वाराणसी : आलू उगाने के लिए आलू की खेती करनी होती है. उसी तरह टमाटर और बैंगन उगाने के लिए भी अलग-अलग खेती करनी होती है. लेकिन ये क्या… एक ही पौधे में आलू, बैंगन और टमाटर तीनों उगाए जा सकते हैं! जी हां, ये सुनकर आप हैरान जरूर हुए होंगे, लेकिन वैज्ञानिकों की तो ऐसी ही तैयारी है. परंपरागत खेती से अलग खेती की नई तकनीकों में ऐसी ही एक तकनीक है- ग्राफ्टिंग विधि. दरअसल इस तकनीक के जरिये कृषि वैज्ञानिकों ने एक ही पौधे में 2 तरह की सब्जी उगाई है. आप सोच रहे होंगे कि एक ही पौधे में 2 सब्जी कैसे! लेकिन ये सच है. उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में है- भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान. यहीं के वैज्ञानिकों ने यह कमाल कर दिखाया है. वाराणसी के भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान में वैज्ञानिकों ने एक ही पौधे में तीन तरह की सब्जियां उगाई.
7 वर्षों की मेहनत के बाद ब्रिमेटो को तैयार किया
संस्थान के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ अनंत बहादुर ने 7 वर्षों की मेहनत के बाद ब्रिमेटो को तैयार किया है। ग्राफ्टिंग तकनीक (कलमी पौधे) से एक साथ दो प्रकार की फसल का उत्पादन हो रहा है। उत्पादन क्षमता भी बेहतर है और बरसात के दिनों में खेतों में पानी भरने के बाद भी फसल नष्ट न होने का दावा वैज्ञानिक कर रहे हैं। उनका मानना है कि सब्जियों की खेती के संदर्भ में यह एक बड़ी सफलता है।
क्या होती है ग्राफ्टिंग विधि?
एक ही पौधे में दो या अधिक तरह की सब्जी या फल-फूल उगाने की तकनीक ग्राफ्टिंग विधि है. इसे सामान्य भाषा में कलम का प्रयोग भी कहा जा सकता है. जैसे एक पौधे के साथ दूसरे पौधे का क्रॉस कलम कराना. बहरहाल वाराणसी में वैज्ञानिकों ने टमाटर के पौधे में बैंगन के पौधे को कलम किया और एक ही पौधे में दोनों चीजें उगाई.
ग्राफ्टिंग तकनीक बहुत नई नहीं है, बल्कि इसका इस्तेमाल कुछ वर्ष पहले से ही शुरू हो गया था. वैज्ञानिकों के मुताबिक, किसानों को इस तकनीक से बहुत फायदा होगा. खासकर उन इलाकों के किसानों को ज्यादा फायदा हो सकता है, जहां बरसात के बाद कई दिनों तक पानी भरा रहता है. वहीं, छत पर सब्जी उगाने वाले लोगों के लिए भी यह तकनीक क्रांतिकारी साबित होगी.
शोध कार्य वर्ष 2014 में शुरू किया
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ अनंत बहादुर सिंह ने बताया कि भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी में ग्राफ्टिंग तकनीक पर शोध कार्य वर्ष 2014 में शुरू किया गया। सर्वप्रथम बैगन के मूल वृंत पर टमाटर की उन्नत किस्मों की ग्राफ्टिंग की गई। इसमें टमाटर को बैंगन की जड़ों पर लगाने से तीन-चार दिन तक खेत में पानी भरा रहता है तो भी टमाटर के पौधे सुरक्षित रहते हैं। इस तकनीक का कई वर्षों तक मूल्यांकन करने के बाद किसानों को जानकारी दी जा चुकी है।
इन बातों का रखना होगा ध्यान
इस शोध में शामिल डॉ आनंद बहादुर सिंह के मुताबिक, ऐसे विशेष पौधे 24-28 डिग्री तापमान में 85 फीसदी से अधिक आर्द्रता और बिना प्रकाश के नर्सरी में तैयार किए जा सकते हैं. उनका कहना है कि ग्राफ्टिंग के 15 से 20 दिनों के बाद इसे जमीन में बोया जा सकता है. इसके लिए ठीक से सिंचाई, पर्याप्त उर्वरक और सही तरीके से कटाई-छंटाई की जानी चाहिए. इन पौधों में फल-फूल या सब्जी उगने में 60 से 70 दिन का समय लगता है.
जलभराव वाले क्षेत्र में यह तकनीक विशेष कारगर
इस तकनीक से उन किसानों को सबसे ज्यादा लाभ होता है जो टमाटर की अगेती खेती करना चाहते हैं। और जहां जलभराव की समस्या होती है वहां यह तकनीक विशेष कारगर है। इस ग्राफ्टिंग तकनीक से संस्थान के आसपास गांव में किसानों को काफी लाभ हुआ है।
कम खर्च पर ले सकते हैं टमाटर और बैगन दोनों की उपज
इसमें बैगन की जंगली प्रजाति पर बैगन की उन्नत किस्म एवं टमाटर दोनों को ही एक पौधे में लगाया गया। जिससे लगभग 3 किलोग्राम तक बैगन और 2:5 से 3 किलोग्राम टमाटर का उत्पादन हुआ। इस तरह एक ही पौधे में कम खर्च पर हम टमाटर और बैगन दोनों की उपज ले सकते हैं।
संस्थान द्वारा 2018 में पहली बार पोमैटो का खेत में सफल उत्पादन किया गया। पोमैटो जिसमें नीचे आलू और ऊपर टमाटर का उत्पादन होता है। शहरी या टेरेस गार्डन के लिए काफी उपयुक्त है। उन्नत किस्म से उगाए गए एक पौधे (फौज) में लगभग 1.0 से 1.25 किलोग्राम आलू तथा 3.50 से 4 किलोग्राम टमाटर का उत्पादन होता है।