5 करोड़ डिग्री सेल्सियस है। इससे असाधारण मात्रा में ऊर्जा निकलती है जो बदले में गर्मी और प्रकाश के रूप में निकलती है। कोर में उत्पन्न ऊर्जा को बाहरी परत तक पहुंचने में दस लाख वर्ष तक का समय लगता है। इस समय तापमान गिरकर लगभग 20 लाख डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। जब तक यह सतह पर आता है तब तक तापमान 5,973 डिग्री सेल्सियस तक कम हो जाता है लेकिन यह अभी भी इतना गर्म होता है कि हीरा उबल जाए।
क्या है लैग्रेंजियन बिंदु, सूर्य का अध्ययन इसी जगह से क्यों?
चंद्रयान-3 की ऐतिहासिक सफलता के बाद इसरो सूर्य मिशन के लिए तैयार है। आज श्रीहरिकोटा से आदित्य-एल 1 लॉन्च किया जाएगा। इस मिशन का उद्देश्य सूर्य का अध्ययन करना है। चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के बाद अब दुनिया की नजर आदित्य-एल1 मिशन पर होगी। मिशन को लैग्रेंजियन बिंदु 1 (एल1) पर भेजा जाना है। लैग्रेंजियन बिंदु अंतरिक्ष में वह स्थान होते हैं जहां दो वस्तुओं के बीच कार्य करने वाले सभी गुरुत्वाकर्षण बल एक-दूसरे को निष्प्रभावी कर देते हैं। लैग्रेंजियन बिंदु में एक छोटी वस्तु दो बड़े पिंडों (सूर्य और पृथ्वी) के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के तहत संतुलन में रह सकती है। इस वजह से एल1 बिंदु का उपयोग अंतरिक्ष यान के उड़ने के लिए किया जा सकता है।
अंतरिक्ष में पांच लैग्रेंजियन बिंदु हैं जिन्हें L1, L2, L3, L4 और L5 के रूप में परिभाषित किया गया है। L1, L2 और L3 बिंदु सूर्य और पृथ्वी के केंद्रों को जोड़ने वाली रेखा पर स्थित हैं। वहीं L4 और L5 बिंदु दोनों बड़े पिंडों के केंद्रों के साथ दो समबाहु त्रिभुजों के शीर्ष बनाते हैं। L1 बिंदु दो बड़े पिंडों के बीच स्थित है, जहां दोनों पिंडों का गुरुत्वाकर्षण बल बराबर और विपरीत है। यही वह बिंदु होगा जहां आदित्य एल1 मिशन को रखा जाएगा। L2 बिंदु छोटे पिंड से परे स्थित है, जहां छोटे पिंड का गुरुत्वाकर्षण बल बड़े पिंड के कुछ बल को निष्प्रभावी कर देता है। L3 बिंदु छोटे पिंड के विपरीत, बड़े पिंड के पीछे स्थित होता है। वहीं, L4 और L5 बिंदु बड़े पिंड के चारों ओर उसकी कक्षा में छोटे पिंड से 60 डिग्री आगे और पीछे स्थित होते हैं।